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नोएडा

मायावती की इस बड़ी चाल को नहीं समझ सके अखिलेश, इसलिए फिर सिमटे 5 सीटों पर

सपा-बसपा का गढ़ माने जाने वाले वेस्ट यूपी में मायावती ने उतारे थे सबसे ज्यादा उम्मीदवार
बसपा के 7 में से 4 प्रत्याशियों ने हासिल की जीत
सपा के 5 प्रत्याशियों में से केवल 3 ही चख सके जीत का स्वाद

नोएडाMay 24, 2019 / 06:25 pm

lokesh verma

Akhilesh Yadav and Mayawati

मायावती की इस बड़ी चाल को नहीं समझ सके अखिलेश, इसलिए फिर सिमटे 5 सीटों पर

नोएडा. 2014 के लोकसभा चुनाव की तरह 2019 के लोकसभा चुनाव में भी समाजवादी पार्टी पांच सीटों पर ही सिमटकर रह गई है। जबकि इस बार अखिलेश यादव ने बसपा सुप्रीमो मायवती और रालोद मुखिया अजित सिंह के साथ गठबंधन किया था। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि इसे मायावती की राजनीतिक समझ ही कहेंगे, जिन्होंने इस बार सपा से दोगुनी सीट हासिल करने में सफलता प्राप्त की है। मायावती की दूरदर्शी सोच का ही अंजाम है कि उन्होंने वेस्ट यूपी के मेरठ, मुरादाबाद और सहारनपुर मंडल की 14 में से 7 सीट अपने खाते में रखीं और सपा और रालोद को क्रमश: 5 और 2 सीट दीं। जहां बसपा के 7 में से 4 प्रत्याशी जीते हैं तो सपा के 3 प्रत्याशी ही जीत हासिल कर सके हैं।
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दरअसल, वेस्ट यूपी को सपा-बसपा का गढ़ माना जाता है। यहां दोनों दल जातीय समीकरण के चलते बड़ी जीत हासिल करने में कामयाब रहते हैं। यही वजह है कि लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद पूरे यूपी में भाजपा की लहर नजर आई, लेकिन वेस्ट यूपी के मेरठ, मुरादाबाद और सहारनपुर मंडल की 14 में से 7 सीट पर गठबंधन प्रत्याशियों ने कब्जा जमाया है। वहीं मेरठ सीट पर भाजपा प्रत्याशी ने बहुत कम अंतर से चुनाव जीता है। मतलब साफ है कि यह सीट भी बसपा के खाते में जा सकती थी।
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बता दें कि मायावती ने चुनावी रणनीति के तहत गठबंधन में गौतमबुद्ध नगर, मेरठ, सहारनपुर, बिजनौर, बुलंदशहर, अमरोहा और नगीना सीट ली थी। इनमें सहारनपुर, बिजनौर, नगीना और अमरोहा सीट पर बसपा प्रत्याशियों ने विजय पताका लहराई है। जबकि अखिलेश यादव के हिस्से केवल पांच सीट गाजियाबाद, मुरादाबाद, कैराना, रामपुर और संभल सीट आई थी। इनमें से मुरादाबाद, रामपुर और संभल सीट पर उनके प्रत्याशी जीते हैं। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि मायावती की यही चाल इस बार लोकसभा चुनाव में काम कर गई और वह सून्य से सीधे 11 सीटों पर पहुंच गईं। वहीं अखिलेश यादव को इसका खामियाजा उठाना पड़ा और वह गठबंधन के बावजूद पिछली बार की तरह पांच सीटों पर ही सिमटकर रह गए।
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