दरअसल, केंद्र सरकार के एक नोटिफिकेशन के तहत चंडीगढ़ के 22 हजार कर्मचारियों को केंद्रीय कर्मचारियों की कैटगरी में डाल दिया गया। इसके बाद ही पंजाब सरकार ने चंडीगढ़ पर दावा ठोका जिसे हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने इसे पंजाब सरकार की साजिश करार दिया। इसके साथ ही रविवार को कहा कि “चंडीगढ़ हरियाणा का था, है और रहेगा और किसी को भी राज्य के हितों को नुकसान पहुंचाने की अनुमति नहीं दी जाएगी और वे अपने हितों की रक्षा के लिए कोई भी बलिदान देने को तैयार हैं।”
चंडीगढ़ का इतिहास
चंडीगढ़ भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के सपनों का शहर है जिसे योजनाबद्ध तरीके से बनाया गया था। ये शहर अपनी सुंदरता, सफाई और हरियाली के कारण सिटी ब्यूटीफुल कहा जाता है। वर्तमान में चंडीगढ़ पंजाब और हरियाणा दोनों की राजधानी है। आजादी से पहले पजांब प्रांत की राजधानी लाहौर थी लेकिन भारत के विभाजन के दौरान, पंजाब प्रांत दो भागों में विभाजित हो गया था – पश्चिमी पंजाब (पाकिस्तान में) और पूर्वी पंजाब जो कि भारत में है। 1950 में, पूर्वी पंजाब का नाम बदलकर पंजाब राज्य कर दिया गया और चंडीगढ़ को भारत सरकार द्वारा राजधानी बनाया गया।
इसके बाद 1966 में, अविभाजित पंजाब को फिर से पंजाबी भाषी पंजाब और हिंदी भाषी हरियाणा में भाषाई अंतर के आधार पर विभाजित किया गया था। जबकि कुछ क्षेत्र नए पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में भी चले गए थे। दो राज्य बने तो पंजाब और हरियाणा दोनों ने चंडीगढ़ को अपनी राजधानी के रूप में दावा किया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने विवाद को सुलझाने के लिए चंडीगढ़ को केन्द्रीय प्रशासित राज्य का दर्जा दिया था। हालांकि, ऐसे करने के बाद उन्होंने संकेत दिया कि यह केवल अस्थायी है और बाद में इसे पंजाब में स्थानांतरित कर दिया जाएगा।
इसके बाद 1976 में, केंद्र ने चंडीगढ़ की संयुक्त स्थिति को फिर से आगे बढ़ा दिया क्योंकि पंजाब और हरियाणा दोनों ही अपनी जिद्द पर अड़े थे।
1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और अकाली दल के प्रमुख हरचंद सिंह लोंगोवाल द्वारा हस्ताक्षरित समझौते के अनुसार, चंडीगढ़ को 1986 में पंजाब को सौंपा जाना था। हालांकि, कुछ हिंदी भाषी शहर जैसे अबोहर और फाजिल्का को हरियाणा को दिया जाना था। इसके अलावा । राज्य को अपनी राजधानी बनाने के लिए 10 करोड़ रुपये की राशि भी दी जानी थी। एक तथ्य ये भी है कि इस समझौते की कभी पुष्टि नहीं हुई क्योंकि लोंगोवाल की हत्या कुछ सिख कट्टरपंथियों द्वारा कर दी गई थी। , जो इसके विरोध में थे।
ये विवाद 1990 के दशक के मध्य तक जारी था। हरियाणा ने भी हमेशा पंजाब के साथ चंडीगढ़ के एकमात्र जुड़ाव पर आपत्ति जताई क्योंकि राज्य के राजनेताओं का मानना था कि यह अंबाला जिले का एक हिस्सा है जो हरियाणा का एक अविभाज्य हिस्सा है।
इन दोनों राज्यों के अलावा हिमाचल प्रदेश ने भी 2011 में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर चंडीगढ़ राजधानी के हिस्से पर दावा किया था। आदेश के अनुसार, हिमाचल प्रदेश पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के आधार पर चंडीगढ़ की 7.19 प्रतिशत भूमि प्राप्त करने का हकदार था।
केंद्र के दखल से पंजाब की चिंता बढ़ी
ये विवाद आज भी जारी है और पंजाब सरकार द्वारा चंडीगढ़ को लेकर पहली बार प्रस्ताव नहीं पारित किया गया है, बल्कि इससे पहले भी कई बार पंजाब ऐसा कर चुका है। पिछले कुछ वर्षों में, पंजाब में चंडीगढ़ प्रशासन में उसके घटते कद और वहां अधिक से अधिक केंद्रीय अधिकारियों की पोस्टिंग को लेकर आक्रोश बढ़ता जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि केंद्र सरकार का ये कदम न केवल चंडीगढ़ की स्थिति को बदल देगा।
चंडीगढ़ में इंस्टीट्यूट फॉर डेवलपमेंट एंड कम्युनिकेशन (आईडीसी) के निदेशक प्रो. प्रमोद कुमार ने कहा कि शहर आर्थिक, सांस्कृतिक और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। एक तरफ हरियाणा है जिसके बाद गुरुग्राम और फरीदाबाद जैसे शहर हैं जो आर्थिक तौर पर काफी मजबूत हैं। वहीं, पंजाब की बात करें तो यहाँ हमेशा उस सांस्कृतिक तंत्रिका केंद्र जो एक राजधानी के साथ आता है। पंजाब की GDP में भी काफी गिरावट आई है ऐसे में चंडीगढ़ पर अपनी पकड़ को मजबूत करने में जुटा है।
वास्तव में जिस तरह से केंद्र चंडीगढ़ प्रशासन में अपनी पकड़ को मजबूत कर रहा उससे पंजाब सरकार को इस बात का डर है कि कहीं वो चंडीगढ़ में अपनी हिस्सेदारी को न खो दें।
वास्तविक मुद्दे से ध्यान भटकाने की कोशिश?
वहीं, कुछ एक्स्पर्ट्स का मानना है कि अपने पड़ोसियों के साथ पानी के बंटवारे की समस्याओं जैसे वास्तविक मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने के लिए पंजाब सरकार ने इसे तूल दिया है।
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