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लखनऊ

क्या है डिजिटल कैंपेन, कैसे होता है इससे चुनाव प्रचार और कितना आता है खर्च

भौतिक रूप से रैलियों पर पाबंदी है। ऐसे में राजनीतिक दलों के पास इंटरनेट के माध्यम से सोशल मीडिया पर प्रचार प्रसार का विकल्प बचा है। अब चुनावी हलचल सड़कों की जगह सोशल मीडिया साइट्स पर है।

लखनऊJan 23, 2022 / 09:08 am

Karishma Lalwani

UP Election 2022 Digital Campaign form Political Parties

UP Election 2022 Digital Campaign form Political Parties

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दलों ने तैयारी तेज कर दी है। लेकिन अब प्रचार पहले की तरह नहीं होता दिख रहा। चुनाव आयोग की घोषणा के बाद सभी राजनीतिक दलों ने प्रचार प्रसार का तरीका बदल दिया है। अब रोड शो, रैलियों की जगह डिजिटल प्रचार को महत्व दिया जा रहा है। भौतिक रूप से रैलियों पर 31 जनवरी तक पाबंदी है। ऐसे में राजनीतिक दलों के पास इंटरनेट के माध्यम से सोशल मीडिया पर प्रचार प्रसार का विकल्प बचा है। अब चुनावी हलचल सड़कों की जगह सोशल मीडिया साइट्स पर है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि डिजिटल प्रचार कैसे होता है और इसमें कितना खर्च आता है।
चुनाव प्रचार पर कोरोना की मार को देखते हुए चुनाव आयोग ने रोड शो, रैलियों, जनसभाओं पर रोक लगा दी है। वहीं, पॉलिटिकल पार्टियां सोशल मीडिया साइट्स के जरिये मतदाताओं को टारगेट कर रही हैं। फेसबुक, ट्वीटर, इंस्टाग्राम और यहां तक कि व्हाट्सऐप पर प्रचार के लिए पूरी तरह से निर्भर हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि सोशल मीडिया पर यह प्रचार यूं ही नहीं होता। आसान भाषा में डिजिटल प्रचार का मतलब होता है ऑडियो, वीडियो, पोस्टर, बैनर के माध्यम से सोशल मीडिया पर प्रचार प्रसार करना। इन सब में करोड़ों का खर्च आता है।
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कैसे होता है डिजिटल प्रचार

डिजिटल प्रचार को दो भागों में बांट दिया जाता है। एक प्रोडक्शन प्रोसेस और दूसरा प्रमोशन प्रोसेस। प्रोडक्शन प्रोसेस में प्रत्याशियों का वीडियो शूट होता है, जिसमें हाई क्वालिटी का कैमरा यूज होता है। प्रत्याशी का घोषणा पत्र, उसके द्वारा किए गए काम, प्रत्याशी की महत्वपूर्ण उपलब्धियां आदि को वीडियो में बना कर उसका प्रचार प्रसार किया जाता है। वीडियो को फेसबुक, व्हाट्सऐप, यूट्यूब, इंस्टाग्राम जैसे माध्यमों की मदद से वोटर्स तक पहुंचाया जा सकता है।
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कितना आता है खर्च

पार्टियों के बैनर, पोस्टर को बड़े लेवल पर लोगों तक पहुंचाया जा रहा है। इन सभी के लिए ट्विटर, फेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की मदद ली जा रही है। लेकिन डिजिटल कैंपेन सभी पार्टियों के लिए बराबर नहीं होते। डिजिटल कैंपेन में बाजी वही मार सकता है जिसके पास ज्यादा पैसा है। जिसके पास ज्यादा पैसा होता है, उसका कैंपेन भी ज्यादा होता है। लाखों की तो होर्डिंग्स लगती है। बोर्ड, बैनर्स, में भी लाखों खर्च हो जाते हैं। सोशल पर भी खर्च की कोई सीमा नहीं है। किसी एक एरिया में किसी एक उम्मीदवार के लिए डिजिटल खर्च करने के लिए चार से 15 लाख तक का खर्च आ जाता है। वहीं, अगर पूरे राज्य में डिजिटल कैंपेन चलाना हो, तो यह रकम 15 करोड़ तक पहुंच जाती है। यानी कि जितना बड़ा इलाका, उतनी बड़ी रकम।

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