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मथुरा

तीन साल बाद भी जवाहर बाग कांड में हुई हिंसा के सबूत जीवित

जवाहर बाग को खाली तो करा दिया गया लेकिन एक लंबा समय व्यतीत होने के बाद जवाहर बाग में आज भी आपको ऐसे सबूत मिल जाएंगे जो उन कब्जा धारियों की याद दिला देता है।

मथुराJun 02, 2019 / 06:14 pm

अमित शर्मा

Mathura Jawaharbagh

तीन साल बाद भी जवाहर बाग कांड में हुई हिंसा के सबूत जीवित

मथुरा। 2 जून 2016। जवाहर बाग कांडा। मथुरा के लिए यह काला दिन है। आज भी सोच कर लोगों की रूह कांप जाती है। आज भी ऐसे सबूत हैं जो रामवृक्ष यादव के जिन्दा होने की दास्तां सुना रहे हैं। जवाहर बाग कांड हुआ था कलक्ट्रेट के पीछे।
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ये था मामला

मथुरा के उद्यान विभाग की 270 एकड़ में बने जवाहर बाग पर अवैध कब्जा किया गया था। इन कब्जाधारियों से जवाहर बाग को मुक्त कराने के लिए जवाहर बाग खाली कराओ संघर्ष समिति के द्वारा 2 जून 2016 को कार्यवाही शुरू की गई। इस कार्यवाही में अवैध कब्जा धारियों को खदेड़ दिया गया और जवाहर बाग खाली करा दिया गया। जवाहर बाग खाली कराने के दौरान मथुरा पुलिस की दो होनहार वीरगति को प्राप्त हो गए। कब्जाधारियों से लोहा लेते वक्त एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी और एसओ संतोष यादव के गोली लगी। गोली लगने के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। उपचार के दौरान दोनों ने ही दम तोड़ दिया।
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आज भी मौजूद सबूत
जवाहर बाग को खाली तो करा दिया गया लेकिन एक लंबा समय व्यतीत होने के बाद जवाहर बाग में आज भी आपको ऐसे सबूत मिल जाएंगे जो उन कब्जा धारियों की याद दिला देता है। आज भी जवाहर बाग में स्लोगन लिखे हुए हैं और रामवृक्ष के द्वारा जो उपयोग में वाहन लाए जाते थे वह जली हुई अवस्था में वहां खड़े हुए हैं।
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याद आता है भयानक मंजर

कब्जाधारियों से जवाहर बाग को जब खाली कराया गया तो कब्जा धारियों ने पुलिस प्रशासन पर गोलियां बरसाना शुरू कर दिया था। बाग में बने टेंटों में आग लगा दी गई। आग इतनी फैली कि उसने हर चीज को अपने आगोश में ले लिया। जलाकर खाक कर दिया। उस मंजर को याद करते हैं तो दिल दहल जाता है। भयानक मंजर जब भी सामने आता है तो रूह कांप जाती है।
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सूखे पेड़ सुनाते दास्तां
जवाहर बाग हिंसा में आग का तांडव भी देखने को मिला और जहां जहां आग लगाई गई वहां वहां पेड़ जलकर खाक हो गए। आज भी सैकड़ों की संख्या में ऐसे पेड़ हैं, जो हरे नहीं हुए हैं और सूखे खड़े दिखाई दे रहे हैं। यह पेड़ आज भी उस मंजर की दास्तां सुनाते हैं। यह पेड़ जलकर सूख गए और शायद ही अब यह कभी हरे हो पाएं।
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समय के साथ बदल रहा बाग
जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है उसी गति से जवाहर बाग में भी बदलाव किए जा रहे हैं। यहां पर निर्माण का काम चल रहा है। नए फलदार पेड़ लगाए जा रहे हैं ताकि जवाहर बाग को पहले की स्थिति में लाया जा सके। काम शुरू है। समय के साथ जवाहर बाग की स्थिति को बदला जा रहा है।
मुकुल द्विवेदी और संतोष यादव आज भी जिंदा
भले ही स्वर्गीय एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी और स्वर्गीय एसओ संतोष यादव जवाहर बाग को खाली कराने में अपनी शहादत दी हो लेकिन आज भी वह जिंदा हैं। मथुरा के लोगों के अंदर दोनों वीर सपूत हमेशा जिंदा रहेंगे और जब जब जवाहर बाग का नाम आएगा तब तब दोनों वीर सपूतों को याद किया जाएगा। यह दोनों वीर सपूत आज भी यहां के लोगों के दिलों में जिंदा हैं।
अकेले आने में लगता था डर
जवाहर बाग में कार्यरत एक कर्मचारी ने बताया कि अगर यहां कोई अकेला आ जाता है उसे आज भी डर लगता है कि कहीं कुछ हो ना जाए। 2016 के बाद लोगों का यहां आना बिल्कुल बंद हो गया था। जैसे-जैसे समय व्यतीत हो रहा है, लोगों का आना शुरू हो रहा

घटना को याद कर हो जाती हैं आंखें नम
2 जून 2016 को हुई जवाहर बाग हिंसा के बारे में संजय बताया कि हम लोग तो पुराने हैं। यहां जो भी नया कर्मचारी आता है और वह यहां के बारे में पूछता है तो घटना को बताते वक्त हमारी आंखें नम हो जाती हैं। वह मंजर याद आ जाता है जो यहां हुआ था। संजय बात करते करते भावुक होते नजर आए।

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