पंजाब लंबे समय तक आतंकवाद का शिकार रहा है। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह समेत अनेक नेताओं की हत्या हो चुकी है। देश में इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, हरेन पंड्या, ललित माकन और विद्याचरण शुक्ल समेत अनेक नेताओं की हत्या की जा चुकी है। राजनीतिक दल भले ही स्वीकार नहीं करें लेकिन आज राजनीति में शत्रुता का दौर चल रहा है और कोई नहीं जानता कि यह कहां जाकर थमेगा। नेता विरोधी दलों के नेताओं को विरोधी नहीं, बल्कि दुश्मन समझने लगे हैं। इसका असर संसद और विधानसभाओं में भी दिख रहा है तो सड़कों पर हो रहे खून-खराबे में भी। नेताओं को सुरक्षा देने या हटाने का जिम्मा राज्य सरकारों का है। लेकिन केंद्र सरकार को सभी मुख्यमंत्रियों और राजनीतिक दलों की बैठक में इस तरह के टकराव बढ़ाने वाले मुद्दों का सर्वसम्मत हल निकालना चाहिए।
बदले की राजनीति हमारे लोकतंत्र को कमजोर बना रही है। इसके लिए किसी एक दल को दोष नहीं दिया जा सकता। पंजाब में जो हुआ, वह देश के दूसरे हिस्सों में न हो, इसका इंतजाम तो करना ही होगा। मूसेवाला की हत्या को राजनीतिक चश्मे से देखने की जरूरत नहीं है और हत्या के कारणों की गहराई से जांच होनी चाहिए। जांच इस बात की भी होनी चाहिए कि क्या मूसेवाला की सुरक्षा हटाना गलत फैसला था? यदि फैसला गलत था तो इसके जिम्मेदार लोगों के खिलाफ भी कार्रवाई होनी चाहिए। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने सुरक्षा हटाने के मामले में पंजाब सरकार से जवाब भी तलब किया है। लोकतंत्र में हिंसा को बढ़ावा देने के कदम का समर्थन शायद ही कोई करे?