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जेल बनने के बाद से लेकर आज तक इसकी बंदी संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। करीब एक हजार की बंदी संख्या वाली जेल में डेढ़ हजार से भी अधिक बंदी हैं। उसके अनुसार सुरक्षा प्रहरियों की संख्या में भी बढ़ोतरी होनी चाहिए थी। सुरक्षा प्रहरी बढऩा तो दूर सेवानिवृत्त होने से इनकी संख्या लगातार कम ही हो रही है। हालत यह है कि जेल में उप अधीक्षक से लेकर सुरक्षा प्रहरियों के स्वीकृत पदों से भी आधे ही कार्यरत हैं।
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इस ओर सरकार का ध्यान ही नहीं है। हालांकि जेल की बाहरी सुरक्षा में जेल आरएसी व बोर्डर होमगार्ड जवान लगे हुए हैं, लेकिन प्रहरियों की कमी से जेल के अंदर की सुरक्षा उतनी मजबूत नहीं है, जितनी होनी चाहिए।नियमानुसार जेल में 8 बंदियों पर 1 सुरक्षा प्रहरी (सिपाही) व 100 बंदियों पर 1 जेलर का पद होना चाहिए। कोटा जेल में स्थिति इसके विपरीत है। यहां तो पहले से ही बंदियों की संख्या के हिसाब से काफी कम पद हैं, लेकिन जो स्वीकृत पद हैं, उनमें से भी करीब आधे से अधिक पद खाली हैं।
उप अधीक्षक है न जेलर
अधीक्षक व उप अधीक्षक के एक-एक पद हैं। इनमें से सिर्फ अधीक्षक ही कार्यरत है। उप अधीक्षक का पद लम्बे समय से रिक्त है। इसी तरह जेलर के 10 पदों में से वर्तमान में मात्र 3 ही कार्यरत हैं। सिपाहियों के 150 स्वीकृत पदों में से मात्र 70 ही कार्यरत हैं। सिर्फ मुख्य प्रहरी ही ऐसे हैं जो स्वीकृत 25 पदों के हिसाब से पूरे कार्यरत हैं।
केन्द्रीय कारागार कोटा अधीक्षक सुधीरप्रकाश पूनिया ने बताया कि भले ही सभी को अधिक काम करना पड़ रहा है, लेकिन सुरक्षा में कोई कमी नहीं आने दी जाती। जहां तक भर्ती का सवाल है वह मुख्यालय स्तर का मामला है। यहां से तो समय-समय पर जानकारी मुख्यालय भेज दी जाती है।