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मुंबई

बाल ठाकरे के बेहद करीबी थे मनोहर जोशी, एक फरमान पर छोड़ा CM पद, फिर क्यों बढ़ी मातोश्री से दूरी?

Manohar Joshi Death: शिवसेना के पहले मुख्यमंत्री और वरिष्ठ नेता मनोहर जोशी का आज तड़के निधन हो गया।

मुंबईFeb 23, 2024 / 02:02 pm

Dinesh Dubey

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जोशी सर और मातोश्री के बीच क्यों बढ़ी दूरी?

पूर्व लोकसभा अध्यक्ष व महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर जोशी ने आज (23 फरवरी) दुनिया को अलविदा कह दिया। 86 साल के वरिष्ठ शिवसेना नेता जोशी को 21 फरवरी को दिल का दौरा पड़ा था। उन्हें मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में ICU में भर्ती कराया गया था। इलाज के दौरान आज तड़के 3 बजे उनका निधन हो गया।
कट्टर शिवसैनिक मनोहर जोशी का 1976 से शुरू हुआ राजनीतिक सफर आज थम गया है। महाराष्ट्र ने जुझारू नेता व मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष जोशी के निधन से शोक की लहर दौड़ पड़ी। उन्होंने पार्षद, महापौर, विधायक, विपक्ष के नेता, मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा सांसद के तौर पर अपनी सियासी यात्रा पूरी की। उनका स्वाभाव शांत, संयमित था, उन्हें वाइट कॉलर नेता के रूप में जाना जाता था। सभी प्यार से उन्हें ‘जोशी सर’ कहते थे।
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जोशी पर बालासाहेब को था पूरा भरोसा

मनोहर जोशी बालासाहेब ठाकरे के बेहद भरोसेमंद और करीबी सहयोगी थे। नवंबर 2012 में बालासाहेब ठाकरे का निधन हो गया। इसके बाद दादर के शिवाजी पार्क मैदान में हुए शिवसेना की दशहरा रैली में बड़ी घटना हुई। उस वक्त जब मनोहर जोशी मंच पर आए तो कुछ शिवसैनिकों ने उनके खिलाफ नारेबाजी की। जिसके बाद पार्टी के कद्दावर नेता को मंच छोड़कर जाना पड़ा। दिलचस्प बात यह है कि उद्धव ठाकरे ने भी उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की। यहां तक की उद्धव ठाकरे ने अपने भाषण में कहा था कि मैं तानाशाही बर्दाश्त नहीं करूंगा।
बालासाहेब ठाकरे ने मनोहर जोशी को मुख्यमंत्री बनाया था। वह शिवसेना के पहले सीएम थे। भले ही जोशी मुख्यमंत्री थे, लेकिन सत्ता का रिमोट कंट्रोल बालासाहेब के पास था। जब 1999 में पुणे में एक प्लॉट को लेकर जोशी पर कई आरोप लगे तो बाल ठाकरे ने उन्हें पद से इस्तीफा देने का फरमान सुनाया। इसके बाद जोशी ने बालासाहेब के आदेश पर ही मुख्यमंत्री पद छोड़ दिया। 1999 में ही शिवसेना और बीजेपी की गठबंधन सरकार राज्य से विदा हो गई। लेकिन उसी साल हुए लोकसभा चुनाव में मनोहर जोशी मुंबई मध्य सीट से जीतकर लोकसभा में पहुंच गए। जोशी 2002 से 2004 तक केंद्र की वाजपेयी सरकार में लोकसभा अध्यक्ष के पद पर रहे थे। वह राज्यसभा सांसद भी बने।

गढ़ में लगी सेंध तो जोशी सर आउट..

