सेक्टर तीन से लिए गए 11 सैम्पल में हाउसिंग बोर्ड नागौर के तत्कालीन एक्सईएन सर्वेश शर्मा, एईएन एसएस साद, ठेकेदार जयनारायण गोदारा को आरोपी बनाया। इसी प्रकार सेक्टर 2 से लिए गए 4 सैम्पल में तत्कालीन आवासीय अभियंता पीएम डिंगरवाल व हाकमचंद पंवार, एईएन बाबूलाल मीणा, पीके माथुर व ठेकेदार जुगलसिंह को आरोपी मानते हुए प्रकरण दर्ज करने के लिए रिपोर्ट जयपुर भेजी थी।
हाउसिंग बोर्ड में घटिया निर्माण का एक अन्य मामला पिछले 8 साल से एसीबी में चल रहा है। फरवरी 2013 में आवासन मंडल के मकानों में घटिया निर्माण सामग्री के उपयोग की शिकायतें सामने आने पर एसीबी ने सेक्टर एक व 4 से 105 मकानों के सैम्पल लिए थे। हालांकि इस मामले में एफएसएल रिपोर्ट आने के बाद जुलाई 2013 में सम्बन्धित अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो गई, लेकिन अभी तक चालान पेश नहीं हो पाया है।
कॉलोनी में बनाए गए घटिया मकानों की जांच के तीन मामले एसीबी में चल रहे हैं, इसके बावजूद जयपुर में बैठे अधिकारी ठेकेदारों को भुगतान कराने का प्रयास कर रहे हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार खुद मुख्य अभियंता जीएस बाघेला पत्र पर पत्र लिखकर नागौर में अस्थाई तौर पर लगाए गए अधिकारियों पर दबाव बना रहे हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री राजे के निर्देश के बाद हाउसिंग बोर्ड ने थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन करवाया। नागौर में बोर्ड के कहने पर गवर्नमेंट कॉलेज अजमेर व एमबीएम इंजीनियरिंग कॉलेज जोधपुर की टीम ने इंस्पेक्शन कर सैंपल लिए। ये सैम्पल एचआईजी, एमआईजी- ए और बी श्रेणी के मकानों से लिए गए। जिनकी रिपोर्ट में मकानों में लगी निर्माण सामग्री को घटिया माना। एक एजेंसी ने तो एमआईजी के 54 मकानों को ध्वस्त करने की सिफारिश तक कर दी थी। जांच में पाया कि ईंटों की चिनाई कमजोर थी, टाइल की दीवार घटिया तरीके से बनाई गई थी। फर्श पर लगने वाली विक्ट्रीफाइड टाइल्स कमजोर थी। मकानों की सीढिय़ों पर बनने वाली छत कमजोर थी। मकानों की क्वालिटी के संबंध में लिए गए दो सैम्पल गुणवत्ता में फेल हो गए। इसके बावजूद हाउसिंग बोर्ड अधिकारियों ने उन मकानों को बेच दिया।
नागौर की आवासीय कॉलोनी से करोड़ों रुपए कमाने वाले आवासन मंडल ने अब अपने डेरे को समेटना शुरू कर दिया है। गत वर्ष आवासीय अभियंता का कार्यालय हटाने के बाद आवंटियों द्वारा किए गए विरोध पर अस्थाई तौर पर दो-दो महीने तारीख आगे बढ़ाई जा रही है। वहीं दूसरी ओर नागौर में स्थाई अधिकारी भी नहीं लगाया जा रहा है, जिसके चलते अधिकारी महीने में तीन-चार बार कार्यालय आते हैं, जिसके कारण आवंटियों को दस्तावेज तैयार कराने के लिए चक्कर काटने पड़ रहे हैं।
अभी हमने किसी का भुगतान नहीं किया है और न ही किसी को कर रहे हैं। जहां तक जर्जर मकानों की मरम्मत का मामला है तो आवंटी लिखकर देंगे तो मरम्मत करवा देंगे। हमारे मुख्य समस्या यह है कि नागौर में कोई अधिकारी रहना ही नहीं चाहता। बिना स्टाफ काम कैसे करवाएं।
– जीएस बाघेला, मुख्य अभियंता (द्वितीय), आरएचबी, जयपुर