ऐसे मिली थी उन्हें सरदार की उपाधि
सरदार पटेल गुजरात का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के एक किसान परिवार में हुआ था। उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा। जब वह 33 वर्ष के थे तब उनकी पत्नी का देहांत हो गया। उन्होंने लंदन जाकर कानून की पढ़ाई पूरी की और बैरिस्टर की डिग्री हासिल की। अपने वतन की वापसी के बाद वह अहमदाबाद में वकालत की प्रैक्टिस करने लगे। लेकिन वतन से प्यार करने वालों को गुलामी की बेड़ियों के साथ जीवन जीना कहां भाता है? यही वजह है कि वह महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित हो गए और स्वतंत्रता आंदोलनों में बढ़-चढ़कर भाग लेना शुरू कर दिया। सन् 1918 में गुजरात के खेड़ा में सूखा पड़ा और ब्रिटिश सरकार ने किसानों से कर में किसी तरह की राहत से देना से मना कर दिया। वल्लभभाई ने वकालत छोड़कर इस आंदोलन में खूब जोरशोर से भाग लिया। इसके बाद 1928 में बारडोली में किसान आंदोलन का नेतृत्व किया। उस समय प्रांतीय सरकार ने किसानों के लगान में 22 प्रतिशत तक की वृद्धि कर दी थी। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इस लगान वृद्धि का जमकर विरोध किया। बाडोली आंदोलन के सफल होने के बाद वहां की महिलाओं ने वल्लभभाई को ‘सरदार’ कहकर पुकारना शुरू कर दिया। महात्मा गांधी ने आंदोलन की सफलता से खुश होकर उन्हें बारडोली का सरदार कहकर पुकारा था।
देश के पहले उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री थे सरदार
देश को आजादी मिलने के बाद वे भारत के पहले उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री बनाए गए। देश को आजादी तो मिल गई लेकिन यहां छोटी-बड़ी सैकड़ों की संख्या में रियासतें थी और इन्हें गृहमंत्री बनाया गया तो इन रियासतों का भारत में विलय करवाने की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई। सरदार पटेल ने यह जिम्मेदारी बहुत चतुराई के साथ संपन्न कराया। उन्होंने 562 रियासतों को भारतीय संघ में मिलाया। रियासत और रजवाड़ों को भारतीय संघ में मिलाने की जिम्मेदारी देते हुए महात्मा गांधी ने कहा था कि रियासतों की समस्या बहुत जटिल है और आप इसे हल कर सकते हैं। इस साहसिक कार्य को दृढ़ता के साथ पूरा कराने के चलते महात्मा गांधी ने उन्हें लौह पुरुष की उपाधि दी थी। इटली के एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बिस्मार्क के नाम पर ही उन्हें भारत का बिस्मार्क कहा जाता है।
मरणोपरांत हुए भारत रत्न से सम्मानित
आज भारत के छात्रों में सिविल सेवाओं में योगदान देने को लेकर बहुत उत्साह देखा जाता है। दरअसल यह सरदार पटेल की दूरदर्शिता थी कि उन्होंने इसकी भूमिका को समझा। उन्होंने देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए भारतीय प्रशानिक सेवाओं को मजबूत बनाने पर काफी जोर दिया था। सरदार पटेल की भूमिका संविधान निर्माण में भी बहुत अहम रही है। वे प्रांतीय संविधान समितयों के अध्यक्ष थे। सरदार पटेल जी का निधन 15 दिसंबर, 1950 को मुंबई में हुआ था। सन् 1991 में सरदार पटेल को मरणोपरांत ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया था।