जबलपुर। अघोरा चतुर्दशी भाद्रपद कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के दिन मनाई जाती है। इसे स्थानीय भाषा में डगयाली भी कहा जाता है। इस बार ये 30 अगस्त को मनाई जा रही है। यह पर्व दो दिन तक चलता है, जिसमें प्रथम दिन को छोटी डगयाली और उसके अगले दिन अमावस्या को बड़ी डगयाली कहते हैं।
-शास्त्रों में इसे कुशाग्रहणी अमावस्या या कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा जाता है। यह अघोर चतुर्दशी भगवान शिव के भक्तों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। अघोरा चतुर्दशी के दिन तर्पण कार्य भी किए जाते हैं। मान्यता है कि इस दिन शिव के गणों भूत-प्रेत आदि सभी को स्वतंत्रता प्राप्त होती है।
-ग्रामीण क्षेत्रों में परिजन को बुरी आत्माओं के प्रभाव से बचाने के लिए लोग घरों के दरवाजे व खिड़कियों पर कांटेदार झाडिय़ों को लगाते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।
-अघोरा चतुर्दशी मध्यप्रदेश के कुछ ग्रामीण क्षेत्रों, हिमाचल के अलावा उत्तराखंड, असम, सिक्किम और नेपाल में भी मनाई जाती है।
-इस दिन कुशा को धरती से उखाड़कर एकत्रित करके रखना शुभ माना जाता है। इस दिन व्रत, स्नान, दान, जप, होम और पितरों के लिए भोजन, वस्त्र आदि देना उत्तम रहता है।
-शास्त्रों के हिसाब से इस दिन प्रात: काल स्नान करके संकल्प करें व उपवास रखें। कुश अमावस्या के दिन किसी पात्र में जल भरकर कुशा के पास दक्षिण दिशा की ओर अपना मुख करके बैठ जाएं व अपने सभी पितरों को जल देकर अपने घर-परिवार, स्वास्थ्य आदि की शुभता की प्रार्थना करनी चाहिए।
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