महारास देखने आए थे शिव जी द्वापर में भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ महारास किया। इसे देखने जब ३३ करोड़ देवता आए तो तब उन्हें जब पता चला की यहाँ केवल गोपियां ही महारास देख सकती हैं। इस पर सभी देवता वापस लौट गये। मगर शंकर भगवान नहीं माने तो पार्वती ने उन्हें यमुना महारानी के पास भेज दिया। यमुना जी ने भोले भंडारी को गोपी का रूप धारण कराया था। भगवान शिव गोपी रूप धारण कर महारास करने लगे, जिन्हें भगवान कृष्ण ने पहचान लिया। महारास के बाद भगवान कृष्ण ने स्वयं शंकर भगवान की पूजा की। राधा जी ने उन्हें वरदान दिया कि आज से लोग गोपी के रूप में यहाँ तुम्हारी पूजा होगी। तब से लेकर आज तक यहाँ लोग शिव को गोपी के रूप में पूजते हैं । सिंगार का सामान भी इस मंदिर में चढ़ाया जाता है।
सभी कष्ट होते हैं दूर मान्यता है कि जो भी भक्त यहाँ आकर सावन के चार सोमवार पूजा करता है, उनके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। गोपी रूप में पूजा करने वाले की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है ।
क्या कहा पुजारी ने गोपेश्वर मंदिर के पुजारी गोपेश गोस्वामी का कहना है कि जो महारास के बाद से आज तक यहाँ भगवान शिव गोपी रूप में भक्तों को दर्शन देते हैं। उड़ीसा से आई श्रद्धालु स्नेहा ने बताया कि यहाँ आकर पूजा करने से जो मांगो, वो मिलता है। यहाँ भगवान को गोपी रूप में सजाया जाता है। अलौकिक दर्शन उनके मिलते हैं। सभी कामोकामनाएं पूर्ण होती हैं।