शिलाहार की दक्षिणी राजधानी
राजा दामियार ने खारेपाटण को शिलाहार की दक्षिणी राजधानी बनाया था। यह गांव ऐतिहासिक विजयदुर्ग से 40 किमी दूर है। विजयदुर्ग वही बंदरगाह है, जहां विदेश से आए जलयानों से सामान उतार कर देश भर के बाजारों में पहुंचाया जाता था। व्यापारिक सुरक्षा के लिए वाघोटन खाड़ी के मुहाने पर दो किले बनाए गए थे। इनमें खारेपाटण किला और विजयदुर्ग शामिल हैं।
प्राचीन मंदिर-बौद्ध स्तूप
दोनों किलों को जोडऩे वाले मार्ग पर कई बौद्ध स्तूप, लेणी-स्तूप, पानी के कुंड, प्राचीन मंदिर आदि हैं। चालुक्य और शिलाहार राजाओं ने यहां काफी काम कराया है। मंदिरों-स्तूपों के शिल्प में उनकी छाप दिखती है। बड़ी संख्या में लोग इन्हें देखने आते हैं।
पुरानी जैन बस्ती
कोंकण की सबसे पुरानी जैन बस्ती भी इसी गांव में है। यहां से बहने वाली सुख नदी के किनारे 10वीं सदी में बनी 23वें तीर्थंकर भगवान पाश्र्ववनाथ की मूर्ति खास है। यहां छोटे-बड़े कई जैन मंदिर हैं। देश के दूसरे हिस्सों में बने जैन मंदिरों में यहां की शिल्पकला देखी जा सकती है। जैन समुदाय के लिए यह आस्था का केंद्र है।
कई प्राचीन मंदिर
खारेपाटण के आसपास कई प्राचीन मंदिर हैं। इनमें भैरी, रामेश्वर, कपालेश्वर आदि शामिल हैं। विशाल परिसरों में फैले इन मंदिरों की शिल्पकला बेमिसाल है। स्थानीय किले पर आधिपत्य के लिए कई लड़ाइयां हुईं। मातृ भूमि की रक्षा में कई भूमि पुत्र शहीद हो गए।