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छोटे और ग्रामीण इलाकों में बेची जाती है नॉन हॉलमार्किंग ज्वेलरी
इंडियन बुलियन एंड ज्वेलर्स एसोसिएशन की मानें तो हॉलमार्किंग अनिवार्य होने के बाद जैसे ही डेट पास आएगी वैसे ही नॉन हॉलमार्किंग ज्वेलरी पर डिस्काउंट बढऩे की संभवना हो जाएगी। इससे सर्राफा व्यापारियों को नुकसान होगा। वास्तव में इस तरह का कारोबार छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में होता है। जहां पर हॉलमार्किंग के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती है। इसी जागरुकता को बढ़ाने के लिए हॉलमार्किंग को अनिवार्य किया गया है। आपको बता दें कि बीआईएस ने गोल्ड ज्वेलरी के लिए 14 कैरट, 18 कैरट और 22 कैरट के तीन स्टैंडर्ड बनाए हैं।
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पिछले 50 फीसदी भी नहीं बिका हॉलमार्क गोल्ड
एसोसिएशन के अनुसार पिछले साल करीब 1000 टन सोने की खपत देश में हुई थी। जिसमें 450 टन सोना हॉलमार्क वाला था। आंकड़े साफ बता रहे हैं कि देश में आज भी हॉलमार्क सोने को लेकर लोगों में जागरुकता नहीं है। जानकारों का कहना है कि हॉलमार्किंग सेंटर्स को देश के सभी हिस्सों तक पहुंचाने की जरूरत है। देश में लगभग तीन लाख जूलर्स हैं और इनमें से अभी केवल 30,000 जूलर्स के पास हॉलमार्क वाली जूलरी बेचने के लिए बीआईएस का लाइसेंस है।