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मेरठ

Ahoi Ashtami 2019: अहोई अष्टमी पर बन रहा सर्वार्थ सिद्धि योग, पूजा के लिए ये है शुभ मुहूर्त

Highlights

21 अक्टूबर दिन सोमवार को है अहोई अष्टमी व्रत
पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 5.42 से शाम 6.59 बजे तक
21 से सुबह 6.44 से 22 अक्टूबर सुबह 5.25 तक तिथि

 

मेरठOct 19, 2019 / 08:41 am

sanjay sharma

meerut
मेरठ। करवा चौथ के चार दिन बाद अहोई अष्टमी व्रत (Ahoi Ashtami Vrat) होता है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन अहोई व्रत संतान के लिए रखा जाता है। इस दिन माताएं संतान के सुख और आयु वृद्धि के लिए अहोई अष्टमी व्रत रखती हैं। इस व्रत में मां पार्वती (Maa Parvati) की पूजा की जाती है। मां पार्वती संतान की रक्षा करती हैं। इस बार यह व्रत विशेष योग (Vishesh Yog) में है। इस बार कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी 21 अक्टूबर को दिन सोमवार को पड़ रही।
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अहोई अष्टमी पूजा का शुभ मुहूर्त

पंडित महेंद्र कुमार शर्मा के अनुसार अहोई अष्टमी के दिन चंद्रमा पुष्य नक्षत्र में रहेगा। यह दिन सर्वार्थ सिद्धि योग का है। चंद्रमा-पुष्य नक्षत्र योग व साध्य सर्वार्थ सिद्धि योग होने की वजह से पूजा का शुभ मुहूर्त 21 अक्टूबर को शाम 5.42 से शाम 6.59 बजे तक का है। तारों के निकलने का समय शाम 6.10 बजे का है। वैसे अष्टमी तिथि 21 अक्टूबर को सुबह 6.44 से 22 अक्टूबर की सुबह 5.25 तक रहेगी। इस व्रत को पूरे दिन रखने के बाद शाम को शुभ मुहूर्त में पूजा करके आसमान में तारे निकलने के बाद खोला जाता है। अहोई अष्टमी व्रत होने के बाद दीपोत्सव उत्सव शुरू हो जाता है।
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अहोई अष्टमी पर ऐसे करें पूजा

महिलाएं चांदी की अहोई बनवाकर इसकी पूजा करती है। इसमें चांदी के मनके जाते हैं और हर व्रत में इनकी एक संख्या बढ़ाती जाती हैं, पूजा के बाद महिलाएं इस माला को पहनती हैं। इसके अलावा गोबर या फोटो के द्वारा कपड़े की आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाई जाती है और उसके बच्चों की आकृतियां बनायी जाती हैं। शाम के समय उसकी पूजा की जाती है।
अहोई अष्‍टमी व्रत का ये है महत्व

उत्तर भारत में अहोई अष्‍टमी के व्रत का विशेष महत्‍व है। अहोई यानी अनहोनी से बचाना। किसी भी अमंगल या अनिष्‍ट से अपने बच्‍चों की रक्षा करने के लिए महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं। यही नहीं संतान की कामना के लिए भी यह व्रत रखा जाता है। इस दिन महिलाएं कठोर व्रत रखती हैं और पूरे दिन पानी की बूंद भी ग्रहण नहीं करती हैं। व्रत के बाद शाम को तारों को अर्ध्य दिया जाता है। हालांकि चंद्रमा के दर्शन करके भी यह व्रत पूरा किया जा सकता है, लेकिन इस दौरान चंद्रोदय काफी देर से होता है इसलिए तारों को ही अर्ध्य दिया जाता है। अर्ध्य देकर ही व्रत का पारण करती हैं। मान्‍यता है कि इस व्रत के प्रताप से बच्‍चों की रक्षा होती है। साथ ही इस व्रत को संतान प्राप्‍ति के लिए श्रेष्ठ माना गया है।

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