दरअसल, यह छिपकली पूरी दुनिया में सिर्फ भारत के बिहार और बिहार से सटे नेपाल में मिलती है। इस छिपकली का नाम ‘टोके गेको’ है। यह छिपकली दुनिया में बहुत कम बची हैं. इस वजह से इन्हें ‘वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972’ के शेड्यूल थ्री के तहत लिस्टेड किया जा चुका है। इनकी कम संख्या की वजह से भारत में इनका शिकार, इनकी बिक्री और खरीद पर रोक है। रोक की वजह से स्मगलर्स टोके गेको छिपकली को चोरी से बेचते हैं।
गैरकानूनी तरीके से इसे पकड़ कर उत्तर-पूर्वी भारतीय राज्यों से दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में अवैध तस्करी की जा रही है। इस प्रजाति की 1 छिपकली की कीमत 1 करोड़ रुपए लिए जा रहे हैं। इतना ही नहीं इस खास प्रजाति की छिपकली की बाजार में कई बार मुंह मांगी कीमत मिल जाती है। वहीं कई बार छिपकली की कीमत उसके साइज ते आधार पर भी तय की जाती है। अगर छिपकली का आकार बड़ा है तो कीमत करोड़ रुपए से भी ऊपर जा सकती है। इसकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में बहुत बड़ी मांग है।
अब आपको बताते हैं की इसका इस्तेमाल कहा किया जा रहा है, और इसकी इतनी मांग क्यों है। दरअसल, टेको गेको छिपकली का इस्तेमाल कई तरह की बीमारियों के लिए दवा बनाने में किया जाता है। इसके मांस से नपुंसकता, डायबिटीज, एड्स और कैंसर की परंपरागत दवाएं बनाई जाती हैं। ऐसा माना जाता है कि ये किडनी और फेफड़ों को मजबूत बनाती हैं। चीन में भी चाइनीज ट्रेडिशनल मेडिसिन में इसका उपयोग किया जाता है। शायद यही वजह है की इसे इतनी ज्यादा कीमत पर बेचा जा रहा है।
साउथ-ईस्ट एशिया में टोके गेको को अच्छी किस्मत और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। जंगलों की लगातार कटाई होने की वजह से यह खत्म होती जा रही है। इसकी तस्करी आए दिन किशनगंज के रास्ते होती है। इस छिपकली को अनुसूची -4, वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत रखना या व्यापार करना अवैध है। इस छिपकली की की लंबाई करीब 35 सेमी लंबी होती है। इसका आकार भी सिलेंडर की तरह होता है। शरीर का निचे का हिस्सा सपाट होता है। इस छिपकली की स्किन पर लाल धब्बे होते हैं।