जवाब: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार आज दुनिया में तंबाकू इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या लगभग 1.3 अरब है। तंबाकू नियंत्रण नीतियाँ लगभग दो दशकों से अमल में लाई जा रही हैं, लेकिन बढ़ती जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए तंबाकू इस्तेमाल करने वालों की संख्या स्थिर बनी हुई है। अनुमान है कि वर्ष 2030 तक तंबाकू से होने वाली 80 प्रतिशत से भी ज़्यादा मौतें निम्न और मध्यम आय वाले यानी कि एलएमआईसी देशों में होंगी। इसलिए इन देशों के लिए यह बेहद ज़रूरी है कि अपने लाखों लोगों की जानें बचाने के लिए नए तथा बेहतर कदम उठाएं। कई देश ऑटोमोबाइल और ऊर्जा के क्षेत्रों में शानदार उन्नति के गवाह रहे हैं। जिनके यहां नुकसान को कम करने के लिए नई टेक्नोलॉजी का अधिक इस्तेमाल किया गया है। इन्हीं सब से प्रेरणा लेते हुए यह ज़रूरी है कि कंपनियां और संबंधित हितधारक मिलकर काम करें, ताकि तंबाकू सेवन और धूम्रपान से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए विज्ञान आधारित बेहतर विकल्प पेश किए जा सकें और अपने-अपने देशों में हानि को न्यूनतम किया जा सके। जनजागरूकता बढ़ाना भी तंबाकू से होने वाले नुकसान को कम करने की एक प्रभावी रणनीति हो सकती है। ज़्यादातर यह समझा जाता है कि निकोटीन धूम्रपान से जुड़ी बीमारियों का सबसे बड़ा कारण है। हालांकि ध्यान देने वाली बात यह है कि निकोटीन भले ही आदत डालने वाला हो, लेकिन यह धूम्रपान से जुड़ी बीमारियों का सबसे बड़ा कारण नहीं है। असल में, तंबाकू के जलने से नुकसान पहुंचाने वाले विषैले पदार्थ निकलते हैं, जो इन बीमारियों का कारण बनते हैं। अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) ने यह प्रमाणित किया है कि ऐसे बेहतर उत्पाद हैं जो तंबाकू को जलाने के बजाय केवल गर्म करते हैं, वो हानिकारक तत्वों के स्तर को लगभग 95% तक कम कर सकते हैं। उन्नत विज्ञान पर आधारित नीतियों, जनजागरूकता और हानि कम करने की रणनीतियाँ मिलकर तंबाकू के हानिकारक सेवन में तेज़ी से कमी लाने में मदद कर सकती हैं, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य बेहतर होने में काफ़ी हद तक मदद मिल सकती है।
जवाब: किसी भी धूम्रपान करने वाले के लिए सबसे अच्छी बात है कि वह इसे छोड़ दे। मगर ज़्यादातर लोग मजबूरन ऐसा नहीं कर पाते। इन लोगों को एक व्यावहारिक दृष्टिकोण और सिगरेट से दूर होने के लिए स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। उपभोक्ताओं की आवाज़ अक्सर उन बहसों में दब जाती है जो धूम्रपान के बेहतर विकल्पों पर असमान नियम, प्रतिबंध और पूर्ण प्रतिबंध लगाने का कारण बनती हैं। विभिन्न प्रकार के वैकल्पिक उत्पाद और तंबाकू छोड़ने की तकनीकें व्यक्तियों को तंबाकू छोड़ने के दौरान मदद करने में काफ़ी असरदार साबित हुई हैं। जिन देशों में विकल्प दिए गए हैं, वहां धूम्रपान दर में गिरावट देखी गई है। उदाहरण के रूप में देखा जाए तो जापान में पिछले 10 वर्षों में विकल्पों की शुरुआत से सिगरेट की बिक्री में लगभग 46% की कमी हुई है। स्वीडन में कैंसर की घटनाएं यूरोपीय औसत के मुकाबले 41% कम हैं साथ ही धूम्रपान दर 5.6% है, इन सभी से साफ़ तौर पर सुरक्षित विकल्प अपनाने के फ़ायदे दिखाई देते।
जवाब: “विकसित भारत 2047” का विज़न विज्ञान और टेक्नोलॉजी की परिवर्तनकारी भूमिका पर निर्भर करता है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य सुधार के लिए भी बेहद ज़रूरी है। यह विज़न हम सभी को प्रेरित करता है कि तंबाकू की समस्या का समाधान निकालने और उन 1/3 भारतीयों की मदद के लिए मिलकर काम करें जो तंबाकू का सेवन करते हैं। इससे तंबाकू से जुड़े उन विषयों पर चर्चा को बढ़ावा मिलेगा, जो अक्सर हमारे सामाजिक ताने-बाने में नज़रअंदाज कर दिए जाते हैं। तंबाकू का सेवन करने वाली बड़ी आबादी को भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य सुधार में बेहतरी के सफ़र में पीछे नहीं छोड़ा जा सकता
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) भारतीय तंबाकू किसानों की उत्पादकता और आजीविका को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। भारत का लंबा चौड़ा बाज़ार, जिसमें लाखों तंबाकू इस्तेमाल करने वाले हैं, स्थानीय किसानों के साथ निवेश की ज़रूरत को दिखाता है। साथ ही ज़रूरत है कि एफडीआई तंबाकू नीतियों को अधिक खुला और आकर्षक बनाए, जिससे किसान ज़्यादा से ज़्यादा आय अर्जित कर सकें और भारत के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा का सृजन हो। भले ही कुछ किसान अभी भी अपनी पुरानी प्रथाओं में उलझे हैं, फिर भी एफडीआई उन्नत कृषि टेक्नोलॉजी को पेश कर सकता है, जिससे किसानों को फ़सल की गुणवत्ता और उत्पादन में सुधार करने में मदद मिल सके।