यहां बता देना जरूरी है कि पंचनद कोई व्यक्ति नहीं था। इसे पांच नदियों के क्षेत्र को कहा गया है। इस क्षेत्र में इतने शूरवीर हुए जिनके आगे विदेशी घुटने टेकते रहे। इस पंचनद में आज का पंजाब पाकिस्तान समेत, हरियाणा, हिमाचल, कश्मीर, जम्मू और उत्तराखंड के कुछ इलाके पंचनद के अंर्तगत आते थे। अब हम हूणों की कहानी पर आते हैं।
अफगानिस्तान में तबाही मचाते भारत में घुसे हूण
हूण मूलरूप से मध्य एशिया की एक जंगली और बर्बर जाति के लोग थे। मध्य एशिया के अंर्तगत आज का कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, किर्गीस्तान आदि देश आते हैं। जो आपस में भी लड़ते रहते थे, 399 ईसवी के आसपास जब इनकी आबादी बढ़ गई तो ये दो भागों में बंट गए।
हांलाकि इस पर इतिहासकार एकमत नहीं है कि दो भागों में इनका विभाजन क्यों हुआ और मध्य एशिया छोड़कर क्यों भागना पड़ा। इनका एक दल वोल्गा नदी की ओर गया और दूसरा आक्सस घाटी की ओर बढ़ा। दूसरा दल आगे बढ़ते हुए फारस में घुस गया और मारकाट मचाते यह लोग अफगानिस्तान तक आ गए। जिसके बाद इन्होंने भारत में तबाही मचानी शुरू की…
नोट- वोल्गा नदी रूस की नदी है, जबकि आक्सस शब्द ग्रीक भाषा का शब्द है जिसे आमतौर पर अमूर दरिया बोलते हैं। भारत की सीमाएं तब अफगानिस्तान तक थी और पैदल मार्ग से अफगानिस्तान आज कश्मीर जो तब पंजाब हुआ करता था, उससे भारत आना आसान था।
हूणों को स्कंदगुप्त ने खदेड़ा, लेकिन उसके बाद गुप्त साम्राज्य में शक्तिशाली राजाओं का अकाल पड़ गया
458 ईसवी में भारत के अधिकांश हिस्सों पर गुप्त साम्राज्य के कुमारगुप्त का शासन था। गुप्त साम्राज्य के सम्राट समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा जाता है और इसके कालखंड को भारत का स्वर्णयुग भी माना गया है। लेकिन समुद्रगुप्त जितना प्रभावशाली था उसके उत्तराधिकारी उतने ही कमजोर साबित हुए।
कुमारगुप्त के समय में ही भारत पर हूणों का आक्रमण हुआ और कुमारगुप्त ने स्कंदगुप्त को इन आक्रमणों को विफल करने की जिम्मेदारी सौंप दी। बर्बर हूण स्कंदगुप्त के हमलों से भाग खड़े हुए। इस विजय की स्मृति में उसने वर्तमान नई दिल्ली में विष्णु स्तंभ का निर्माण कराया। इतिहासकारों का एक वर्ग ऐसा है, जो इसे ही कुतुबमीनार कहते हैं। जिसे कुतुबद्दीन ने तोड़कर परिवर्तन कराया था, ऐसा कुछ लोगों का मानना है।
बहरहाल, स्कंदगुप्त जबतक जीवित रहा हूण दुबारा भारत की तरफ देखने का साहस नहीं जुटा पाए। इसके बाद हूणों ने ईरान को तहस-नहस करना शुरू किया। दुर्भाग्य बस स्कंदगुप्त के बाद गुप्त साम्राज्य में शक्तिशाली राजाओं का अकाल पड़ गया।
जिसका फायद उठाते हुए हूणों ने लगभग 30 साल बाद 458 के आसपास फिर से भारत पर आक्रमण कर दिया। तब के हूणों के नेता तोरमाण और मिहिरकुल के नेतृत्व में हूणों ने उत्तरी भारत पर कब्जा कर लिया। वह लूटपाट करते उत्तर भारत की तरफ बढ़ते ही जा रहे थे। असभ्य और बर्बर कही जाने वाली यह जंगली जाति मंदिरों और मठों को विशेष निशाना बनाती। धीरे-धीरे हूणों की बर्बर सेना अयोध्या तक पहुंच गई।
इतिहास की अनेक पुस्तकों में यह दर्ज है कि हूणों ने मथुरा और तक्षशिला में उत्पात किया तो उत्तरप्रदेश के अनेक मंदिरों को तोड़ते हुए अयोध्या में राममंदिर पर हमला किया। भारी रक्तपात और जनहानि के बाद प्राचीन भव्य राममंदिर को हूणों ने पहली बार तोड़ डाला। एकबार फिर अयोध्या उजड़ गई…
टूटे हुए भव्य राम मंदिर को दोबारा किसने बनवाया?
पांचवी शताब्दी में अयोध्या उजड़ी हुई थी। लंबे समय बाद जब विक्रमादित्य ने इसका जीर्णोद्धार कराना चाहा तो अयोध्या की सीमाओं का पता लगाना मुश्किल था। इसे आप ऐसे भी कह सकते हैं कि लूटी-पिटी अयोध्या को खोज पाना मुश्किल था। लेकिन धर्मग्रंथों में वर्णित सप्तपुरियों में अयोध्या सरयू के किनारे स्थित है, इसके अलावा नागनागेश्वरनाथ महादेव की मौजूदगी ने अयोध्या की पहचान कराने में विक्रमादित्य की मदद की।
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हम यहां यह समझने की भूल ना करें कि विक्रमादित्य कोई एक व्यक्ति थे। यह एक अलंकरण हुआ करता था, जो राजा अपने विजय अभियानों के बाद धारण किया करते थे। अनुमान है कि हूणों द्वारा तोड़े गए रामजन्म भूमि के मंदिर का जीर्णोद्धार कराने वाले गुप्तवंश के ही विक्रमादित्य चंद्रगुप्त द्वितीय थे।
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उस समय संसार का सबसे समृद्ध और भव्य मंदिर था श्रीराम जन्मभूमि मंदिर…इतिहासकार विंसेट स्मिथ कहते हैं कि भारत की जनश्रुतियों और कहानियों में जिस विक्रमादित्य का नाम बार-बार आता है, वह कोई और नहीं चंद्रगुप्त द्वितीय थे। चंद्रगुप्त पहले शैव थे बाद में भागवत हो गए। उन्होंने अपने शिलालेखों में अपने को परम भागवत कहा है। नोट- शैव और भागवत सम्प्रदाय हिंदू धर्म के ही है। भागवत सम्प्रदाय को ही वैष्णव भी कहा जाता है। अनेक राजाओं ने विष्णु के अवतार को मानते हुए खुद को वैष्णव घोषित किया है।
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निश्चित ही इसके बाद विक्रमादित्य चंद्रगुप्त द्वितीय ने वैष्णव मंदिरों के जीर्णोद्धार का वीणा उठाया और हूणों द्वारा तहसनहस की गई अयोध्यापुरी को फिर से आबाद किया। इसी के साथ उन्होंने भगवान श्रीराम की जन्म भूमि पर भव्य मंदिर का निर्माण कराया। माना जाता है कि उस समय संसार का सबसे समृद्ध और भव्य मंदिर जो हुआ करते थे, उनमें श्रीराम जन्म भूमि पर स्थित श्रीराम मंदिर हुआ करता था।