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मथुरा-वृंदावन: 1875 में 10 गांव की जागीर खर्च कर बनाया गया है ये मंदिर

शहर के सबसे बड़े जलाशय हनुमानताल के किनारे स्थित गोपाल लालजी का मंदिर परमार्थ में शुद्धाद्वैत और व्यवहार पक्ष में पुष्टिमार्ग पर आधारित है।

Aug 27, 2016 / 04:10 pm

Abha Sen

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जबलपुर। मंदिर की समस्त पूजा-अर्चना मथुरा-वृंदावन की परम्परानुसार होती हैं। जिसमें दर्शन, भोग, आरती एवं शयन का समय निश्चित है। वैश्य समाज की मालपाणी शाखा से संबंद्ध सेठ सेवादास जैसलमेर से 1850 के आसपास पैदल चलकर जबलपुर आए। तब बेलखाड़ू में रहकर वहीं से व्यापार आरंभ किया। सन् 1875 में मंदिर निर्माण की नींव रखी। जिसे पूरा करवाने में राजा गोकुलदास ने बीड़ा उठाया। उस दौरान 10 गांव की जागीर मंदिर निर्माण में खर्च करने का आदेश दिया।

राजा गोकुल दास के पिता सेठ सेवादास जी ने इस मंदिर का निर्माण करवाया। मूर्ति स्थापना और प्राण प्रतिष्ठा काशी पीठ के आचार्य गिरधर के द्वारा करवाई गई। जैसलमेर से मूर्तियां मंगवाई गईं। शहर के सबसे बड़े जलाशय हनुमानताल के किनारे स्थित गोपाल लालजी का मंदिर परमार्थ में शुद्धाद्वैत और व्यवहार पक्ष में पुष्टिमार्ग पर आधारित है इसलिए मंदिर में राधा-कृष्ण की प्रतिमाएं स्थापित होती हैं।


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मंदिर के पट समयानुसार खुलते और बंद होते हैं। वर्तमान में इस मंदिर का पूरा कार्य-भार मंदिर ट्रस्ट द्वारा संभाला जा रहा है।अपने अनोखे निर्माणकार्य की वजह से इसकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक तक है। पुरानी और लाजवाब नक्काशी भी लोगों को आकर्षित करती है। इसे देखते ही राजसी ठाठ-बाट का चित्रण होने लगता है।

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