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Lockdown का आम आदमी की ज़िंदगी पर कितना पड़ा असर?

आर्थिक नुकसान से उबरने में देश को एक साल से ज्यादा समय लग सकता है।
CII के सर्वे में शामिल 65 प्रतिशत कंपनियों के सीईओ का मानना है कि अप्रैल-जून की तिमाही में आमदनी में 40 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आएगी।
अगर कोरोना या इसी तरह का सिलसिला जारी रहा तो हमारा बिहैवियर, थिंकिंग और इमोशन स्थायी रूप से बदल सकता है।

May 23, 2020 / 07:12 pm

Dhirendra

Lockdown

दो महीने से जारी लॉकडाउन का हर क्षेत्र में असर दिखाई देने लगा है।

नई दिल्ली। कोरोना वायरस ( coronavirus ) महामारी के खतरनाक परिणाम को देखते हुए भारत में पहली बार लॉकडाउन ( Lockdown ) 25 मार्च को लागू हुआ। वर्तमान में लॉकडाउन का चौथा चरण लागू है। दो महीने से देशभर में इस व्यवस्था का असर हर क्षेत्र में दिखाई दे रहा है। आर्थिक विश्लेषकों का कहना है कि लॉकडाउन से हुए आर्थिक नुकसान से उबरने में देश को एक साल से ज्यादा का समय लग सकता है।
मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है कि लॉकडाउन के न केवल देश को आर्थिक संकट ( Economic Crisis ) में ला खड़ा किया बल्कि इसने आम इंसान की सोच, बर्ताव, काम करने के तरीके यहां तक पढ़ने और पढ़ाने के पैटर्न भी बदल दिए हैं। आइए हम आपको बताते हैं कि कोरोना वायरस संकट, लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग का आम आदमी के जीवन को दो महीनों में कितना प्रभावित किया।
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1. आर्थिक हालात ( Economic conditions )

आर्थिक हालात की बात करें तो भारतीय अर्थव्यस्था ( Indian Economy ) को लाखों करोड़ों का नुकसान हो चुका है। किसी भी वित्तीय संस्थान ने इसका अभी सटीक आकलन पेश नहीं किया है। फिर भी अब तक देश को इस मोर्चे पर हुए नुकसान का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि एशियाई विकास बैंक ( ADB ) ने वित्त वर्ष 2020—21 में भारत की आर्थिक वृद्धि 4 फीसदी से कम, एस एंड पी ग्लोबल रेटिंग्स ने जीडीपी ग्रोथ 3.5 फीसदी, फिच रेटिंग्स ने अपने अनुमान में भारत की वृद्धि 2 फीसदी माना है। जबकि इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च ने वर्ष 2021 के पूर्वानुमान 5.5 फीसदी को संशोधित कर 3.6 प्रतिशत कर दिया है। मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस ने 2020 कैलेंडर वर्ष के दौरान भारत की जीडीपी वृद्धि के अपने पूर्वानुमान 5.3 प्रतिशत को घटाकर 2.5 प्रतिशत कर दिया है। इस आधर पर अनुमान लगाएं तो देश का जीडीपी विकास दर पहले के प्रस्तावित अनुमान से आधे या उससे कुछ ज्यादा हो सकता है। फिलहाल ये सभी आंकड़े अनुमान पर आधारित है।
भारतीय उद्योग परिसंघ ( CII ) ने हाल ही में कंपनियों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों ( CEO ) का एक सर्वे जारी किया। सर्वे में शामिल 65 प्रतिशत कंपनियों का मानना है कि अप्रैल-जून की तिमाही में उनकी आमदनी में 40 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आएगी।
सर्वे के नतीजों से निष्कर्ष निकलता है कि देश की अर्थव्यवस्था में सुस्ती लंबी रहने वाली है। सर्वे में शामिल 45 प्रतिशत सीईओ ने कहा कि लॉकडाउन हटने के बाद अर्थव्यवस्था को सामान्य स्थिति में लाने के लिए एक साल से अधिक का समय लगेगा।
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2. ऑनलाइन क्लासेज़ और वर्क फ़्रॉम होम ( Online classes and work from home)

