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लखनऊ

अतीक-अशरफ की तरह ही मारा गया था कानपुर के डी-2 गैंग का रफीक, क्या है इसकी कहानी ?

Atiq Ashraf Murder : कानपुर के डी-2 गैंग के सरगना रफीक कुरैशी की हत्या भी अतीक-अशरफ की तरह हुई थी। रफीक कुरैशी कानपुर का सबसे खूंखार गैंगस्टर था। आइए आपको इसकी कहानी बताते हैं।

लखनऊApr 19, 2023 / 11:25 am

Vishnu Bajpai

Atique Amhed

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Atiq Ashraf Murder : कानपुर के डी-2 गैंग के सरगना रफीक कुरैशी की हत्या भी अतीक-अशरफ की तरह हुई थी। रफीक कुरैशी कानपुर का सबसे खूंखार गैंगस्टर था। साल 1975 में रफीक ने जरायम की दुनिया में पहला कदम रखा। इसके बाद साल 1981 में वह कानपुर के सबसे कुख्यात डी-2 गैंग में शामिल हो गया। साल 2005 में रफीक कुरैशी को कोलकाता से गिरफ्तार किया गया। उसे पूछताछ के लिए कानपुर ले जाया गया। जहां ताबड़तोड़ गोलियां बरसाकर पुलिस कस्टडी में उसकी हत्या कर दी गई।
एसटीएफ के मुताबिक कानपुर के कुली बाजार निवासी पांच भाइयों इकबाल उर्फ बाले, अतीक, तौफीक उर्फ बिल्लू, शफीक और अफजाल पांच भाइयों ने डी-2 गैंग बनाया। इस टीम में कुख्यात रफीक कुरैशी भी शामिल था। पुलिस रिकार्ड में यह गैंग आइएस-2 (अंतरराज्यीय) रफीक गैंग के नाम से दर्ज है।
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पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक साल 2004 में गैंग के लोगों ने एसटीएफ के सिपाही धर्मेंद्र चौहान की हत्या कर दी। इस दौरान पुलिस की जवाबी फायरिंग में गैंग के दो बदमाश ताज उर्फ भय्यन और शकील भी मारे गए। इस दौरान रफीक समेत गैंग के अन्य बदमाश फरार हो गए।
साल 2004 में गैंग के सरगना तौफीक उर्फ बिल्लू का एनकाउंटर
साल 2004 तक D-2 गैंग आतंक का पर्याय बन चुका था। गैंग के सरगना अतीक अहमद समेत तमाम गुर्गों की दहशतगर्दी कानपुर से बाहर आसपास के जिलों में भी बढ़ गई थी। साल 2004 किदवई नगर थाने के तत्कालीन SO ऋषिकांत शुक्ला ने एनकाउंटर में गिरोह के सरगना तौफीक उर्फ बिल्लू को मार गिराया।
बिल्लू के एनकाउंटर के बाद गिरोह “बैकफुट” पर आ गया। बिल्लू का मारा जाना गिरोह के लिए बड़े सदमें की तरह था। इसके बाद एसओ ऋषिकांत शुक्ला ने गैंग के कई बदमाश उठाए, लेकिन रफीक और अतीक अंडरग्राउंड हो गए।
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मुखबिरी के शक में गैंग ने की ताबड़तोड़ पांच हत्याएं
सरगना तौफीक उर्फ बिल्लू के एनकाउंटर के बाद अतीक और रफीक कई लोगों पर मुखबिरी का शक करने लगे। इसी चक्कर में गिरोह ने महज कुछ महीनों में ताबड़तोड़ हत्या की पांच बड़ी वारदातें कीं। इसमें सलीम मुसईवाला, नफीस मछेरा और कुलीबाजार की एक चर्चित महिला की हत्या में सभी नामजद हुए।
कुछ ऐसी भी हत्याएं हुईं, जिसमें गिरोह के लोगों के नाम उजागर नहीं हो सके। बिल्लू के मारे जाने के बाद गिरोह की कमान रफीक और अतीक ने संभाल ली।

रफीक ने कोलकाता में ली थी पनाह
STF सिपाही धर्मेंद्र की हत्या करने के बाद रफीक और अतीक दोनों ही अंडरग्राउंड हो गए। गिरोह के लोग भी भागते फिर रहे थे। एसटीएफ सिपाही की हत्या के बाद अतीक और रफीक के सिर पर इनामी राशि बढ़ाकर एक लाख रुपए कर दी गई। सर्विलांस सेल की मदद से कई महीने बाद रफीक की लोकेशन पश्चिम बंगाल के कोलकाता में मिली।
इंस्पेक्टर ऋषिकांत शुक्ला की अगुवाई में पुलिस की एक टीम कोलकाता पहुंची। वहां काफी मशक्कत के बाद रफीक को गिरफ्तार किया गया। इसके बाद उसे कानपुर लाया गया।

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न्यायिक रिमांड में हो गई रफीक की हत्या
कानपुर में पुलिस ने कोर्ट में प्रार्थना पत्र देकर रफीक को पूछताछ और AK-47 बरामद करने के लिए रिमांड मांगी। इसके बाद पुलिस टीम रफीक को लेकर जूही यार्ड जा रही थी। रास्ते में रफीक की बदमाशों ने गोली मारकर हत्या कर दी। उस समय पुलिस ने इस हत्या में डी-2 गैंग के परवेज का हाथ बताया था।
हालांकि इस मामले में रफीक के परिजनों ने पुलिस पर ही कस्टडी में हत्या का आरोप लगाया। रफीक की हत्या के बाद पुलिस ने परवेज के गिरोह का डी-34 दर्ज किया। परवेज पर 50 हजार का इनाम घोषित किया गया। इसके बाद साल 2008 में एसटीएफ ने परवेज का बिठूर में एनकाउंटर कर दिया।

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