scriptVideo : नागौर हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी के घटिया मकानों का भुगतान करने की कोशिश | Trying to pay for the substandard houses of Nagaur RHB Colony | Patrika News
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Video : नागौर हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी के घटिया मकानों का भुगतान करने की कोशिश

नागौर बालवा रोड हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी के मकानों का मामला, आवंटियों से ज्यादा ठेकेदारों पर मेहरबान हो रहे उच्चाधिकारी- कॉलोनी के मकानों की गुणवत्ता को लेईर एसीबी में चल रहे तीन केस

नागौरAug 01, 2021 / 11:26 am

shyam choudhary

Trying to pay for the substandard houses of Nagaur Housing Board Colony

Trying to pay for the substandard houses of Nagaur Housing Board Colony

नागौर. नागौर शहर के बालवा रोड स्थित राजस्थान आवासन मंडल की डॉ. भीमराव अम्बेडकर आवासीय कॉलोनी में अलग-अलग ठेकेदारों द्वारा बनाए गए घटिया मकानों का भुगतान कराने के लिए बोर्ड के अधिकारी उतावले हो रहे हैं। बचे-खुच्चे मकान औने-पौने दामों में बेचने के बाद अब उचाधिकारी आवंटियों की मूलभूत सुविधाओं पर ध्यान देने की बजाए ठेकेदारों को भुगतान कराने की कोशिश में जुटे हैं। विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार ठेकेदार बार-बार जयपुर में अधिकारियों के हाजरी लगा रहे हैं, ताकि उनका भुगतान ऊपरा-ऊपरी हो जाए और आवंटी नागौर में परेशान होते रहें।
गौरतलब है कि बालवा रोड स्थित डॉ. भीमराव अम्बेडकर आवासीय कॉलोनी में बोर्ड द्वारा 2096 मकान बनवाए गए, जिनमें अधिकारियों की अनदेखी के चलते ठेकेदारों ने घटिया निर्माण सामग्री का उपयोग कर आवंटियों के लिए परेशानी खड़ी कर दी। आवासीय कॉलोनी में किए गए भ्रष्टाचार की पोल राजस्थान पत्रिका ने वर्ष 2015 में ‘रेत के मकानों में कैसे रहें हम’ समाचार अभियान के तहत सिलेसिलेवार समाचार प्रकाशित कर खोली थी, जिसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे नागौर दौरे के दौरान 29 अक्टूबर 2015 को खुद मौके पर पहुंचकर निर्माण कार्य बंद करवाया और मौके से ही एसीबी जांच के आदेश दिए। एसीबी ने कॉलोनी के सेक्टर दो व तीन से निर्माण सामग्री के कुल 15 नमूने लिए थे, लेकिन सरकारी उदासीनता के चलते एसीबी ने भी इस कॉलोनी से जुड़े मुकदमों की जांच ठंडे बस्ते में डाल दी, जिसके चलते आज भी जांच अधूरी है।
इनको बनाया था आरोपी
सेक्टर तीन से लिए गए 11 सैम्पल में हाउसिंग बोर्ड नागौर के तत्कालीन एक्सईएन सर्वेश शर्मा, एईएन एसएस साद, ठेकेदार जयनारायण गोदारा को आरोपी बनाया। इसी प्रकार सेक्टर 2 से लिए गए 4 सैम्पल में तत्कालीन आवासीय अभियंता पीएम डिंगरवाल व हाकमचंद पंवार, एईएन बाबूलाल मीणा, पीके माथुर व ठेकेदार जुगलसिंह को आरोपी मानते हुए प्रकरण दर्ज करने के लिए रिपोर्ट जयपुर भेजी थी।
एक मामला 8 साल पुराना
हाउसिंग बोर्ड में घटिया निर्माण का एक अन्य मामला पिछले 8 साल से एसीबी में चल रहा है। फरवरी 2013 में आवासन मंडल के मकानों में घटिया निर्माण सामग्री के उपयोग की शिकायतें सामने आने पर एसीबी ने सेक्टर एक व 4 से 105 मकानों के सैम्पल लिए थे। हालांकि इस मामले में एफएसएल रिपोर्ट आने के बाद जुलाई 2013 में सम्बन्धित अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो गई, लेकिन अभी तक चालान पेश नहीं हो पाया है।
हिम्मत तो देखो, इसके बावजूद अधिकारी भुगतान करने की फिराक में
कॉलोनी में बनाए गए घटिया मकानों की जांच के तीन मामले एसीबी में चल रहे हैं, इसके बावजूद जयपुर में बैठे अधिकारी ठेकेदारों को भुगतान कराने का प्रयास कर रहे हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार खुद मुख्य अभियंता जीएस बाघेला पत्र पर पत्र लिखकर नागौर में अस्थाई तौर पर लगाए गए अधिकारियों पर दबाव बना रहे हैं।
एजेंसी ने की थी 54 मकान ध्वस्त करने की सिफारिश, फिर भी बेच दिए
पूर्व मुख्यमंत्री राजे के निर्देश के बाद हाउसिंग बोर्ड ने थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन करवाया। नागौर में बोर्ड के कहने पर गवर्नमेंट कॉलेज अजमेर व एमबीएम इंजीनियरिंग कॉलेज जोधपुर की टीम ने इंस्पेक्शन कर सैंपल लिए। ये सैम्पल एचआईजी, एमआईजी- ए और बी श्रेणी के मकानों से लिए गए। जिनकी रिपोर्ट में मकानों में लगी निर्माण सामग्री को घटिया माना। एक एजेंसी ने तो एमआईजी के 54 मकानों को ध्वस्त करने की सिफारिश तक कर दी थी। जांच में पाया कि ईंटों की चिनाई कमजोर थी, टाइल की दीवार घटिया तरीके से बनाई गई थी। फर्श पर लगने वाली विक्ट्रीफाइड टाइल्स कमजोर थी। मकानों की सीढिय़ों पर बनने वाली छत कमजोर थी। मकानों की क्वालिटी के संबंध में लिए गए दो सैम्पल गुणवत्ता में फेल हो गए। इसके बावजूद हाउसिंग बोर्ड अधिकारियों ने उन मकानों को बेच दिया।
एक साल से स्थाई अधिकारी नहीं
नागौर की आवासीय कॉलोनी से करोड़ों रुपए कमाने वाले आवासन मंडल ने अब अपने डेरे को समेटना शुरू कर दिया है। गत वर्ष आवासीय अभियंता का कार्यालय हटाने के बाद आवंटियों द्वारा किए गए विरोध पर अस्थाई तौर पर दो-दो महीने तारीख आगे बढ़ाई जा रही है। वहीं दूसरी ओर नागौर में स्थाई अधिकारी भी नहीं लगाया जा रहा है, जिसके चलते अधिकारी महीने में तीन-चार बार कार्यालय आते हैं, जिसके कारण आवंटियों को दस्तावेज तैयार कराने के लिए चक्कर काटने पड़ रहे हैं।
अभी किसी का भुगतान नहीं किया
अभी हमने किसी का भुगतान नहीं किया है और न ही किसी को कर रहे हैं। जहां तक जर्जर मकानों की मरम्मत का मामला है तो आवंटी लिखकर देंगे तो मरम्मत करवा देंगे। हमारे मुख्य समस्या यह है कि नागौर में कोई अधिकारी रहना ही नहीं चाहता। बिना स्टाफ काम कैसे करवाएं।
– जीएस बाघेला, मुख्य अभियंता (द्वितीय), आरएचबी, जयपुर

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