कोरोना संकट और लॉकडाउन का दो महीने में असर इतना है कि सरकारी कार्यालयों तक का कामकाज का तरीका बदलकर रख दिया है। अब ऑनलाइन प्लेटफॉर्म ( Online Plateform ) पर कामकाज से दूर रहने वाले अधिकारी और कर्मचारी, विद्यार्थी और शिक्षक इनका खूब इस्तेमाल कर रहे हैं।
मेट्रोज सिटीज के उच्च शिक्षण संस्थान लॉकडाउन के बावजूद वर्क फ्रॉम होम के तहत घर से ही ऑनलाइन क्लासेज़ नियमित क्लास की तरह चला रहे हैं। निजी स्कूलों में ऑनलाइन क्लास प्रचलन में आ गया है। इससे एक लाभ यह हुआ है कि स्कूली बच्चों से लेकर दफ्तर में काम करने वाले उम्रदराज कर्मचारी तक की तकनीकी दक्षता में बढ़ोतरी हुई है।
लॉकडाउन के कारण राज्य के निजी और सरकारी कार्यालयों, कॉरपोरेट घराने, दुकानें-मॉल, निकाय, सहित अन्य संस्थान बंद तो हैं लेकिन वो अपना अधिकांश काम वर्क फ्रॉम होम के तहत चला रहे हैं। वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए सभी कार्यलय और विभागों के अधिकारी कामकाज निपटा रहे हैं। आवश्यक कार्यों के लिए ई-फाइल सिस्टम ने जोर पकड़ लिया है।
लोक शिकायत एंव प्रशिक्षण मंत्रालय ( Ministry of Public Grievances and Training ) ने भारत सरकार के समक्ष वर्क फ्रॉम होम को लेकर नया मसौदा ( Draft ) पेश कर दिया है। जिसे आगामी महीनों में सभी विभागों और मंत्रालयों के दफ्तरों में लागू किया जाएगा। इस प्रस्ताव के तहत ऑनलाइन, ईआरपी सिस्टम, ई-फाइल, ई-कंटेंट सिस्टम, व्हाट्सएप और ई-मेल का इस्तेमाल पर जोर दिया जाएगा।
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3. बदल रहा लोगों का बर्ताव ( Changing people’s behavior )

एम्स के मनोविशेषज्ञ राजेश सागर ने बताया कि उनके पास लॉकडाउन के बाद कोई नया मरीज नहीं आया है, लेकिन पुराने मरीज लगातार कोरोना और लॉकडाउन के संबंधित सवाल पूछ रहे हैं। लोगों के बर्ताव में बदलाव आ रहा है। मन और सोच में बदलाव आ रहा है। मन में निगेटिव विचार ज्यादा आ रहे हैं। असमंजस है और भविष्य की चिंता है। चिड़चिड़ापन, मन उदास है, अकेले रहने में परेशान हो जाने जैसी समस्याएं हैं। कुछ लोगों का मन कर रहा है बाहर निकलने का तो कुछ लोगों का ज्यादा लोगों से बात करने मन करना है।
राजेश सागर ऐसे में लोगों को तीन सलाह देते हैं। घर वालों से बात करें। खुद को एक्सप्रेस करें और अपने आपको हमेशा बिजी रखें। उनका कहना है कि पर्सनालिटी बचपन से विकसित होती है। यह हमारे बिहैवियर, थिंकिंग और इमोशन से बनती है।
कोरोना जैसी एक समस्या से तो बदल नहीं सकती है। लेकिन कुछ लोग इंट्रोवर्ट है और कुछ एक्सट्रोवर्ट होते हैं। कुछ शांत होते हैं और कुछ गर्म मिजाज। इसलिए कोरोना से निपटने का सबका तरीका अलग-अलग है। लेकिन यह सिलसिला किसी न किसी रूप में जारी रहा तो हमारा बिहैवियर, थिंकिंग और इमोशन स्थायी रूप से बदल सकता है।
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4. को-वर्किंग स्पेस की बढ़ी डिमांड ( Co-working space increased demand )

लॉकडाउन के बीच अब दफ्तरों में कामकाज पहले जैसा नहीं रहेगा। लॉकडाउन के बाद जब आप वापस दफ्तर लौटेंगे तो सोशल डिस्टेंसिंग ( Social Distancing ) से लेकर कई जरूरी बदलाव आपको फॉलो करने होंगे। इसको लेकर कंपनियों ने भी तैयारियां शुरु कर दी है।
कोरोना काल में हो रहे बदलावों के मद्देनजर अब आप अपने ऑफिस में न कुर्सी सटाकर बैठ पाएंगे और न ही अपनी मर्जी से पैंट्री में खा-पी पाएंगे। अब सोशल डिस्टेंसिंग और हाइजिन ऑफिस में काम करने का मूल मंत्र बन गया है।
कई कंपनियों ने पुराने सेटअप में काम शुरू करने के बजाए को-वर्किंग स्पेस ( Co-working space increased demand ) में काम करने का ऑप्शन अपना रही हैं। इसके पीछे बड़ी वजह ये है कि को-वर्किंग स्पेस में ये सभी बदलाव आसानी और तेजी के साथ किए जा सकते हैं वो भी कम लागत में।

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