यह भी पढ़ें- आजम खान का सबसे बड़ा ऐलान, कहा- 8वें दिन दे दूंगा सांसद के पद से इस्तीफा! दरअसल, वेस्ट यूपी को सपा-बसपा का गढ़ माना जाता है। यहां दोनों दल जातीय समीकरण के चलते बड़ी जीत हासिल करने में कामयाब रहते हैं। यही वजह है कि लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद पूरे यूपी में भाजपा की लहर नजर आई, लेकिन वेस्ट यूपी के मेरठ, मुरादाबाद और सहारनपुर मंडल की 14 में से 7 सीट पर गठबंधन प्रत्याशियों ने कब्जा जमाया है। वहीं मेरठ सीट पर भाजपा प्रत्याशी ने बहुत कम अंतर से चुनाव जीता है। मतलब साफ है कि यह सीट भी बसपा के खाते में जा सकती थी।
यह भी पढ़ें- Video: मतगणना के बाद इस शहर में बवाल की आशंका को देखते अतिसंवेदनशील क्षेत्रों में फोर्स तैनात बता दें कि मायावती ने चुनावी रणनीति के तहत गठबंधन में गौतमबुद्ध नगर, मेरठ, सहारनपुर, बिजनौर, बुलंदशहर, अमरोहा और नगीना सीट ली थी। इनमें सहारनपुर, बिजनौर, नगीना और अमरोहा सीट पर बसपा प्रत्याशियों ने विजय पताका लहराई है। जबकि अखिलेश यादव के हिस्से केवल पांच सीट गाजियाबाद, मुरादाबाद, कैराना, रामपुर और संभल सीट आई थी। इनमें से मुरादाबाद, रामपुर और संभल सीट पर उनके प्रत्याशी जीते हैं। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि मायावती की यही चाल इस बार लोकसभा चुनाव में काम कर गई और वह सून्य से सीधे 11 सीटों पर पहुंच गईं। वहीं अखिलेश यादव को इसका खामियाजा उठाना पड़ा और वह गठबंधन के बावजूद पिछली बार की तरह पांच सीटों पर ही सिमटकर रह गए।
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