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औरैया में 24 श्रमिकों की मौत और मुजफ्फरनगर में हुए सड़क हादसे में 6 मजदूरों की मौत के बाद प्रदेश सरकार ने श्रमिकों को लेकर कड़ा रुख अपनाते हुए मुख्यमंत्री ने प्रदेश के सभी जिलों के अधिकारियों को निर्देश जारी कर जिलों की सीमा में पैदल, साइकिल-मोटर साइकिल या ट्रक में बैठकर आ रहे प्रवासी श्रमिकों को वही रोकने और भोजन के साथ ही उन्हें गंतव्य स्थान तक पहुंचाने के लिए बसों से व्यवस्था कहा था। लेकिन जमीन पर कहीं भी मुख्यमंत्री के आदेश का असर दिखाई नहीं दे रहा है। अगर बात मुजफ्फरनगर प्रशासन की करें तो मुख्यमंत्री के आदेश आते ही जिले का प्रसासनिक तंत्र अलर्ट हो गया और जिले के डीएम एसएसपी ने मुजफ्फरनगर से लगते बॉर्डर पर भ्रमण कर सारी व्यवस्थाओं का जायजा लिया। इस दौरान वे जिले की सीमांत बॉर्डर पर जाकर अधीनस्थों को आदेश दिए कि प्रवासी मजदूरों का हाई-वे पर पलायन रोका जाए। इसके साथ ही बसों का इंतजामकर मजदूरों को गंतव्य स्थान पर छोड़ने की व्यवस्था की जाए।
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जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अभिषेक यादव ने देर रात एक पत्र जारी कर सभी थाना चौकी प्रभारियों को आदेशित किया है कि प्रवासी श्रमिक कोई भी सड़क पर पैदल या अपने वाहन से ना चले उसको तुरंत रोक जाए। अगर किसी चौकी क्षेत्र में हाई-वे पर श्रमिकों का पैदल या दुर्दांत तरीके से मूवमेंट हुआ तो उसमें सीधे तौर पर थाना प्रभारी और चौकी प्रभारी इसके लिए जिम्मेदार होंगे। तुरंत वाहनों की चेकिंग करें और यदि कोई मजदूर ट्रक या किसी वाहन में बैठकर या पैदल या फिर अपने निजी वाहन से जा रहे हैं तो उनको भी उतार उनके खाने और उनको गंतव्य स्थान की ओर भेजने के लिए बस की व्यवस्था की जाए, लेकिन जिले के आला अधिकारियों द्वारा अधीनस्थों को दिया आदेश सिर्फ हवा हवाई साबित होता दिखाई पड़ रहा है। जब दूसरे राज्यों से आ रहे श्रमिकों का हाईवे पर लगातार आवाजाही का रियल्टी चेक किया गया तो रात 12 बजे के करीब मुज़फ्फरनगर के स्टेट हाई-वे सहारनपुर के बॉर्डर रोहाना स्थित टोल प्लाजा पर नज़ारा कुछ और ही देखने को मिला। जब मीडिया का कैमरा चला तो एक ट्रक को पुलिस ने रोकर जब उसकी तलाशी ली तो उसमें लगभग 75 प्रवासी मजदूर मिले। इनमें महिला, पुरुष और बच्चे ट्रक के अंदर बैठकर बंगाल जा रहे थे। जब एक मजदूर से पूछा गया कि आप कहां से आए हो और कहां जा रहे हो, तो उसने जानकारी दी कि हमने यह ट्रक बंगाल के लिए किया है। इसके लिए हमने 1500-1500 रुपए पर व्यक्ति भाड़ा ट्रक चालक से तय हुई है। इसके बाद पुलिस ने तुरंत ट्रक चालक को हिरासत में ले लिया। फिर सभी ट्रक सवार श्रमिकों को चरथावल में बने क्वारटीन सेंटर भिजवा दिया गया।
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वहीं, दूसरी डीसीएम गाड़ी में 35 प्रवासी श्रमिक महिला, पुरुष और बच्चे सवार थे, जिनको पूरी तरह गाड़ी के ऊपर से त्रिपाल से कवर कर ले जाया जा रहा था, न तो कही हवा लगने की व्यवस्था थी और न ही पानी और खाने का ही इंतजाम था। ये सभी लोग सहारनपुर से शाहाजनपुर के लिए बैठाए गए थे, जिसको वहां लगे पुलिस टीम ने उनकी कोई व्यवस्था न कर दोबारा गाड़ी को सहारनपुर के लिए वापस कर दिया। यहां तैनात पुलिस वालों ने न तो किसी अधिकारी को सूचना दी और न ही कोई व्यवस्था की। सिर्फ डयूटी करने की ओपचारिकता निभाने का काम होता रहा। सरकार के सख्त आदेश होने के बाद जिले के डीएम और एसएसपी तो एक्शन में आ गए हैं, लेकिन ग्राउंड जीरो की हक़ीक़त कुछ और ही बया करती दिखाई पड़ती है। अगर देखे तो चौकी प्रभारी रोहाना ने भी टोल पर रुके श्रमिकों को उसी गाड़ी से वापस टोल से लौटा दिया। जहां से गाड़ी चालक उनको रोहाना टोल तक लाया था। ऐसी स्थिति में बेचारे मजदूर की परेशानी और बढ़ती नजर आ रही है। उनके पास इसके अलावा कोई और चारा नहीं है कि या तो वापस वहीं पीछे जाएं, नहीं तो पुलिस के डंडे खाए।
सड़कों पर डयूटी कर रहे पुलिसकर्मीयों को प्रवासी मजदूरों के लिए आए शासन से आदेश कोई मायने नहीं रखते, जबक आज भी प्रदेश में 2 घटनाएं होने के बाद प्रवासी श्रमिकों के लिए जिला प्रशासन कोई ठोस व्यवस्था नहीं बना पा रहा है। प्रशासन हाई-वे पर न तो इन मजदूरों के लिए कोई खाने की व्यवस्था कर पा रहा है और न ही मेडिकल चेकिंग या रुकने की व्यवस्था ही सुनिचित कर पा रहा है। लाचारी में कुछ मजदूर अब भी सड़कों पर सोते दिखाई दे रहे हैं। व्यवस्था में लगे पुलिसकर्मी सिर्फ मजदूरों को यहां से वहां भगाकर अपनी ड्यूटी का फ़र्ज़ निभाते नज़र आ रहे हैं। हालांकि, ये पुलिसकर्मी अफसरों की नज़र में अपनी डयूटी बखूभी निभा रहे हैं, जबकिं जमीनी हकीकत कुछ और ही बया कर रही है, क्योंकि जहां से वो आये हैं। वहीं वापस भेज कर अपना पल्ला झाड़ने का काम देर रात चेकिंग में लगी पुलिस करती दिखी।