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पति हुए थे शहीद, अब देश के शहीदों की जंग लड़ रही है सुभाषिणी वसंत

26 जुलाई, 1999 में हुए करगिल युद्ध में शहीद होने वाले सैनिकों की कहानियां भी कुछ ऐसी ही हैं

Jul 26, 2017 / 01:58 pm

सुनील शर्मा

subhashini basant

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नई दिल्ली। सीमा पर लड़ते हुए जब जवान शहीद होता है, तो अपने पीछे बहुत कुछ छोड़ जाता है… वह देश के झंडे को शान से लहराते रहने की वजह बनता है, दूसरों के लिए प्रेरणा और अपने घर-परिवार के लिए गर्व।

26 जुलाई, 1999 में हुए करगिल युद्ध में शहीद होने वाले सैनिकों की कहानियां भी कुछ ऐसी ही हैं। विजय दिवस को आज 18 साल बीत चुके है। इस दौरान शहीदों के परिवार और युद्ध का हिस्सा रहे वीर सिपाहियों की जिंदगी में क्या कुछ बदला है जानते है इन कहानियों से…

उठो और अपने अंदर नया आत्मविश्वास जगाओ…

वसंतरत्ना फाउंडेशन फॉर आट्र्स की नींव भरतनाट्यम डांसर सुभाषिणी वंसत ने अपने शहीद पति कर्नल बंसत की याद में रखी है। इसका मकसद शहीदों की विधवाओं को जिंदगी की नई राह दिखाना है…

सुभाषिणी के पति कर्नल वसंत कश्मीर में आतंकवादियों से लड़ते हुए शहीद हुए थे। पति के जाने के बाद सुभाषिणी पर दो छोटी-छोटी बेटियों की जिम्मेदारी आ गई। परिवार की हिम्मत और खुद पर विश्वास कर वे इस जंग को लड़ पाई। इसलिए उन्हें अच्छे से पता है कि अपनों के अचानक चले जाने से घर-परिवार की स्थिति क्या होती है।

आज सुभाषिणी करगिल वीरांगनाओं को शहीदों की विधवाओं को डांस, आर्ट, प्ले, एजुकेशनल प्रोग्राम आदि के माध्यम से उम्मीद की किरण दिखा रही हैं। उनके लिए अपने जैसी दूसरी औरतों के अंदर आत्मविश्वास भरना आज जीवन का मकसद बन गया है। सुभषिणी के लिए शहीदों की पत्नी केवल विधवा नहीं बल्कि वीर नारी हैं। उनपर दया करना सही नहीं।

वे कहती हैं- आपके कुछ दिन अच्छे होते है, तो कुछ बुरे। बुरा वक्त आपको जिंदगी से डटकर मुकाबला करना सिखाता है। मुझे पता है कि यह सब तब भी आसान नहीं था और आज भी आसान नहीं। आपको समझना है कि यह आपकी जिंदगी का युद्ध है जिससे आपको अकेले ही लडऩा है। इसलिए उसे स्वीकार करो। विधवा के ठप्पे के साथ जिंदगी जीने से कोई फायदा नहीं। इसलिए उठो और अपने अंदर नया आत्मविश्वास जगाओ और अपने सपने को जियो। मैंने अपनी जिंदगी में डांस को चुना है। यह मेरे लिए मेडिटेशन की तरह है।

कहानी हकीकत में बदल गई…
सुभाषिणी बताती हैं- नाटक साइलेंट फ्रंट की कहानी अपने पति कर्नल के जीवित रहते ही लिखी थी। कहानी आशा नाम के किरदार के आसपास घूमती हैं। जिनके पिता ने सुभाष चंद्र बोस के साथ आजादी की लड़ाई लड़ी थी। उनके पति एक शहीद होते हैं और बेटे ने करगिल की लड़ाई लड़ी थी। इस नाटक में सुभाषिणी ने आशा का किरदार खुद निभाया था। जिसके निभाने के कुछ दिनों बाद ही उन्हें हकीकत में अपने पति को खोना पड़ा।

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