इसके साथ ही सेबी ने एक और नियम में बदलाव किया है। सेबी ने ओपन ऑफर ( open offer rule ) के नियम भी आसान करते हुए ओपन ऑफर पर Timeline Restriction हटा दिया है जिसके बाद 52 हफ्ते के अंदर शेयर खरीदने के नियम में सहूलियत मिली है।
चलिए अब आपको बताते हैं कि आखिर preference share होते क्या हैं। और इसके नियम बदलने से लोग इतना खुश क्यों है।
‘प्रेफरेंस शेयर’ ( Preferential share )- कोई भी कंपनी अपने चुनिंदा निवेशकों और प्रमोटरों को ये शेयर जारी करती है। इन शेयर्सं में निवेश करने वाले निवेशक इक्विटी शेयर होल्डर से ज्यादा सुरक्षित होते हैं। दरअसल अगर कभी कोई कंपनी दिवालिया होने के कगार पर हो तो इस प्रकार के शेयरधारकों को बाकी इक्विटी शेयरधारकों के मुकाबले पूंजी के भुगतान में वरीयता दी जाती है। यही वजह है कि preference share सुरक्षित मानें जाते हैं। इतना ही नहीं अगर कंपनी को किसी तरह का फायदा होता है तो वो लाभ भी सबसे पहले इन्ही शेयर होल्डर्स को दिया जाता है।
प्रेफरेंस शेयरों को वोटिंग राइट्स में तरजीह मिलती है।
प्रेफरेंस शेयर में डिविडेंड की दर पहले से तय हो सकती है। इस तरह इनके साथ ज्यादा सुरक्षा जुड़ी होती है। प्रेफरेंस शेयर को सामान्य शेयरों में बदला जा सकता है। उस स्थिति में इन्हें कन्वर्टिबल प्रेफरेंस शेयर कहते हैं।