जुबैर का परिवार पुतला बनाने में माहिर है। परदादा से दादा और फिर पिता के हाथ में आया रावण के पुतले बनाने का हुनर जुबैर भी सीख गया। आज वो भी पुतले बनाने का काम करता है। उन्हें यह विरासत अपने पूर्वजों से मिली है। उनके परदादा पुतले बनाने का काम करते थे। जिसके बाद पीढ़ी-दर-पीढ़ी उनके वंशज पुतले बना रहे हैं। इस बार भी जुबैर ने पुतला बना रहा है। उनके बनाए पुतले आकर्षक का केंद्र बने हुए हैं। इसके साथ ही इस बार के रावण दहन में बहुत कुछ खास होने वाला है।
चार पीढ़ियों से बना रहे पुतले बता दें कि मेरठ निवासी असलम और उनके बेटे जुबैर की चार पीढ़ियां दशहरे के मौके पर पुतले बनाने का काम करती आ रही हैं। मेरठ में ही नहीं बल्कि दूसरे जिलों से भी इनके पुतले ले जाए जाते हैं। कारीगर असलम ने बताया कि इस बार के रावण दहन में यह खासियत होगी कि रावण को चार घोड़ों के रथ पर सवार होकर आएगा और यह बार-बार मुंह खोलेगा और बंद करेगा। जिसके चलते रथ बनाने का काम किया जा रहा है। इस रथ की वजह से ही इस बार का रावण दहन सबसे अलग होने जा रहा है।
इसके साथ ही उन्होंने बताया कि इस बार महंगाई और कोरोना का काफी असर पड़ा है। जिसके चलते पुतलो की पहले की अपेक्षा कम बिक्री हुई है। साथ ही पिछले बार रावण के पुतले की कीमत 73 हजार रुपये थी। वहीं इस बार दो हजार रुपये बढ़कर पुतले की कीमत 75 हजार रुपये हो गई है। कभी इसी पुतले को उनके पड़दादा बनाया करते थे, जिसकी कीमत करीब 35 रुपये हुआ करती थी। बदलते समय और महंगाई की वजह से उनका पड़पोता उसकी पुतले को 75 हजार रुपये में बेच रहा है।
इस बार इतनी होगी रावण की ऊंचाई इसके साथ ही इस बार रावण के पुतले की ऊंचाई 130 फीट, कुंभकरण के पुतले की ऊंचाई 120 फीट और मेघनाद के पुतले की ऊंचाई 100 फीट है। इन पुतलो को बनाने के लिए जुबैर ने करीब एक महीने पहले से ही तैयारी शुरू कर दी थी। जिसके बाद से वह अपनी टीम के साथ पुतले बनाने में लगे हुए हैं। इसके साथ ही जुबैर ने बताया कि पुतले बनाने में बांस, कागज, सुतली, तांबा, कलर पेपर आदि का प्रयोग कर रावण दहन के लिए पुतला तैयार किया जाता है।