चाबहार प्रॉजेक्ट पर नहीं पड़ेगा ईरान पर लगे प्रतिंबधों का असर: अमरीका
क्या है अमरीका का दोहरा खेल ?पुलवामा हमले के बाद अमरीका ने भारत का समर्थन किया। दिल्ली जो यूएनएससी में अमरीकी समर्थन पर निर्भर है, उसके पास अमरीकी समर्थन के बिना सुरक्षा परिषद् में चीन और पाकिस्तान की कोशिशों से लड़ पाना बेहद मुश्किल काम है। अमरीका यह बात बखूबी जानता है। पहले तो अमरीका ने भारत को इस मुद्दे पर खुलकर समर्थन दिया उसके बाद उसने एक झटके में ईरान से तेल आयात की छूट समाप्त की। यहाँ इस बात पर गौर करना जरूरी होगा कि भारत चीन के बाद ईरान से तेल खरीदने वाला दूसरा सबसे बड़ा खरीदार है। भारत के लिए छूट 1 मई को समाप्त हो जाती है, यानी कि 2 मई से भारत ईरान से तेल आयात नहीं कर सकता है अन्यथा इसके स्वामित्व वाली या निजी संस्थाएं अमरीकी प्रतिबंधों का सामना करेंगी। वाइट हाउस ने ईरानी तेल खरीदने के लिए छूट को समाप्त करने की घोषणा के साथ दिल्ली को सूचित किया है कि वह पुलवामा हमले के बाद आतंकवाद का मुकाबला करने पर भारत के साथ हर कदम पर खड़ा हुआ है और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा ईरान के आतंकी नेटवर्क को तबाह करने की प्रतिबद्धता पर पारस्परिकता की उम्मीद करता है।
दिल्ली के साथ अपनी बातचीत में ट्रम्प प्रशासन ने यह भी आश्वासन दिया है कि चाबहार बंदरगाह परियोजना के विकास की छूट जारी रहेगी।हालांकि अमरीका ने यह भी साफ़ किया है कि भारत को तेल आयात पर छूट को रोकने का उसका निर्णय “ईरानी शासन की दुर्भावना को बदलने” के अपने उद्देश्य से निर्देशित है। असल में ईरान की कमर तोड़ने के लिए वाइट हाउस ने सोमवार को कहा कि वह अब ईरान के तेल ग्राहकों को प्रतिबंधों को छूट नहीं देगा। भारत और अमरीका के अधिकारियों के बीच वर्तमान में इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए काफी गहन परामर्श चल रहे हैं। माना जा रहा है अमरीका ने भारतीय अधिकारियों से कहा है कि उसकी नीति ईरान पर “अधिकतम दबाव” डालने के लिए डिज़ाइन की गई है, और यह भारत के खिलाफ कतई नहीं है।
ईरान ने अमरीकी सेना को ‘आतंकवादी’ करार दिया, संसद ने दी मंजूरी
अजहर मसूद मामले पर समर्थन की क्या होगी कीमतजैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर को “वैश्विक आतंकवादी” घोषित करने के लिए अमरीका संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में किये जा रहे प्रयास का नेतृत्व कर रहा है। बीजिंग के विरोध के कारण इस समय अमरीका फ्रांसीसी और ब्रिटिश वार्ताकारों के साथ काम कर रहा है। जब 14 फरवरी को पुलवामा हमले के बाद UNSC ने निंदा बयान जारी किया था तो इसके पीछे भी अमरीकी अधिकारियों का ही हाथ था। विदेश सचिव विजय गोखले ने 26 मार्च को बालाकोट हवाई हमले के बाद 11 मार्च को वाशिंगटन डीसी का दौरा किया था और अजहर मामले की लिस्टिंग के लिए यूएनएससी की समय सीमा 13 मार्च को थी।