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नोएडा

Impact: गर्भवती महिला के इलाज में लापरवाही बरतने के मामले ने पकड़ा तूल, जांच कमेटी ने बयान किए दर्ज

Highlights:
-ओपीडी रजिस्टर में महिला की एंट्री नहीं मिली
-एडीएम ने अस्पताल की सीसीटीवी फुटेज भी देखी
-एडीएम कक्ष संख्या 107 व 151 के बाद इमरजेंसी भी पहुंचे

नोएडाJun 07, 2020 / 12:29 pm

Rahul Chauhan

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नोएडा। गर्भवती महिला के इलाज में लापरवाही बरतने के मामले के तूल पकड़ने के बाद डीएम सुहास एलवाई द्वारा पूरे प्रकरण की जांच अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व मुनींद्र नाथ उपाध्याय तथा मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ दीपक अहोरी को सौंपी गई है। जिलाधिकारी ने दोनों अधिकारियों को इस प्रकरण में तत्काल जांच करते हुए कार्रवाई करने के भी निर्देश दिए हैं। जांच के लिए शनिवार दोपहर करीब ढाई बजे जांच अधिकारी व एडीएम मुनींद्र नाथ उपाध्याय जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. दीपक ओहरी के साथ जिला अस्पताल पहुंचे। उन्होंने लापरवाही बरतने के मामले में सीएमएस व डॉक्टरों का बयान दर्ज किया।
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एडीएम की अध्यक्षता में जिला अस्पताल पहुंची जांच कमेटी ओपीडी रजिस्टर मंगवाकर गर्भवती की डिटेल चेक की। इस दौरान ओपीडी रजिस्टर में महिला की एंट्री नहीं मिली। एडीएम ने अस्पताल की सीसीटीवी फुटेज भी देखी। एडीएम कक्ष संख्या 107 व 151 के बाद इमरजेंसी भी पहुंचे। बारी-बारी से यहां मौजूद चिकित्सकों से महिला के बारे में जानकारी जुटाई। सेक्टर-24 स्थित ईएसआइसी अस्पताल से मिली जानकारी के मुताबिक महिला आठ माह की गर्भवती थी। सीवियर निमोनिया होने से उसके फेफड़ों में बलगम जम गया था। कोरोना के लक्षण भी थे। गंभीर होने पर उसे एंबुलेंस के जरिये जिला अस्पताल रेफर कर दिया गया था।
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इसके बाद में डॉक्टरों व स्वास्थ्य कर्मियों के भी बयान दर्ज किए गए। जांच के दौरान एडीएम ने सीएमएस से पूछा कि जब अस्पताल में 30 बिस्तरों के क्वारंटाइन बेड की सुविधा उपलब्ध है तो महिला को जिम्स क्यों रेफर किया गया और वहीं कोरोना संदिग्ध महिलाओं का अस्पताल में सैंपल लेकर जांच लैब भेजा जाता है। जांच रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाती है, लेकिन गर्भवती के मामले में ऐसा कुछ नहीं। जिम्स रेफर करने के दौरान डॉक्टरों ने महिला को रेफरल कागज नहीं दिया। इस बात से नाराज एडीएम ने सीएमएस को मौके पर ही फटकार लगाई। एडीएम ने सीएमएस से कहा कि मुख्यमंत्री योगी ने स्वयं घटना का संज्ञान लेते हुए आरोपितों के खिलाफ जांच के बाद एफआइआर कराने के निर्देश दिए हैं, इसलिए दोषियों को बचाने की कोई भी हिमाकत नहीं करें।

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