पिपरिया/पचमढ़ी/होशंगाबाद । नागद्वारी की दुर्गम यात्रा 17 जुलाई से शुरू हो चुकी है। दुर्गम रास्ते और बारिश भी यहां पहुंचने वाले श्रद्बालुओं को विचलित नहीं कर पा रही है। यही कारण है कि पहले दो दिन में ही यहां हजारों श्रद्बालु पहुंच चुके हैं। दुर्गम पहाडिय़ों में भोले के जयकारे गूंज रहे हैं। इसमें मध्यप्रदेश सहित आसपास के कई राज्यों के श्रद्बालु शामिल होते हैं। यहां फिलहाल प्रतिदिन 400 वाहन आ रहे हैं, 28 जुलाई को नागपंचमी तक यह संख्या 1000 वाहन रोज तक पहुंच सकती है।
यह यात्रा बाबा
अमरनाथ की तरह की रोमांचक और खतरनाक है। यहां पर रास्ते में जहरीले सांपों से यात्रियों का सामाना होता है। यहां पर दुर्गम पहाड़ी पर 12 किमी की पैदल यात्रा पूरी कर श्रद्धालू काजरी गांव के पास गुफा में विराजे भोले शंकर के दर्शन करेंगे।
15 दिन चलता है मेला पचमढ़ी में हर साल
सावन मास में नागद्वारी यात्रा होती है और 15 दिन तक चलने वाले नागद्वारी मेले का समापन नागपंचमी के दिन किया जाता है। केवल 15 दिन के लिए सतपुड़ा अंचल की सुरम्य वादियों में बसी ये सात पहाडिय़ां श्रद्धालुओं के हर-हर महादेव और जय नागदेव के जयघोष से गूंजती हैं। रास्ते में जहरीले सांप यहां-वहां मिलते हैं इनकी खासबात यह है कि यह किसी को भी डंसते नहीं।
प्रसिद्ध नागद्वारी यात्रा का रास्ता सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के बीच आता है। वन विभाग यहां पर यात्रा के लिए 15 दिन की स्वीकृति देता है। टाइगर रिजर्व होने के कारण ही इस यात्रा के मुख्य ग्राम काजरी में रहने वाले 250 ग्रामीणों को कुछ वर्ष पूर्व यहां से हटा दिया गया था। साल में एक बार ही यह गांव फिर से आबाद होता है। इस गांव में पूरा मेला लगता है गांव के लोग फिर से अपने गांव में आकर नागद्वारी यात्रा करने वालों की सेवा में लग जाते हैं।
कुछ प्रचलित कहानियां नागद्वारी यात्रा का मुख्य केन्द्र सतपुड़ा अंचल की पहाडिय़ों में बसा गांव काजरी है। कहा जाता है कि गांव की काजरी नामक एक महिला ने संतान प्राप्ति के लिए नागदेव को काजल लगाने की मन्नत मानी थी। संतान होने के बाद जब वह काजल लगाने पहुंची तो नागदेव का विकराल रुप देखकर उसकी मौके पर ही मृत्यु हो गई थी, इसके बाद उस गांव का नाम काजरी पड़ा गया। बताया जाता है कि यात्रा की शुरुआत भी यहीं से होती है।
– दूसरी मान्यता है कि नागद्वारी यात्रा से कालसर्प दोष दूर होता है। नागद्वारी की पूरी यात्रा सर्पाकार पहाडिय़ों से गुजरती है। पूरे रास्ते ऐसे लगता है कि जैसे यहां की चट्टाने एक दूसरे पर रखी हैं। मान्यता है कि एक बार यह यात्रा कर लेने वाले का कालसर्प दोष दूर हो जाता है।
नागलोक से जुड़ी भीम की कथा एक अन्य कथा जो नागलोक से जुड़ी एक भीम की कथा भी है, उल्लेखनीय है कि भीम के पास हजारों हाथियों के बराबल बल था, कहा जाता है कि यह बल उनको नागलोक से ही मिला था, महाभारत के अनुसार भीम के इस अद्भुत बल से दुर्योधन खुश नहीं था इसलिए उसने भीम को मारने के लिए युधिष्ठिर के सामने गंगा तट पर स्नान, भोजन और खेल का प्रस्ताव रखते हुए कई प्रकार के व्यंजन तैयार करवाए। भोजन में दुर्योधन ने भीम को विषयुक्त भोजन दे दिया था, उनके बेहोश होते ही दुर्योधन ने भीम को गंगा में डुबो दिया था, मूर्छित भीम नागलोक पहुंच गए थे जहां उनको विषधर नागडंसने लगे इससे भीम के शरीर में विष का प्रभाव नष्ट होते ही वह चेतना में आ गए थे, और वह नागों में मारने लगे इसके बाद कुछ नाग भागकर आपने राजा वासुकि के पास पहुंचे, वासुकि ने पहुंचकर भीम से परिचय लिया। वासुकि नाग ने भीम को अपना अतिथि बना लिया। नागलोक में आठ ऐसे कुंड थे, जिनका जल पीने से शरीर में हजारों हाथियों का बल आ जाता था। नागराज वासुकि ने भीम को उपहार में उन आठों कुंडों का जल पिला दिया। इससे भीम गहरी नींद में चले गए। आठवें दिन जब उनकी निद्रा टूटी तो उनके शरीर में हजारों हाथियों का बल आ चुका था। भीम के विदा मांगने पर नागराज वासुकी ने उन्हें उनकी वाटिका में पहुंचा दिया।
भक्तों को नुकसान नहीं पहुंचाते सांप करीब 100 साल पहले शुरू हुई नागद्वारी की यात्रा कश्मीर की
अमरनाथ यात्रा की तरह ही कठिन तथा खतरनाक है। कई मायनों तथा परिस्थितियों में तो यह उससे भी ज्यादा खतरनाक है। यहां पर ऊंची-नीची तथा दुर्गम पहाडिय़ों के बीच बने रास्तों पर यात्रियों के लिए कोई भी व्यवस्था नहीं होती है। उनको अनवरत चलते ही रहना है। यात्रा करते समय रास्ते में सामना कई जहरीले सांपों से हो सकता है, राहत की बात है कि यह सांप भक्तों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।
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