क्रॉस एफआईआर से नहीं मिलता पीड़ित को न्याय कठेरिया ने कहा कि कई बार दलित उत्पीड़न के मामलों में क्रास एफआईआर दर्ज कराई जाती है। पीड़ित पर क्रॉस एफआईआर हो जाने पर उसे न्याय नहीं मिल पाता। वह सरेंडर कर देता है। कई मामलों में एफआईआर तक दर्ज नहीं किया जाता। कुछ लोग कोर्ट की शरण में पहुंच जाते हैं और कोर्ट के आदेश पर एफआईआर दर्ज कर लिया जाता है लेकिन पुलिस जांच करती है इसलिए अच्छे परिणाम सामने नहीं आते।
रेप और मर्डर के मामलों में नहीं दर्ज हो रहे चार्जशीट पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए कठेरिया ने कहा कि प्रदेश में बड़ी संख्या में दलित उत्पीड़न के मामलों में चार्जशीट दाखिल नहीं हुए हैं। बहुत सारी जांचे लंबित है। मुआवजे की समस्या का भी लोग सामना कर रहे हैं। मुआवजे की व्यवस्था में कुछ समय व्यवधान आया था लेकिन अब फिर से व्यवस्था शुरू हो चुकी है। उन्होंने कहा कि मर्डर और रेप के मामलों की चार्जशीट 60 दिनों के भीतर दाखिल होनी चाहिए लेकिन एक साल बीत जाने के बाद भी चार्जशीट दाखिल नहीं हो रहे। ऐसे लापरवाह अफसरों पर कार्रवाई के लिए मुख्यमंत्री को पत्र लिखा जाएगा। बहुत सारे अफसरों को यह जानकारी भी नहीं है कि चार्जशीट कितने दिन में लगानी है और पीड़ित को मुआवजा कितना देना है। उन्होंने कहा कि जांच में लापरवाही करने वाले अफसरों को समन जारी किया गया है।
नहीं खर्च हो सके 4732 करोड़ रूपये कठेरिया ने कहा कि विकास की योजनाओं में अनुसूचित जाति के लिए विशेष खर्च के मामले में प्रदेश के 10 विभाग पैसा खर्च नहीं कर पाए। बेसिक शिक्षा, लोक निर्माण विभाग, ग्रामीण विकास सहित कई विभाग 4732 करोड़ रूपये पिछले वर्ष खर्च नहीं कर सके। सभी विभागों को पत्र लिखने और प्लानिंग करने को कहा गया है जिससे खर्चा उसी क्षेत्र में किया जाये, जिसके लिए धनराशि आवंटित की गई है। बिजली विभाग ने भी कई जगहों पर
काम नहीं किया है जबकि उसके पास 337 करोड़ बचे हुए हैं। कई गाँव ऐसे हैं जहाँ बिजली के तार और खम्भे तक नहीं पहुंच सके हैं। कार्ययोजना सही न होने के कारण पैसा सही जगह खर्च नहीं हो सका।
पॉस्को पीड़िता को नहीं मिलती है मदद कठेरिया ने कहा कि पॉस्को एक्ट को लेकर उत्तर प्रदेश में पीड़िता को आर्थिक मदद का प्रावधान नहीं है जबकि कई राज्यों में पॉस्को पीड़िता को अलग से आर्थिक मदद दिए जाने का प्रावधान है। सीवर में काम करते समय दुर्घटना का शिकार होने वाले लोगों को आश्रय और आर्थिक मदद की व्यवस्था की जानी चाहिए। यह सुप्रीम कोर्ट का आदेश है।