आशीष सिंह वाराणसी के कबीरचौरा के भूत भैरव नखास क्षेत्र के रहने वाले है। ये राजपूत परिवार से आते हैं। इनके माता का नाम बीना सिंह हैं और पिता स्व. चंद्र कुमार सिंह हैं। आशीष अपने पूरे खानदान में इकलौते शास्त्रीय नृत्य के कलाकार हैं। इनके दादा राम प्रसन्न सिंह को आशीष का नृत्य करना बिल्कुल नहीं पसंद था। जब आशीष नृत्य करते थे तो वो कहते थे कि कहा ” राजपूतों के खानदान में नचनिया पैदा हो गया। हालांकि, उनका नृत्य करना दादी को काफी पसंद था। आशीष की दादी ललिता सिंह और उनकी बहन आरती सिंह जी ने उन्हें बचपन में लोक नृत्यों पे नृत्य करना सिखाया।
आशीष की कथक नृत्य की प्रारंभिक शिक्षा “पद्म विभूषण पंडित बिरजू महाराज जी की सुयोग्य शिष्या श्रीमती संगीता सिन्हा जी से हुई। बनारस घराने की प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना सरला नारायण सिंह को आशीष अपना आदर्श मानते हैं। जिनकी वजह से आज वो इस क्षेत्र में है। इसके बावजूद आशीष ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के (संगीत एवम् मंच कला संकाय) से बैचलर और मास्टर्स की पढ़ाई की है। आशीष ने कथक कार्यशालाओं के माध्यम से पद्म विभूषण पंडित बिरजू महाराज जी से भी कथक नृत्य की तालीम प्राप्त की है।
आशीष सिंह कई शहरों में दे चुके हैं अपनी नृत्य की प्रस्तुति
आशीष ने अपने शहर वाराणसी से अपनी नृत्य की प्रस्तुति की शुरुआत की। बनारस के अलावा आशीष ने वाराणसी, भदोही मिर्जापुर जबलपुर, सोनभद्र, बॉम्बे, नाशिक, दिल्ली, पुणे, कोलकाता, लखनऊ, प्रयागराज, असम, गोवाहटी, कटनी, रीवा, वृंदावन, उत्तराखंड, अल्मोड़ा, शिमला के साथ- साथ विदेशों (चाइना) में भी अपनी नृत्य कला प्रर्दशन किया है। इसके अलावा आशीष ने कॉमन वेल्थ गेम्स 2010 (उद्घाटन समारोह) में भी पण्डित बिरजू महाराज जी के नृत्य निर्देशन में अपनी नृत्य प्रस्तुति दी है। 2015 में आशीष ने चाइना में The 2nd Silk Road International Arts Festival में भी दर्जनों नृत्य प्रस्तुतियां दीं। इसके साथ ही “बॉलीवुड सिंगर सोना महापात्र जी के साथ उनके अलबम “मंगल गान” में भी नृत्य प्रस्तुत किया है।
साल 2016 से मथुरा में रह रहे हैं आशीष सिंह
साल 2015 मे आशीष सिंह के पिता चन्द्र कुमार सिंह की मौत हो गई। इसके बाद आशीष लगातार श्रीमद भागवत महापुराण सुनने लगे। इसी बीच आशीष सिंह के मन में जिज्ञासा हुई कि एक बार वृन्दावन जाना है। साल 2016 में वृंदावन आए और उनका मन यहां पर ऐसा लग गया कि वह अपनी बाकी जिंदगी यहीं पर गुजारने का मन बना लिया। यहां पर आशीष को कथक कार्यशाला लेने का भी मौका मिल गया। उसी समय उन्होंने वृंदावन में एक आश्रम अपने रहने की व्यवस्था कर ली। जिसमें उनकी मदद बनारस की बसंत कन्या महाविद्यालय की सुशीला देवी ने की। आशीष पूरी तरह से कृष्ण भक्ति में लग गए और भक्त शिरोमणि मीरा बाई सा जी भजन स्थली में अपना कथक नृत्य का रियाज करना शुरू किया।
वृन्दावन में ही आशीष को मिला “नृत्य मंजरी दास” का नाम
आशीष को वृन्दावन में ही एक दूसरा नाम मिला “नृत्य मंजरी दास” जो की वृंदावन के आचार्य परम् पूज्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ने उन्हें दिया। वो आशीष सिंह के अध्यात्मिक गुरु है जिनसे उन्होंने वैष्णव दीक्षा ली है। आज आशीष वृंदावन का एक जाना पहचाना नाम है। जिसको वो भगवान बाबा काशी विश्वनाथ की कृपा मानते हैं। जिन्होंने उनको श्री राधा कृष्ण के चरणों का दास बनाया। आशीष को कई सारे अवॉर्ड और सम्मान भी मिल चुके हैं।