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लखनऊ

मोदी विरोधी गठबंधन को बढाने के लिए लालू से मिलेंगे अखिलेश के दूत

अखिलेश यादव क्षेत्रीय दलों के बीच तालमेल पैदा कर साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के सामने मजबूत विकल्प खडा करने की तैयारी में हैं।

लखनऊMar 19, 2018 / 08:01 pm

Laxmi Narayan Sharma

Lalu And Akhilesh
लखनऊ. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का राजनीतिक पैगाम लेकर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष किरणमय नंदा बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव से मुलाकात करने जा रहे हैं। उनकी मुलाकात चौबीस मार्च को होने वाली है। लालू इस समय चारा घोटाले से जुडे एक मामले में रांची की जेल में बंद हैं। उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिलाफ विपक्षी एकता को मिली जीत से उत्साहित समाजवादी पार्टी भाजपा विरोधी दलों को एक साथ लाने की कवायद में है। माना जा रहा है कि बहुजन समाज पार्टी को गठबंधन के लिए मना चुके अखिलेश यादव क्षेत्रीय दलों के बीच तालमेल पैदा कर साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के सामने मजबूत विकल्प खडा करने की तैयारी में हैं।
यूपी की फतह से मिली संजीवनी

उत्तर प्रदेश में गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीटों पर बसपा और सपा के बीच हुए समझौते से उपचुनाव के जो नतीजे सामने आये हैं, उसने भारतीय जनता पार्टी की चिन्ता बढा दी है तो दूसरी ओर विपक्षी दलों में उत्साह भरने का भी काम किया है। इस समझौते को देशव्यापी गठबंधन की शुरुआत इसलिए भी मानी जा सकती है क्योंकि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच किसी भी तरह के समझौते या गठबंधन की किसी भी तरह की कल्पना मुश्किल थी। एक दूसरे की जानी दुश्मन पार्टियों के एक साथ आ जाने से यह संदेश साफ है कि विपक्ष केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के प्रभाव को स्वीकार कर रहा है और उस असर को चुनौती देने वाली किसी भी रणनीति अपनाने से वह चूकना नहीं चाहता।
बिहार में अपनाया जा चुका है फार्मूला

सपा नेता किरणमय नंदा की लालू से होने जा रही मुलाकात को केवल उपचुनाव के बाद आये नतीजों से उपजी रणनीति नहीं मानना चाहिए। दरअसल केन्दर् की नरेन्द्र मोदी सरकार के खिलाफ सबसे सफल प्रयोग बिहार में लालू प्रसाद यादव ने महागठबंधन बनाकर किया था। बिहार में लालू, नीतिश और कांग्रेस के गठबंधन ने मोदी लहर को हवा में उडा दिया था और गठबंधन की सरकार कायम हुई थी। लालू प्रसाद यादव लगातार समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को एक मंच पर लाने की कवायद और पैरवी करते रहे हैं। हालांकि उत्तर प्रदेश में दोनों दलों के अपने हित और पुरानी घटनाएं किसी गठबंधन की राह में बाधा बन रही थी। बदली परिस्थितियों में जब बिहार में गठबंधन की सरकार टूटी और एनडीए सरकार सत्ता में आई और कई राज्यों में आये चुनाव परिणामों भारतीय जनता पार्टी के विजय अभियान में उत्तर प्रदेश की दोनों क्षेत्रीय दलों को समय की नजाकत समझते हुए साझा मंच पर आने को मजबूर किया। बिहार के गठबंधन की तर्ज पर उत्तर प्रदेश में इस समझौते से कांग्रेस भले ही दूर रही हो लेकिन भाजपा को चुनौती देने के लिए विपक्षी दलों को एक फार्मूला जरुर समझ आ गया।
कांग्रेस होगी मजबूर

जिस तरह से क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस को दरकिनार कर अपने स्तर पर गठबंधन की पहल शुरु की है, उसमें कांग्रेस के लिए अपनी शर्तों पर क्षेत्रीय दलों से समझौता कर पाना बेहद मुश्किल होगा। बदली परिस्थितियों में कांग्रेस की यह मजबूरी होगी कि वह भाजपा विरोधी गठबंधन का हिस्सा बनने में क्षेत्रीय दलों की मांगों को माने और उनके गठबंधन में शामिल हो क्योंकि ज्यादातर चुनावों में कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन कर क्षेत्रीय दलों ने यह अपनी ताकत दिखाने का काम किया है। कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी भी पिछले दिनों एक कार्यक्रम में गठबंधन की जरुरत और महत्व को स्वीकार कर चुकी हैं।
यूपी-बिहार बनेंगे मोदी विरोध की धुरी

जिस तरह से पहले बिहार में महागठबंधन और फिर उसके बाद उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा समझौते ने भाजपा के विजय अभियान पर ब्रेक लगाया है, उससे उत्तर प्रदेश और बिहार अगले साल 2019 में साफ तौर पर मोदी विरोधी गठबंधन की धुरी बनता नजर आ रहा है। इस बीच एनडीए के सहयोगी दलों ने जिस तरह केन्द्र सरकार पर निशाना साधने की शुरुआत की है, उससे साफ है कि गठबंधन आने वाले दिनों में नया आकार लेता दिखाई देगा। अब सभी दलों की निगाहें इस बात पर होंगी कि इस गठबंधन को लेकर राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्टी को किस तरह से प्रतिक्रिया देती है। वैसे यूपी में मुलायम के बेटे अखिलेश और बिहार में लालू के बेटे तेजस्वी न सिर्फ विपक्षी राजनीति की बखूबी कमान संभाले हुए हैं बल्कि दोनों एक दूसरे के रिश्तेदार भी हैं। अब यह पारिवारिक रिश्तेदारी मिलकर गठबंधन के कुनबे को कितना आगे ले जाती है, यह देखना दिलचस्प होगा।

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