कहते है 2004 से मनोहर जोशी के राजनीतिक करियर का ग्राफ गिरने लगा। वह उत्तर मध्य मुंबई लोकसभा क्षेत्र से चुनाव हार गए। शिवसेना के गढ़ मुंबई में पूर्व मुख्यमंत्री जोशी की हार शिवसेना के लिए शर्मिंदगी की वजह बन गई। इसके बाद भी बाला साहेब ने उन्हें शिवसेना से राज्यसभा भेजा था।
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उद्धव युग शुरू

2009 में मनोहर जोशी एक बार फिर लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते थे। लेकिन उन्हें टिकट नहीं दिया गया। राज्यसभा में उनका कार्यकाल ख़त्म होने के बाद उनकी जगह अनिल देसाई को मौका दिया गया। इस दौरान शिवसेना में टिकट बांटने का पूरा अधिकार उद्धव ठाकरे के पास चला गया था। राज ठाकरे, नारायण राणे जैसे नेताओं ने शिवसेना छोड़ दी थी। शिवसेना में उद्धव युग शुरू हो चुका था। दरअसल स्वास्थ्य कारणों से बाल ठाकरे शिवसेना के कामकाज से दूर हो गए थे। इस दौरान उनके वफादार मनोहर जोशी को भी ज्यादा मौका नहीं दिया गया।
इस बीच, 2012 के मुंबई नगर निगम चुनाव (बीएमसी) में मनोहर जोशी के करीबियों को दादर में ही हार झेलनी पड़ी। नई नई बनी राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने दादर में अधिकांश सीटें फते कीं। ऐसे में ये हार शिवसेना के लिए एक बड़ा झटका बन गया। जहां ‘मातोश्री’ है वहीँ दादर में शिवसेना लगातार तीन चुनाव हार गई, पहले लोकसभा, फिर विधानसभा और फिर बीएमसी चुनाव। इसके लिए जोशी की रणनीति को जिम्मेदार माना गया और उनकी आलोचना होने लगी।

जोशी सर और मातोश्री के बीच बढ़ी दूरी

इस बीच, नवंबर 2012 में बालासाहेब ठाकरे का निधन हो गया। इसके बाद पार्टी के सारे सूत्र उद्धव ठाकरे के पास चले गए। पार्टी में किनारे कर दिए गए मनोहर जोशी फिर जनता के बीच उतरने लगे। इससे ठाकरे परिवार के अधिकारिक आवास मातोश्री पर भी उनका प्रभाव बढ़ा। ठाकरे के सामने 2014 के लोकसभा चुनाव की चुनौती थी। उस वक्त जोशी ने दक्षिण मध्य मुंबई से चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी। लेकिन पिछली हार को देखते हुए उन्हें शिवसेना नेतृत्व ने फिर मौका नहीं दिया। जोशी ने जीत का भरोसा दिलाया, इसके बावजूद दक्षिण मध्य मुंबई से उद्धव ठाकरे ने राहुल शेवाले को उम्मीदवार बनाया।
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उद्धव पर साधा निशाना, बिगड़ी बात

इसके साथ ही मनोहर जोशी और मातोश्री के बीच दूरियां बढ़ती गई। एक सार्वजनिक कार्यक्रम में उन्होंने बिना नाम लिए उद्धव ठाकरे पर निशाना साधा। उस समय बाला साहेब के स्मारक का विषय चर्चा में था। जोशी ने उद्धव का नाम लिए बिना तंज कसते हुए कहा था, ‘अगर बालासाहेब को अपने पिता के स्मारक के लिए इतना इंतजार करना पड़ता तो वे सीधे सरकार को उखाड़ फेंकते…।’
फिर मनोहर जोशी के नाराज होने की चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया। इस बीच, जोशी के एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार से मुलाकात की और अटकलों को बल मिला। जोशी सर शायद शिवसेना नेतृत्व पर दबाव बनाना चाहते थे। शिवसेना ने उन्हें दक्षिण मध्य मुंबई की जगह कल्याण (ठाणे) से चुनाव लड़ने का विकल्प दिया। लेकिन इतने बड़े नेता के लिए अपना गढ़ छोड़ना मुश्किल था। समय के साथ मनोहर जोशी और उद्धव ठाकरे के बीच कथित मनमुटाव गहराता गया। इन सबका नतीजा आखिरकार दशहरा रैली में देखने को मिला। राजनीतिक गलियारों में अब भी चर्चा है कि बालासाहेब के साथ चट्टान की तरह खड़े रहने वाले जोशी सर को उद्धव की शिवसेना ने साइडलाइन किया।

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