राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप के लिए कड़ी टक्कर
आगामी चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप को अपने डेमोक्रेटिक प्रतिद्वंदी बर्नी सैंडर्स से कड़ी टक्कर की आशंका है। ट्रंप दोबारा सत्ता में आने के लिए जी-जान से कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उनको अभी तक अपनी दावेदारी मजबूत नहीं दिख रही है। इसके चलते ट्रंप को आखिरकार भारत का सहारा लेना पड़ रहा है। भारत दौरे पर आए ट्रंप पूरी कोशिश कर रहे हैं कि वो अमरीका के भारतीय वोटरों को रिझा सकें और उनके बल पर अपनी चुनावी नैया पार लगा सकें।
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पूरे नहीं हुए हैं ट्रंप के पिछले वादे
ट्रंप अपने पिछले चुनावी वादों पर खरे नहीं उतर पाए हैं। एक तरफ जहां ईरान से टक्कर लेने का उनका जुआ असफल रहा है। खुद अमरीका के लोगों ने उनके ईरान पर कार्रवाई के खिलाफ प्रदर्शन किया। वहीं, अफगानिस्तान को लेकर भी उनका पुराना वादा अभी तक पूरा नहीं हो सका है। ऐसे में उनके लिए सैंडर्स ने आगे निकलना एक कड़ी चुनौती होगी। सैंडर्स ने पिछले शनिवार को नेवादा डेमोक्रेटिक प्रेसिडेंशियल कॉकस में जोरदार जीत दर्ज की, जिसे एक राजनीतिक टिप्पणीकार ने ‘अमरीकी जीवन में एक नया युग’ बताया।
भारतीय वोटरों को रिझाएंगे ट्रंप?
इन्हीं सब कारणों के चलते बिना किसी व्यापार समझौते को ध्यान में रखते हुए भी ट्रंप भारत दौड़े आए। ट्रंप को उम्मीद है कि इसके बाद अमरीका में बड़े पैमाने पर उनके पक्ष में भारतीय समुदाय के वोट पड़ेंगे। वैसे तो अपने पहले कार्यकाल के दौरान ट्रंप ने ‘अमरीका फर्स्ट’ का विजन रखते हुए कई ऐसी नीतियां बनाईं जिसके चलते वहां रह रहे भारतीयों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। हालाकिं, अब वो इन्हीं वोटरों को रिझाने में जुटे हुए हैं।
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तालिबान समझौते से ठीक पहले यात्रा
इसके अलावा एक और बात जो ध्यान में रखनी चाहिए वो यह है कि ट्रंप 29 फरवरी को तालिबान के साथ एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए जा रहे हैं। तालिबान ने इस शांति समझौते के तहत ‘हिंसा में कमी’ पर सहमति व्यक्त की है। हालांकि, उन्होंने संघर्ष विराम की प्रमुख अमरीकी मांग को खारिज कर दिया। बता दें कि कि यह वही मांग थी जिसके चलते ट्रंप ने पिछले साल सितंबर में इस समझौते को बंद कर दिया था। हालांकि, वक्त के साथ ट्रंप ने इस समझौते को लेकर ‘समझौता’ कर लिया है। दरअसल, वो किसी भी हाल में अपना 2016 का चुनावी वादा पूरा करना चाहते हैं। अगर समझौते पूरी तरह से न भी हो तब भी इसके ऐलान भर से ट्रंप चुनाव में इसका फायदा उठा सकते हैं।
भारत को मना रहा है अमरीका
इस समझौते में अब तक अमरीका और तालिबान के अलावा पाकिस्तान भी मुख्य किरदार में था। पाकिस्तान के तालिबान के साथ अच्छे रूख का अमरीका फायदा उठा रहा था। हालांकि, पाकिस्तान को मिल रही तरजीह भारत को नागवार थी। इसके अलावा अमरीका जानता है कि पाकिस्तान कभी भी फिसल जाने वाला ग्राहक है। ऐसे में उसे फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स ग्रे सूची का उपयोग करके तंग पट्टा के तहत रखा जाना चाहिए।
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इसके अलावा भारत ने अफगानिस्तान में भारी निवेश किया है। ऐसे में इस समझौते में अगर वो नहीं शामिल होता तो भारत के हितों की रक्षा करने वाला कोई नहीं होगा। ऐसे में ट्रंप को लगा कि द्विपक्षीय रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने के लिए भारत को अफगानिस्तान के पाश में रखने का समय आ गया है। और संभवत: इसलिए ही इस समझौते से पहले ट्रंप ने भारत यात्रा की जल्दी दिखाई।