नोएडा। आरक्षण व्यवस्था का लंबे समय से विरोध हो रहा है। सामान्य वर्ग इसे खत्म करने की मांग कर रहा है। न सिर्फ सामान्य वर्ग कुछ लोग ऐसे भी हैं जो आरक्षित क्षेणी में आते हैं वह भी आरक्षण विरोधी हैं। आजादी के सत्तर साल बाद भी वोट बैंक के नाम पर आरक्षण को खींचा जा रहा है जोकि एक स्वस्थ्य समाज के लिए हितकारी नहीं है। इस बारे में दिल्ली की एक एमएनसी में असिस्टेंट मैनेजर दीपक तोमर का कहना है कि आज के समय में रिजर्वेशन सिस्टम पूरी तरह से बेकार है।
आज के समय में इसकी कोई जरूरत नहीं है। यह रिजर्वेशन सिस्टम सत्तर साल पहले दबी कुचली जातियों को आगे लाने के लिए डॉ. बीआर अंबेडकर द्वारा शुरू किया गया था। उस वक्त इसकी जरूरत थी। अंबेडकर को भी लगा था कि इस व्यवस्था को दस साल के लिए लागू करना काफी है और इसकी समय सीमा दस साल रखी गई। लेकिन राजनीतिक कारणों से इसे हर दस साल में बढ़ा दिया जाता है।
दीपक का कहना है कि आज सभी लोग संपन्न हैं और अब इसकी जरूरत नहीं है। अब इसका नाजायज फायदा उठाया जा रहा है। जनरल कैटगरी वालों के साथ नाइंसाफी हो रही है। उतनी मेहनत या बिना किसी मेहनत के आरक्षित जाति वालों को अच्छे मौके मिल जाते हैं लेकिन जनरल कैटगरी वालों को मेहनत करके भी वैसा मौका नहीं मिल पाता है।
दीपक का कहना है कि आरक्षण पूरी तरह से खत्म कर देना चाहिए या फिर सभी जातियां एक समय पर आरक्षण मांगने लगेंगी। गुजरात में पटेल जाति और हरियाणा में जाट आरक्षण के लिए पहले से ही लड़ रहे हैं। आने वाले समय में अन्य जातियां भी आरक्षण मांगेंगी और यह पूरी तरह से जायज है। या तो सरकार सभी को आरक्षण दे दे या सभी का आरक्षण खत्म कर दे।
अगर सभी का आरक्षण खत्म नहीं किया जा सकता है तो कुछ व्यवस्था करके जनरल कैटगरी वालों को भी थोड़ा सा कोटा दे दिया जाए। अन्यथा यह भी किया जा सकता है कि 50.5 फीसदी सामान्य कैटगरी की सीटों पर आरक्षिण जातियों को कोई स्थान न दिया जाए, उनके केवल आरक्षिण सीटों पर ही समायोजित किया जाए।