लखनऊ. समाजवादी पार्टी में अखिलेश और मुलायम के बीच सुलह की एक और कोशिश नाकाम हो गई। नए साल में अब तक दोनों खेमों में सुलह की आठ कोशिशें हुईं और सभी नाकाम रहीं। दोनों खेमे अपनी-अपनी मांगों पर अड़े हैं। समाजवादी पार्टी के पास साइकिल सिंबल बचाने के लिए सिर्फ छह दिन ही बचे हैं। क्योंकि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों के लिए पहले दौर की वोटिंग 11 फरवरी को होगी और इस चरण के लिए अधिसूचना 17 जनवरी को जारी की जाएगी। अगर 17 जनवरी तक पार्टी घर के घमासान को किसी अंजाम तक पहुंचाने में नाकाम रही तो उसके पास समझौते की गुंजाइश खत्म हो जाएगी और उसके दोनों धड़ों को नई पार्टी और नए नाम के साथ मैदान में उतरना होगा। मामला चुनाव आयोग की चौखट तक पहुंच चुका है, जो जीतेगा समाजवादी पार्टी उसकी हो जाएगी। लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि झटका दोनों पक्षों को लगे और वे न तो पार्टी का नाम बचा सकें और न साइकिल का चुनाव चिह्न।
मुलायम गुट की मांग
सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव सुलह को तैयार हैं, लेकिन उन्होंने अखिलेश के सामने चार मांगें रखी हैं, जिन पर सहमति नहीं बन पाई है। मुलायम सिंह यादव खुद को राष्ट्रीय अध्यक्ष तो शिवपाल यादव के लिए प्रदेश अध्यक्ष का पद बरकरार रखने की बात कह रहे हैं। मुलायम सिंह यह भी चाहते हैं कि रामगोपाल यादव छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित रहें। इसके अलावा मुलायम गुट चाहता है कि अखिलेश गुट चुनाव आयोग में चुनाव चिह्न को दायर की गई दावेदारी वापस ले ले।
अखिलेश गुट की मांग
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी सुलह के प्रयास कर रहे हैं, लेकिन वह मुलायम की कई शर्तों पर समझौता करने को तैयार नहीं हैं। अखिलेश चाहते हैं कि उन्हें सीएम कैंडिडेट के तौर पर प्रमोट किया जाए, इसके लिए मुलायम तैयार भी हैं। लेकिन अखिलेश यादव रामगोपाल यादव को अपने साथ रखना चाहते हैं। इसके अलावा अखिलेश यादव अमर सिंह को पार्टी से बाहर करना चाहते हैं, जिस पर मुलायम तैयार नहीं हैं। मुख्यमंत्री शिवपाल यादव की जगह नरेश उत्तम को ही पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाए रखना चाहते हैं।
दोनों खेमों के पास विकल्प
दोनों खेमों के पास अभी पांच दिन और तीन विकल्प हैं। पहला अखिलेश और मुलायम एक-दूसरे की शर्तें मान लें और एक साथ मिलकर साइकिल के चुनाव निशान पर लड़ें और मिलकर जनता के बीच सपा की उपलब्धियां बताएं। या फिर दोनों खेमों में से कोई एक साइकिल पर अपना दावा छोड़े, ताकि सिंबल को कोई नुकसान न पहुंचे। लेकिन अगर दोनों गुट अपनी जिद पर अड़े रहे तो चुनाव आयोग सिंबल को फ्रीज कर देगा। तब दोनों ही दलों को बदले हुए नाम और नए चुनाव चिह्न के साथ मैदान में उतरना होगा।
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