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जानें, कौन थे M. Visvesvaraya जिनकी जयंती पर देश में मनाया जाता है इंजिनियर्स डे

एम विश्वेश्वरैया (M. Visvesvaraya) का जन्म 15 सितंबर 1861 को मैसूर के कोलार जिले स्थित क्काबल्लापुर तालुक में एक तेलुगु परिवार में जन्म हुआ था।
विश्वेश्वरैया भारतीय सिविल इंजीनियर के साथ-साथ विद्वान और राजनेता भी थे। सरकार ने साल 1955 में इन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया था।

Sep 15, 2020 / 01:20 pm

Vivhav Shukla

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Engineers day : know about the great engineer dr m. visvesvaraya

नई दिल्ली। भारत में हर साल 15 सितंबर को इंजीनियर्स डे ( Engineer’s Day) मनाया जाता है। ये दिन भारत के सबसे महान इंजीनियर एम विश्वेश्वरैया (M. Visvesvaraya) का जन्म दिन के दिन ही मनाया जाता है। विश्वेश्वरैया ने इंजीनियरिंग के क्षेत्र कई ऐसी उपलब्धियां हासिल कीं, जो इतिहास में अमर है। विश्वेश्वरैया भारतीय सिविल इंजीनियर के साथ-साथ विद्वान और राजनेता भी थे। सरकार ने साल 1955 में इन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया था।

कौन हैं डॉ विश्वेश्वरय्या ?

डॉ एम विश्वेश्वरैया का पूरा नाम मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया है। उन्हें सर एमवी के नाम से भी जाना जाता है। भारत रत्न से सम्मानित एम विश्वेश्वरैया का जन्म 15 सितंबर 1861 को मैसूर के कोलार जिले स्थित क्काबल्लापुर तालुक में एक तेलुगु परिवार में जन्म हुआ था। विश्वेश्वरैया के पिता का नाम श्रीनिवास शास्त्री था, जो संस्कृत के विद्वान और आयुर्वेद चिकित्सक थे। उनकी की मां का नाम वेंकाचम्मा था।

विश्वेश्वरैया ने अपनी शुरूआती पढ़ाई अपने जन्मस्थान से ही की। लेकिन आगे की पढ़ाके के लिए वे बेंगलुरू के सेंट्रल कॉलेज चले गए। इसके बाद वे इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए पूना के साइंस कॉलेज में एडमिशन लिया। 1883 की एलसीई और एफसीई की परीक्षा में पहला स्थान प्राप्त किया। पढ़ाई के बाद उन्होंने नासिक में सहायक इंजीनियर के तौर पर काम करना शुरु कर दिया। उनके कामों को देखते हुए साल 1955 में सरकार ने उन्हें सर्वोच्च भारतीय सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

बताया जाता है कि साल 1912 से 1918 तक डॉ विश्वेश्वरैया मैसूर के 19वें दीवान थे। उन्होंने मांड्या ज़िले में बने कृष्णराज सागर बांध के निर्माण का मुख्य योगदान दिया था। डॉ. मोक्षगुंडम को कर्नाटक का भागीरथ भी कहा जाता है। 32 साल की उम्र में उन्होंने सिंधु नदी से सुक्कुर कस्बे तक पानी पहुंचाने के लिए एक प्लान बनाया। उन्होंने बांध से पानी के बहाव को रोकने वाले स्टील के दरवाजे बनवाए, जिसकी तारीफ ब्रिटिश अधिकारियों ने भी की।

12 अप्रैल 1962 को 102 साल की उम्र में डॉ. मोक्षगुंडम का निधन हुआ। बताया जाता है कि अंतिम समय तक वे एक्टिव रहते थे। जब उनसे कोई पूछता की इस उम्र में कैसे फिट हैं तो वे कहते कि जब बुढ़ापा मेरा दरवाजा खटखटाता है तो मैं जवाब देता हूं कि विश्वेश्वरैया घर पर नहीं है। फिर वह निराश होकर लौट जाता है। ऐसे में हम कभी मिल ही नहीं पाते।

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