चुनाव आयोग के नियम के तहत एक राजनीतिक दल को ‘राष्ट्रीय पार्टी’ के रूप में तब मान्यता मिलती है, जब वह लोकसभा या विधानसभा में कम से कम चार राज्यों में वैध मत का 6 फीसदी मत प्राप्त करती है तथा किसी राज्य से लोकसभा में कम-से-कम चार सीटों पर विजयी होती है। या फिर वह पार्टी कम से कम तीन अलग-अलग राज्यों से लोकसभा में 2 प्रतिशत सीटें जीतती है। इसके अलावा जब किसी राजनीतिक दल को कम से कम चार या अधिक राज्यों में राज्य पार्टी के रूप में मान्यता मिली हो, तो भी उसे ‘राष्ट्रीय पार्टी’ का दर्जा मिलता है।
एनसीपी अब इन तीनों मानकों में से किसी पर भी खरी नहीं उतरती। चुनाव आयोग के सूत्रों के मुताबिक एनसीपी का कुल वोट प्रतिशत दो से ढाई फीसदी के आसपास रह गया है। चुनाव आयोग ने मंगलवार को दिल्ली में एनसीपी के निवेदन पर फिर से सुनवाई की।
बताया जा रहा है कि एनसीपी की ओर से सांसद प्रफुल्ल पटेल और कुछ अन्य नेताओं ने आयोग के अशोक रोड स्थित मुख्यालय में शिरकत की थी और पार्टी का पक्ष रखा था। हालांकि इस संबंध में एनसीपी की ओर से कोई बयान जारी नहीं किया गया है।
मालूम हो कि चुनाव आयोग ने एनसीपी समेत चार पार्टियों के राष्ट्रीय स्तर की पार्टी होने पर सवाल उठाए थे। सितंबर 2019 में आयोग ने मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (TMC) के साथ-साथ एनसीपी को समन भेजा था। आयोग ने नोटिस जारी कर पूछा था कि 2019 लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन को देखते हुए उनकी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा क्यों नहीं रद्द किया जाना चाहिए।