गौरतलब है कि देशभर में सिर्फ नागौर में ही पान मैथी का उत्पादन होता है। ऐसा माना जाता है कि एमडीएच मसाला कम्पनी के संस्थापक महाशय धर्मपाल गुलाटी ने 70 के दशक में पंजाब के सिंध प्रांत स्थित कसूरी गांव (वर्तमान में पाकिस्तान) से इसके बीज लाकर नागौर में इसकी पैदावार शुरू करवाई थी। इसीलिए इसका नाम कसूरी मैथी हो गया। नागौर की जलवायु एवं मिट्टी इसके लिए मुफीद रही और मसाले के रूप में इसकी मांग बढ़ती चली गई। वर्तमान में इसकी पहचान ‘नागौरी पान मैथी’ के नाम से ही है। आज स्थिति यह है कि नागौर जिले में 100 से अधिक यूनिट्स मैथी प्रोसेसिंग की लग चुकी हैं, जहां हर वर्ष हजारों टन मैथी बोरियों व कर्टन में पैक होकर बाहर जा रही है।
जिला प्रशासन कर रहा प्रयास पान मैथी को जीआई टैग दिलाने को लेकर राजस्थान पत्रिका की ओर से समय-समय पर उठाए जा रहे मुद्दे के बाद जिला कलक्टर अरुण कुमार पुरोहित ने गत फरवरी माह के अंतिम सप्ताह में कमेटी गठित की थी। कमेटी ने काफी प्रयास के बाद सम्पूर्ण जानकारी जुटाकर जीआई टैग के लिए आवेदन भी कर दिया था।
नागौर में सर्वाधिक उत्पादन जानकारों का कहना है कि कसूरी मैथी भले ही बरसों पहले सिंध के कसूरी गांव से लाई गई हो, लेकिन वर्तमान में इसका सर्वाधिक उत्पादन नागौर जिले के कुछ क्षेत्र में ही होता है। नागौर, खींवसर व मेड़ता तहसील में इसका सर्वाधिक उत्पादन किया जा रहा है। यहां की जलवायु इसके लिए सबसे मुफीद साबित हो रही है। अन्य स्थानों पर इसके उत्पादन के प्रयास हुए, लेकिन कामयाबी नहीं मिली।
अब और बढ़ेगी मैथी प्रोसेसिंग की इकाइयां गत दिनों नागौर में आयोजित इन्वेस्टर मीट में बताया कि नागौर में 100 से अधिक मैथी प्रोसेसिंग की यूनिट संचालित हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अब इनकी संख्या और बढऩे की उम्मीद है, इसकी वजह राजस्थान निवेश प्रोत्साहन योजना-2024 में एग्रो प्रोसेसिंग यूनिट लगाने पर 50 प्रतिशत अनुदान को माना जा रहा है।