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साइबर ठगों के ठहाके

राजस्थान हो, मध्यप्रदेश हो अथवा छत्तीसगढ़ ठगी की नित नई वारदात कर साइबर ठग पुलिस की कार्यकुशलता पर ठहाके मार कर हंस रहे हैं। कई बार तो उनका दुस्साहस इतना बढ़ जाता है कि ठगी का शिकार होने वाले को फोन कर चुनौती देते हैं कि कुछ बिगाड़ सको तो बिगाड़ लो।

Jul 28, 2021 / 09:18 am

भुवनेश जैन

Complaint for Cyber Fraud on National Helpline No. 155260 & Reporting Platform, Modi Govt step for safe-secure digital payments

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साइबर ठगों ने जयपुर के एक सेवानिवृत्त इंजीनियर की जीवनभर की जमा-पूंजी ठग ली। उनकी आर्थिक स्थिति तो बिगड़ी ही, मानसिक स्थिति भी ऐसी गड़बड़ाई कि पूरा परिवार उबर नहीं पा रहा। विडंबना यह है कि ठगी की इतनी योजनाबद्ध और बड़ी घटना की जांच एक सामान्य थाने में चलती रही। पुलिस के बड़े अफसरों, साइबर क्राइम ब्रांच और एसओजी को भनक तक नहीं लगी। नतीजा यह हुआ कि ठग वर्षों तक इस बुजुर्ग को लूटते रहे। बिना किसी भय के। शायद वे भारतीय पुलिस के काम करने के तरीके से अच्छी तरह परिचित हैं।

साइबर ठगी की वारदात रोज सुर्खियां बन रही हैं। कहीं विधायकों को ठगा जा रहा है, कहीं भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसरों को। इतने ‘बुद्धिमान’ लोग ठगी का शिकार हो रहे हैं तो सामान्य बुद्धि वाले आम लोगों की तो बिसात ही क्या है। राजस्थान हो, मध्यप्रदेश हो अथवा छत्तीसगढ़ ठगी की नित नई वारदात कर साइबर ठग पुलिस की कार्यकुशलता पर ठहाके मार कर हंस रहे हैं। कई बार तो उनका दुस्साहस इतना बढ़ जाता है कि ठगी का शिकार होने वाले को फोन कर चुनौती देते हैं कि कुछ बिगाड़ सको तो बिगाड़ लो।

आज झारखंड का जामताड़ा और राजस्थान के मेवात क्षेत्र के कुछ हिस्से साइबर ठगों के स्वर्ग बन गए हैं। वहां बाकायदा ठगी की ट्रेनिंग की कक्षाएं चलती हैं। किशोर अवस्था से ही बच्चे ठगी के कारोबार में आ जाते हैं। इक्का-दुक्का प्रभावशाली लोगों के मामले छोड़ दें तो पुलिस उन पर हाथ डालना तो दूर, उनके ठिकानों की तरफ देख भी नहीं पाती। देशभर में रोज हजारों वारदात हो रही हैं। लोग अपने खून-पसीने की कमाई अपनी आंखों के सामने लुटते देख रहे हैं। पुलिस है कि केस दर्ज करने के बाद बहुत कम मामलों में आगे बढ़ पाती है। जब लोग ठगी का शिकार होते हैं तो बैंक, पुलिस और तकनीकी क्षेत्र की कंपनियां इसका दोष ठगी के शिकार होने वालों के माथे ही मढ़ देते हैं। कहते हैं- उन्होंने ओटीपी या पिन क्यों बताया? ठगों की ओर से भेजा गया लिंक डाउनलोड क्यों किया? सतर्कता क्यों नहीं बरती? क्या सामान्य बुद्धि के सामान्य आदमी से यह अपेक्षा की जा सकती है कि वह तकनीकी बारीकियों को समझेगा? लुटेरे एटीएम तक लूट ले जाते हैं तब बैंकों के विद्वान अधिकारी मौन साध लेते हैं। जब विशेषज्ञों से लैस पुलिस के साइबर प्रकोष्ठ तक साइबर ठगों के सामने लाचार हो जाते हैं तो आम आदमी असली और नकली वेबसाइट की पहचान कैसे कर सकता है।

साइबर क्राइम आज हत्या, डकैती, चोरी जैसे अपराधों से कहीं कम नहीं है। लेकिन इससे निपटने की तैयारियां न सरकारों के पास है, न बैंकों के पास और न ही पुलिस के पास। कानून भी इतने लचर हैं कि बड़ी-बड़ी लूट करने वाले जमानत पर छूट कर कानून का मखौल उड़ाते हुए नए शिकार को फांसने में जुट जाते हैं। पुलिस तकनीकी के इस युग में आज भी परम्परागत तरीके से अनुसंधान करती है, जबकि तकनीकी विशेषज्ञ युवाओं को इस काम में लगाना चाहिए। मोबाइल नंबरों की ट्रैकिंग और कैमरों की रिकार्डिंग की छानबीन से आगे पुलिस कम ही बढ़ पाती है। फर्जी नाम-पते से सिम खरीदना आज भी बच्चों का खेल है। ऐसी लापरवाही के लिए मोबाइल कंपनियों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। ऐसे उपायों पर विचार करने की फुर्सत न मोबाइल कंपनियों को है न बैंकों को। एटीएम लुटने पर किसी बैंक अधिकारी को सजा हुई है? फर्जी सिम जारी होने पर मोबाइल कंपनियों का कुछ बिगड़ा है? जो कुछ बिगड़ता है, साइबर ठगी के शिकार व्यक्ति के परिवार का बिगड़ता है। उसके लिए संवेदना किसी में नहीं है, न सरकार में, न कंपनियों में और न ही पुलिस में।

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