नागौर की खुली जेल में पंद्रह बंदी अपनी सजा पूरी होने का इंतजार कर रहे हैं। अपना नाम बताने में हिचकते भी हैं तो किस अपराध में सजा काट रहे हैं, यह भी नहीं बताते। और बातें कर लेते हैं, घर की, गांव की तो अपने आने वाले कल की भी। अपराध का अफसोस भी खूब करते हैं तो यह भी कहते हैं कि अब अफसोस से हो भी क्या सकता है।
नागौर की खुली जेल में पंद्रह बंदी हैं जो दस कमरे में रहते हैं। कोई मजदूरी करके तो कोई नल-बिजली समेत अन्य काम कर अपनी जिंदगी पटरी लाने पर लगे हैं। अपना-अपना खाना बनाते हैं तो कभी बाहर भी खा आते हैं। हर किसी की दिहाड़ी तीन-चार सौ रुपए के करीब बैठ जाती है। अपने ही साथियों से रात को या तसल्ली में जब भी बात होती है तब अपने परिवार की यादों के साथ जिम्मेदारी का जिक्र करते रहते हैं। किसी को अपने छोटे-छोटे बच्चों से दूर होने का मलाल है तो किसी को बिटिया के ब्याह करने से पहले रिहा होने की जल्दी। अपराध भी लगभग एक सा और जिंदगी भी लगभग एक सी गुजर रही है। अपराध के बाद असल में बहुत कुछ भुगतना पड़ता है, यह इनसे सुना जा सकता है।
घर जाने की जल्दी जमीन विवाद में हत्या की, करीब दो साल से खुली जेल में है। लक्ष्मीनारायण (काल्पनिक नाम) का कहना है कि सजा को थोड़ा समय बाकी है। रोजाना कमठे पर जाता हूं। खाना बनाकर खाकर निकलता हूं, शाम करीब छह बजे वापस जेल में अपने ठिकाने पर लौट आता हूं। अपराधी को काम मिलना ही मुश्किल होता है, समय व हालात से हुए अपराध की बदनामी कभी नहीं मिटती, कुछ लोग ही अपराधियों से भला व्यवहार करते हैं। अपराध कोई भी हो, अपने साथ परिवार की जिंदगी तक बर्बाद कर देता है। हर रोज जब भी खाली होता हूं, घर जाने की सोचता हूं। परिवार से दूर रहना ही एक सजा है, फिर मैंने तो जेल में कई बरस बिताए हैं।
अजीब सा खालीपन है चिरंजीलाल (काल्पनिक नाम) भी यहां डेढ़ बरस से रह रहे हैं। मजदूरी कर अपनी सजा काट रहे हैं। खुली और बंद जेल का फर्क समझाते हैं कि बस इसमें दिनभर आप मजदूरी कर सकते हो, बाहर जा सकते हो। शाम को तय समय पर लौटना जरूरी है। अपने जैसों के बीच ही रहता हूं पर खालीपन सताता है परिवार से दूर रहने का।
सबकी जुबान पर लगभग एक सी बातें खुली जेल में बची सजा काट रहे सभी बंदी लगभग एक से ही हैं। बातचीत करने में झिझकते हैं तो घर वालों के बारे में भी ज्यादा कुछ नहीं बोलते। अपनी कमाई का जिक्र सब कर लेते हैं तो कुछ घर भेजने की बात भी कबूल करते हैं। हर कोई घर लौटने के लिए छटपटा रहा है। दिन में कभी-कभार घर से कोई मिलने आ जाता है तब इनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता। उनके जाते ही चेहरे पर छाई उदासी कई दिनों तक नहीं हटती।
खुली जेल बढ़ाने का प्रस्ताव सूत्रों का कहना है कि कुछ समय पहले खुली जेल बढ़ाने का प्रस्ताव मुख्यालय भेजा गया था। करीब पचास बंदियों के हिसाब से खुली जेल बनाने की तैयारियां तो तब शुरू हो जब प्रस्ताव के साथ बजट पारित हो। इस बीच नई जेल बनाने की कवायद तीन साल से चल रही है। ऐसे में खुली जेल यहां बढ़ेगी, इस पर सवालिया निशान लग सकता है।
इनका कहना नागौर की खुली जेल में अभी पंद्रह बंदी रह रहे हैं। नियम-कायदे से रोजाना काम पर जाते हैं, अच्छे व्यवहार के साथ रविवार अथवा छुट्टी के दिन जेल में साफ-सफाई में भी हाथ बटाते हैं। जिंदगी को पटरी पर लाने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं।
-राज महेंद्र, जेलर, नागौर जेल।