दोनों ही लीड एक्टरों ने अपनी ओवरएक्टिंग से दर्शकों को निराश किया है। गाने डॉयलॉग ऐसे नहीं बन पड़े कि कहा जाए यह फिल्म दर्शकों को रुचेगी। सैफ और दीपिका की लव आजकल से इसकी तुलना करें, तो यह फिल्म कहीं किसी ममाले में टिकती नहीं है। इम्तियाज के चाहने वाले सिनेमाघर से निकलते हुए कहेंगे, क्या यह फिल्म इम्तियाज अली ने बनाई है?
स्किृप्ट
फिल्म में पिछली लव आज कल की तरह दो प्रेम कहानियां एक साथ चलती हैं। लीड में हैं जोई (सारा अली खान) और वीर (कार्तिक आर्यन)। दूसरी प्रेम कहानी में रघु (रणदीप हुड्डा) और लीना (आरुषि शर्मा) आते हैं। एक नब्बे के दशक की प्रेम कहानी है, तो दूसरी आज के करियर को महत्व देने वाली जनरेशन की कहानी।
जोई अपने करियर को लेकर सजग है, वह जिंदगी के मजे लूटते हुए करियर बनाना चाहती है। वहीं वीर अपने टैलेंट के साथ समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए करियर बनाना चाहता है। वह दुनिया की दौड़ में शामिल नहीं होता। वीर जोया के पीछे-पीछे रघु के ऑफिस कैफे पहुंचता है। जहां दोनों में प्रेम होता है, पर जोया अपनी मां और दूसरों के कटु अनुभवों से कन्फ्यूज है। वह छोड़ती है, पकड़ती है, वह समझ नहीं पाती वह क्या तलाश रही है।
दूसरी कहानी रघु जोई को सुनाता है। जिसमें वह लीना के प्यार में डूबा हुआ है। साथ में पकड़े जाने के बाद मचे हंगामे के बाद, लीना को दिल्ली भेज दिया जाता है। रघु डॉक्टरी की पढ़ाई छोड़ लीना के पीछे, पीछे दिल्ली पहुंचता है। पर यहां बहुत-सी लड़कियों के साथ संबंध में वह डूब जाता है। लीना उसे छोड़कर चली जाती है। और वह एक ऑफिस कैफे शुरू करता है। यही ऑफिस कैफे है, जहां वह जोई को अपनी कहानी बताता है। कुल मिलाकर कहानी अच्छी है।
डायलॉग पंच
कुछेक अच्छे डॉयलाग रणदीप हुड्डा के मुंह से सुनने को मिले, पर कहीं ऐसा नहीं लगा कि यह इम्तियाज अली की फिल्म के डॉयलाग हैं। दोनों लीड कलाकारों ने अपनी ओवर एक्टिंग से कई अच्छे पलों को खराब बना दिया है।
एक्टिंग
एक्टिंग के मामले में फिल्म पूरी तरह से पिट गई है। रणदीप हुड्डा और आरुषि शर्मा को छोड़ दें, तो कार्तिक आर्यन और सारा अली खान ने ओवरएक्टिंग ही की है। कार्तिक वही करते नजर आए हैं, जो पिछली सारी फिल्मों में करते रहे हैं। किरदार को पकड़ने में दोनों लीड बुरी तरह विफल रहे हैं। इतने कि अच्छी कहानी और बेहतरीन डायरेक्टर भी इसे फिल्म को संभाल नहीं पाए।
फिल्म में जितने हिस्से में रणदीप पर कैमरा है, वह देखने लायक बना है। इसी तरह आरुषि ने भी अपनी छोटी-सी भूमिका बेहतर रूप से अदा की है। इस फिल्म के ज्यादातर कलाकार ओवर एक्टिंग करते नजर आए हैं।
डायरेक्शन
इम्तियाज के प्रेमी इस फिल्म को देखकर बेहद निराश होंगे। किसी को आशा होगी कि इम्तियाज अली जैसा डारेक्टर ऐसी एक्टिंग को ओके बोल सकता है। इसके बावजूद फिल्म के कई सीन बेहतर बने हैं। इम्तियाज फ्रेम तो बेहतर करते ही हैं, इस फिल्म में भी यह नजर आई है। पर वास्तव में इस फिल्म में इम्तियाज का जादू कहीं खो सा गया है।
सिनेमैटोग्राफी ठीक है। लोकेशंस और एडिटिंग भी ठीक है।
क्यों देखें
अगर आप वैलेंटाइन के समय लव स्टोरी देखना चाहते हैं, तो एक बार देख सकते हैं।
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