US-made SIG 716 Rifle: कच्छ से करगिल तक, लद्दाख से वालोंग तक करेगी कवर
अमरीका से लाई गई सिगसोर 716 राइफल (Sig Sauer 716) भारतीय सेना की अग्रिम पंक्ति में पहुंचने के बाद अब शांति क्षेत्र में तैनात इंफेंट्री बटालियन को भी दी जा रही है। 600 मीटर मारक क्षमता वाली यह राइफल दुश्मनों को एक ही गोली में मौत की नींद सुला देती है।
US-made SIG 716 Rifle covering from Kutch to Kargil, Ladakh to Walong
आनंद मणि त्रिपाठी चौबटिया/उत्तराखंड। अमरीका से लाई गई सिगसोर 716 ( Sig Sauer 716 ) राइफल भारतीय सेना की अग्रिम पंक्ति का हथियार बनने जा रही है। उत्तर कमान और पश्चिमी कमान के अंतर्गत आने वाले एलओसी, एलएसी की सभी अग्रिम पंक्तियों के पास 72 हजार राइफल पहुंच चुकी हैं। अब शांति क्षेत्र में तैनात इंफेंट्री बटालियन की दो कंपनियों को यह राइफल दी जा रही है। फिर चाहे बात राजस्थान, गुजरात की हो या फिर मध्यप्रदेश की। दक्षिण पश्चिमी कमान को भी अब यह राइफल मिलना शुरू हो गई हैं।
Must Read: क्या है अमरीकी M-24 स्नाइपर राइफल, कैसे अमरनाथ यात्रा के दौरान की गई बरामद गौरतलब है कि चीन से चल रहे टकराव के दौरान भारतीय सेना ने अगस्त 2020 में अमरीका से 72 हजार अतिरिक्त ‘सिग-716’ राइफल खरीदने का सौदा किया था। इससे पहले फरवरी 2019 में 72 हजार 400 सिगसोर 716 राइफल का सौदा किया था। अब कुल 1 लाख 44 हजार सिगसोर राइफल्स हो गई हैं। करीब 20 साल बाद सेना को कोई नई असॉल्ट राइफल मिली है।
इससे पहले करगिल युद्ध के दौरान इनसास राइफल मिली थीं। इंसास में गर्म हो जाने, जाम हो जाने सहित कई समस्याएं थी। कम तापमान में मैग्जीन टूटने की भी शिकायत रही। इसके अलावा भी कई दिक्कतें इसमें रहीं। यही वजह है कि मार्च 2018 में रक्षा मंत्रालय द्वारा 7.40 लाख असॉल्ट राइफल खरीदने की मंजूरी दी गई।
अब दुश्मन की मौत 600 मीटर सिगसोर 716 की कार्बन स्टील बैरल 16 इंच की है। इसे 7.62 x 51 एमएम गोली दागने के लिए बनाया गया है। इससे दुश्मन की मौत पक्की हो जाती है। मारक रेंज 600 मीटर है जो कि एके 47 से दोगुनी है। अब तक प्रयोग हो रही इंसास की 5.56 एमएम कैलिबर से दुश्मन घायल होता था। दुश्मन को जान से मारने के लिए करीब से गोली मारनी पड़ती है।
एलएसी में तनातनी, चौबटिया में युद्धाभ्यास एक तरफ जहां एलएसी पर चीन से तनातनी चल रही है। वहीं, भारत-उज़्बेकिस्तान की सेनाएं यूएन चार्टर के तहत साझा युद्धाभ्यास में जुटी हैं। 19 मार्च तक चलने वाले इस युद्धाभ्यास को डस्टलिक (दोस्ती) नाम दिया गया है। 2019 में उज़्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में पहला युद्धाभ्यास हुआ था। दोनों सेनाएं 10 मार्च से युद्धाभ्यास के दूसरे संस्करण में हिस्सा ले रही हैं।
पश्चिमी कमान के अंतर्गत चौबटिया (रानीखेत) में चल रहे इस युद्धाभ्यास में उज्बेकिस्तान के 45 सैनिक हिस्सा ले रहे हैं। भारतीय सेना की तरफ से 13 कुमाऊं (रेजांगला बटालियन) अपने 45 अधिकारियों और सैनिक के साथ हिस्सा ले रही है। यह वही पलटन हैं जिसके 114 सैनिकों ने 1962 में रेजांगला युद्ध में 1300 चीनी सैनिकों को मौत की नींद सुला दिया दिया था।
मेजर शैतान सिंह राजस्थान में जोधपुर जिले में स्थित बंसार गांव के रहने वाले थे। मेजर सिंह का पार्थिव शरीर जब मिला था तो उनकी उंगलियां अपनी गन के ट्रिगर पर थीं। उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से नवाजा गया था।
13 कुमाऊं के सीओ कर्नल अमित मलिक ने बताया कि दोनों सेनाएं आतंकवाद, उग्रवाद, मोटर व्हीकल आईईडी ब्लास्ट को रोकने सहित तमाम स्थिति में सैन्य आपरेशन का युद्धाभ्यास कर रही हैं। दोनों ही सेनाएं एक दूसरे से अपने अनुभव भी साझा कर रही हैं।
युद्धाभ्यास आतंकवाद से कैसे निपटा जाए? इस विषय पर केंद्रित है। ऐसे में हेलीबॉर्न आपरेशन, जंगल आपरेशन, रूम आपरेशन, किसी निश्चित क्षेत्र या गांव को घेरकर आतंकी की तलाश (कासो) सहित तमाम गतिविधियों का अभ्यास किया जा रहा है। उज़्बेकिस्तान के सैनिक हथियार लेकर नहीं आए हैं। वह भी भारतीय सेना की सिगसोर 716 पर अपना हाथ अजमा रहे हैं।
Must Read: भारतीय सेना के वरिष्ठ सैनिक बनेंगे साइबर एक्सपर्ट! आईटी सेक्टर का मिलेगा प्रशिक्षण …इसलिए जरूरी है उज्बेकिस्तान मध्य एशिया में चीन के बढ़ते कदम को रोकने के लिए भारत लगातार अपने संबधों को मजबूत करने में जुटा हुआ है। चीन की गिद्ध निगाह सिल्क रूट पर है। यह उज्बेकिस्तान से ही होकर गुजरता है। ऐसे में मध्य एशिया से संबंधों को मजबूत करने के लिए तमाम कदम उठाए जा रहे हैं। यही वजह है कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी यहां कई यात्राएं कर चुके हैं।
इसी कड़ी में उज़्बेकिस्तान की सेना से यह युद्धभ्यास शामिल है। दोनों देश शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य हैं और आतंकवाद से लड़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं। गौरतलब है कि 1991 में सोवियत संघ से अलग होने के बाद उज्बेकिस्तान को स्वतंत्र देश की मान्यता देने वालों में भारत सबसे आगे थे।
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