भारतीय विदेश सेवा के पूर्व अधिकारी और जाने-माने लेखक ज्ञानेश्वर मुले की हिंदी में अनुवादित किताब ‘नौकरस्याही के रंग’के विमोचन कार्यक्रम में नितिन गडकरी पहुंचे थे। उन्होंने इस दौरान लोगों को संबोधित किया और कहा एक पुराना किस्सा सुनाया जब उन्होंने क्यों कहा था कि मंत्रीपद गया तो गया लेकिन मुझे फर्क नहीं पड़ता है। यह कार्यक्रम दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA) के सम्वेत ऑडिटोरियम में 23 अगस्त की शाम को आयोजित किया गया था।
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी हमेशा से ही अपने बेबाक और बिंदास स्वभाव के लिए जाने जाते रहे हैं। वे राजनीति में रहने के बावजूद बेधड़क होकर अपनी राय रखते हैं। दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए नितिन गडकरी ने कुपोषण के मुद्दे पर टिप्पणी की। इस मौके पर उन्होंने एक पुराना किस्सा सुनाते हुए याद किया कि कैसे उन्होंने अधिकारियों से कहा था कि मंत्रीपद गया तो गया लेकिन मुझे फर्क नहीं पड़ता है।
गडकरी ने कहा कि आपका फैसला गरीबों के हित में है और वह न्याय पाना चाहते हैं, तो कानून तोड़ दें ऐसा महात्मा गांधी ने कहा था। लेकिन अगर कोई व्यक्तिगत हित या कोई अन्य उद्देश्य है, तो यह गलत है। उन्होंने कहा कि जब मैं महाराष्ट्र में मंत्री था तब अमरावती जिले के मेलघाट में 2500 बच्चों की कुपोषण से मौत हुई थी। इसके बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी काफी बवाल हुआ था। उस समय हमारे मुख्यमंत्री मनोहर जोशी थे कि सही हालात क्या है, मेलघाट के 450 गांवों में सड़क क्यों नहीं है?
उन्होंने कहा कि एक मंत्री के तौर पर मैं बैठकें करता था। एक बार मनोहर जोशी ने अधिकारी से पूछा ‘क्या आपको नहीं लगता कि इतने लोग मारे गए हैं? बच्चे स्कूल नहीं जा सकते, बिजली नहीं है और आप वन पर्यावरण कानूनों के तहत कुछ भी करने की अनुमति नहीं देते हैं। जिस पर अधिकारी ने जवाब दिया था ‘माफ करना, लेकिन मैं लाचार हूं, कुछ नहीं कर सकता। इस दौरान मंत्रिपद को लेकर गडकरी ने अधिकारियों से ये बाते कही थी।