स्थिति यह है कि एक ओर अवैध खनन से भूमि बंजर होने लगी है, वहीं दूसरी ओर तेजी से प्रदूषण भी बढ़ रहा है। इसमें अवैध खनन कर्ताओं की प्रमुख भूमिका होने के साथ लीज धारकों एवं खान विभाग का कागजी रिकार्ड देखें तो समूचा खनन क्षेत्र हरा-भरा है। जबकि वास्तविकता पेड़-पौधे कहीं नजर नहीं आते। उड़ती धूल लोगों की सांसों में जहर खोल रही है।
खास बात यह है कि पर्यावरण विभाग बिना पौधे लगाए ही लीज धारकों की खनन अवधि बढ़ा रहा है। विभाग के आदेशों की पालना में लीजधारक भी प्रतिवर्ष लक्ष्य के अनुरूप कागजों में पौधरोपण कार्य बता कर भेज रहे हैं। अधिकारी भी गांवों में पर्यावरण संगोष्ठियां आयोजित कर खनन से होने वाले दुष्प्रभावों की जानकारियां देकर पर्यावरण बचाने की जद्दोजहद में लगे हैं। इधर, हजारों बीघा भूमि पर हो रहे अवैध खनन से पर्यावरण दांव पर लगा हुआ है।
वर्षभर में हजारों पौधे कागजों में कागजी खानापूर्ति में समूचा क्षेत्र हरा भरा वन क्षेत्र नजर आएगा। इस वर्ष भी बड़े पैमाने पर पौधे लगाने का कागजों में उल्लेख किया गया है, लेकिन मौके पर कुछ नहीं है। नाम मात्र के पौधे लगाकर फोटो खिंचवाकर खानापूर्ति की जा रही है । इन पौधों को भी लगाने के बाद कोई देखने नहीं जाता। ऐसे में सप्ताह दस दिन में पौधे झुलस कर नष्ट हो जाते है।
यहां पत्थर की खानें क्षेत्र के ग्राम माणकपुर, भावण्डा, माडपुरा, तातवास, करणू, सोननगर, भोजास, भेड़, ताडावास, बैरावास, बैराथल, आकला, महेशपुरा, देऊ, पांचौड़ी, सिणोद, टांकला सहित अनेक गांवों में सुपर ग्रेड का लाइम स्टोन का वैध एवं अवैध खनन हो रहा है।
उड़ते हैं गुबार अनेक अवैध खानों की सीमा गांवों की आबादी क्षेत्र से सटी होने के कारण खानों से उड़ते पत्थरों की धूल के गुब्बार घरों तक पहुंचते हैं। ऐसे में लोगों को गम्भीर बीमारियों में जकड़े जाने का भय सताता है। खनन के समय खानों के समीप से गुजरने वाले रास्तों पर लोगों का आवागमन भी मुश्किल हो जाता है।