जवाहर बाग को खाली तो करा दिया गया लेकिन एक लंबा समय व्यतीत होने के बाद जवाहर बाग में आज भी आपको ऐसे सबूत मिल जाएंगे जो उन कब्जा धारियों की याद दिला देता है। आज भी जवाहर बाग में स्लोगन लिखे हुए हैं और रामवृक्ष के द्वारा जो उपयोग में वाहन लाए जाते थे वह जली हुई अवस्था में वहां खड़े हुए हैं।
जवाहर बाग हिंसा में आग का तांडव भी देखने को मिला और जहां जहां आग लगाई गई वहां वहां पेड़ जलकर खाक हो गए। आज भी सैकड़ों की संख्या में ऐसे पेड़ हैं, जो हरे नहीं हुए हैं और सूखे खड़े दिखाई दे रहे हैं। यह पेड़ आज भी उस मंजर की दास्तां सुनाते हैं। यह पेड़ जलकर सूख गए और शायद ही अब यह कभी हरे हो पाएं।
जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है उसी गति से जवाहर बाग में भी बदलाव किए जा रहे हैं। यहां पर निर्माण का काम चल रहा है। नए फलदार पेड़ लगाए जा रहे हैं ताकि जवाहर बाग को पहले की स्थिति में लाया जा सके। काम शुरू है। समय के साथ जवाहर बाग की स्थिति को बदला जा रहा है।
भले ही स्वर्गीय एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी और स्वर्गीय एसओ संतोष यादव जवाहर बाग को खाली कराने में अपनी शहादत दी हो लेकिन आज भी वह जिंदा हैं। मथुरा के लोगों के अंदर दोनों वीर सपूत हमेशा जिंदा रहेंगे और जब जब जवाहर बाग का नाम आएगा तब तब दोनों वीर सपूतों को याद किया जाएगा। यह दोनों वीर सपूत आज भी यहां के लोगों के दिलों में जिंदा हैं।
जवाहर बाग में कार्यरत एक कर्मचारी ने बताया कि अगर यहां कोई अकेला आ जाता है उसे आज भी डर लगता है कि कहीं कुछ हो ना जाए। 2016 के बाद लोगों का यहां आना बिल्कुल बंद हो गया था। जैसे-जैसे समय व्यतीत हो रहा है, लोगों का आना शुरू हो रहा
घटना को याद कर हो जाती हैं आंखें नम
2 जून 2016 को हुई जवाहर बाग हिंसा के बारे में संजय बताया कि हम लोग तो पुराने हैं। यहां जो भी नया कर्मचारी आता है और वह यहां के बारे में पूछता है तो घटना को बताते वक्त हमारी आंखें नम हो जाती हैं। वह मंजर याद आ जाता है जो यहां हुआ था। संजय बात करते करते भावुक होते नजर आए।