लखनऊ के हजरतगंज इलाके में ख़ास तौर पर पोस्टर लगे हैं। इसमें लिखा है, मुलायम सिंह जी का धन्यवाद, आपने लोक सभा में 125 करोड़ देशवासियों के मन की बात कही।
मुलायम सिंह यादव बिना लाग-लपेट के अपनी बात कहने और राजनीतिक चतुराई के लिए जाने जाते हैं। उनकी दोस्ती किसी के साथ स्थायी नहीं रही। जब भी किसी से फायदा दिखा उसके साथ हो लिए। चौधरी चरण सिंह, चौधरी देवीलाल, वीपी सिंह, चंद्रशेखर, लालू प्रसाद यादव, राजीव गांधी, वामपंथी दल, कांशीराम, सोनिया गांधी और न जाने कितने नाम। किसी के साथ गठबंधन, किसी का समर्थन और फिर राजनीतिक पलटी। ऐन मौक़े पर हाथ झटका और बेफिक्री से आगे बढ़ गए। क्या बोले, अर्थ तलाशने वाले गुणा-भाग करते रहे वे अपने मिशन में लगे रहे। नेता प्रतिपक्ष बने, मुख्यमंत्री बने, रक्षामंत्री बने और राजनीतिक परिदृश्य में समाजवादी पार्टी के मजबूत क्षत्रप बनकर उभरे।
मुलायम उन नेताओं में शुमार रहे हैं जो कहते थे कुछ थे और करते कुछ थे। राष्ट्रपति चुनाव में उन्होंने अपने गठबंधन की उम्मीदवार कैप्टन लक्ष्मी सहगल का साथ छोड़ते हुए एपीजे अब्दुल कलाम को जिता दिया। इसके बाद हुए राष्ट्रपति के चुनाव में प्रणब मुखर्जी का विरोध किया बाद में पलटी मारी और फिर प्रणब मुखर्जी के समर्थन में आ गए। 2015 में बिहार में राजद-जदयू-कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाया। महागठबंधन के नेता बने और फिर पीछे हट गए। चरखा दांव में माहिर मुलायम कब कौन चाल चल दें नहीं मालूम।
सार्वजनिक मंचों से जब-तब बेटे अखिलेश यादव को फटकार लगाने वाले नेता जी ने जब वक्त आया तब बड़ी ही चतुराई से समाजवादी पार्टी की बागडोर बेटे अखिलेश को सौंप दी। छोटे भाई शिवपाल यादव को यादव तक को भी हवा नही चल पायी कि पावर ट्रांसफऱ के इस खेल में नेताजी आखिर किसके साथ हैं।
अब जब अखिलेश यादव और शिवपाल यादव की राहें जुदा हो चुकीं हैं तब भी किसी को नहीं पता कि मुलायम सिंह किसके साथ हैं। वे एक ही साथ दोनों की पार्टियों को जिताने का आह्वान करते हैं। भाई और बेटे दोनों को आशीर्वाद देते हैं। नेता और जनता दोनों कन्फूज हैं कि आखिर नेताजी चाहते क्या हैं।
समझने वाले सब समझते हैं। जो व्यक्ति देश के सबसे बड़े राज्य का तीन बार मुख्यमंत्री रहा हो। चौथी बार अपने बेटे को मुख्यमंत्री बनवाया हो। और बुढ़ापे में खुद की बनायी पार्टी का वारिसाना हक आराम से बेटे को ट्रांसफऱ कर दे वह व्यक्ति न तो कभी हल्की बयानबाजी करेगा और न ही राजनीति के कमजोर मोहरे चलेगा। इस बार भी नेताजी के बयान के तमाम निहितार्थ हैं। सब अपने हिसाब से इसका आंकलन कर रहे हैं।