पिछले पांच दिनों में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पांच किस्तों में विशेष राहत पैकेज की घोषणा विस्तार में की। राहत पैकेज के तहत सरकार ने सभी को किसी न किसी रूप में राहत देने की कोशिश में जुटी है। इस पैकेज के तहत केंद्र सरकार ने सबसे ज्यादा जोर प्रवासी मजदूर, गरीब, किसान, खेती, ग्रामीण अर्थव्यवस्था, एमएसएमई, लघु उद्योग, बड़े उद्योग, पशुपालन विकास, आधारभूत ढांचों में विकास, व्यापारी सहित कारोपोरेट घरानों को भी सुविधा मुहैया कराने जैसे प्रावधन शामिल हैं।
केंद्र सरकार ने मजदूरों को घर पहुंचाने से लेकर उन्हें अपने गांव में रोजगार मुहैया कराने के लिए भी अलग से पैकेज की घोषणा की है। यानि सरकार ने पांच किस्तों में गरीब से लेकर अमीर, शहर से लेकर गांव, कुशल से लेकर अकुशल श्रमिकों की चिंता की है ।
सभी स्तरों पर प्रयासों के बावजूद अहम सवाल यह है कि इन सबके पीछे सरकार की मंशा क्या है? आइए हम आपको बताते हैं कि लाखों करोड़ रुपए की पैकेज के पीछे सरकार की मंशा…
Corona Crisis : याकूब ने अंत तक नहीं छोड़ा अमृत का साथ, पेश की इंसानियत की मिसाल 1. सरकार की पहली मंशा यह है कि कोरोना वायरस और लॉकडाउन की वजह से पटरी से उतरी देश की अर्थव्यवस्था को ट्रैक पर लाने की है। यह कोई नई बात नहीं है। 2008 में भी ग्लोबल इकॉनोमिक क्राइसिस के समय भी भारत सरकार ने कई कदम उठाए थे। लेकिन कोरोना क्राइसिस उससे कई गुना ज्यादा घातक समस्या है। इसलिए सरकार अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने को लेकर गंभीर दिखाई दे रही है।
2. लॉकडाउन की वजह से मोदी सरकार के सामने अपने ही नारों को सही साबित करने का संकट उत्पन्न हो गया है। आपको याद होगा 2019 में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद मोदी सरकार ने सबका साथ और सबका विकास की जगह सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास का नारा दिया था। अब उसी नारे को सही साबित करना केंद्र सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। यही वजह है कि केंद्र सरकार ने 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज की घोषणा पांच किस्तों में की है। ताकि देश जनता को भरोसा हो सके कि सरकार सभी को साथ लेकर चलने के प्रति पहले की तरह प्रतिबद्ध है।
3. चूंकि कोरोना संकट आर्थिक संकट के साथ एक मानवीय समस्या भी है, इसलिए सरकार इस चुनौती से पार पाने के लिए जनता को हर योजना में सहभागी बनाना चाहती है। ताकि सामुदायिक सहभागिता के आधार पर इस कठिन लक्ष्य को हासिल किया जा सके। सरकार को भरोसा है कि अगर इसमें जनता का साथ मिल जाए तो इस संकट से उबरा जा सकता है। इसलिए सरकार सबको भरोसे में लेने की कोशिया में जुटी है।
Economic Package : पशुपालन विकास पर मोदी सरकार मेहरबान, 28,343 करोड़ का ऐलान 4. केंद्र सरकार को शुरू से ही पता है कि कोरोना वायरस महामारी को निपटने के लिए उसने जिस लॉकडाउन की घोषणा की उसकी बड़ी कीमत देश और आम लोगों को चुकानी पड़ेगी। इसलिए सरकार इससे निपटने की योजना पर पहले से काम कर रही थी। यही वजह है कि इस महामारी के कहर से लोगों और देश को बचा लेना को लेकर सरकार सबसे बड़ जद्दोजहद में जुटी है।
5. एक खास बात यह भी है कि केंद्र सरकार के सामने पहली बार ऐतिहासिक संकट यह उठ खडी हुई है कि इस बार सकल घरेलू उत्पाद पिछले साल की तुलना में कम हो सकता है। अगर ऐसा हुआ तो सरकार की बहुत बड़ी किरकिरी होगी। राहुल गांधी और पी. चिदंबरम के आरोप आगामी महीनों में सच साबित हो सकते हैं। भविष्य में इसका लाभ कांग्रेस उठा सकती है। सरकार की एक चिंता ये भी हो सकती है वो कांग्रेस को इसका लाभ न उठाने दे।
6. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शब्दों में कहें तो लॉकडाउन के पीछे सोच एक ही थी- जान है.., तो जहान है…। वैसे दुनिया के सभी देश इसी रणनीति पर चल रहे हैं। लेकिन यह लड़ाई कई स्तरों पर काफी जटिल भी है, इस बात का अहसास अब मोदी सरकार को होने लगी है।
मोदी सरकार को प्रवासी मज़दूरों की भूख का ख़्याल, हर महीने देगी गेहूं, चावल और दाल 7. सत्ताधारी पार्टी बीजेपी को इस बात का पता चल गया है कि देश को नुकसान पहुंचने का अर्थ है सीधे तौर पर लोगों की माली हालत का और खराब होना।खासकर रोज कमाने और खाने वाले लोगों के लिए तालाबंदी एक मुसीबत की तरह है। उनका काम-धंधा ही बंद नहीं हो गया, बल्कि उनके जीने का जरिया भी चला गया है।
इस बात को ध्यान में रखते हुए अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने देश में लॉकडान लागू नहीं करना चाहते थे। लेकिन कोरोना क्राइसिस और वैश्विक दबावों के आगे उन्हें भी देर से ही सही लॉकडाउन लागू करना पड़ा।