भारत और ब्रिटेन के विश्वविद्यालयों ने प्लास्टिक वेस्ट की मुसीबत से दुनिया को निजात दिलाने के साथ ही ऊर्जा के नए श्रोत के तौर पर इस्तेमाल करने का तरीका खोज निकाला है। कोटा यूनिवर्सिटी के प्योर एंड एप्लाइज फिजिक्स डिपार्टमेंट की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. नमृता सेंगर और यूके की क्रेेनफील्ड यूनिवर्सिटी के भौतिक शास्त्री डॉ. जेवियर टॉनीलियर ने सोलर एनर्जी का इस्तेमाल कर प्लास्टिक वेस्ट को बायोफ्यूल में तब्दील करने का तरीका खोज निकाला है। लेबोरिट्री रिसर्च में सफलता हासिल करने के बाद अब कोटा विवि बायोफ्यूल प्रोडक्शन प्लांट डवलप कर रहा है।
ब्रिटेन की कंपनी उठा रही है खर्च डॉ. नमृता सेंगर ने बताया कि सौर ऊर्जा के जरिए कचरे से बायोफ्यूल प्रोडक्शन प्लांट विकसित करने के लिए ब्रिटेन की कंपनी फाइकोफीड्स लिमिटेड और क्रेनफील्ड यूनिवर्सिटी ही पूरा खर्च उठा रही है। ब्रिटेन से मार्च 2017 में ग्लास कवर्ड सोलर कान्स्ट्रेटर विवि को मिल चुके हैं। ११ लाख रुपए की कीमत के इक्यूपमेंट, उन्हें भेजने और कस्टम क्लियरेंस का आए खर्च के साथ ही शोध पर होने वाला ५ लाख से ज्यादा का खर्च भी यही उठा रहे हैं।
ऐसे बनेगा बायोफ्यूल डॉ. जेवियर टॉनीलियर ने बताया कि इसके लिए हैवी ग्लास रिफ्लेक्टर से पैक सोलर कान्स्ट्रेटर तैयार किए गए हैं। इसके बीच में एक कार्बन ट्यूब डाली गई है। जिसमें प्लास्टिक वेस्ट के साथ तय मात्रा में माइक्रो एल्गी (फंगस)डाली जाएगी। सोलर कांस्ट्रेटर का टेम्प्रेचर जब 280 से 320 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचेगा तो एल्गी इस प्लास्टिक को गलाने लगेगी। कांस्ट्रेटर में लगी दूसरी मशीन से दवाब बढ़ाकर इस प्रक्रिया को 30 मिनट में पूरा कर लिया जाएगा। दृव्यीकरण की इस पूरी विधि के संपन्न होते ही बायोफ्यूल तैयार हो जाएगा। जिसका इस्तेमाल पेट्रोल और डीजल की जगह किया जा सकता है।
देश के लिए बड़ी उपलब्धि देश के जाने-माने सोलर साइंटिस्ट और मुनि सेवा आश्रम, गुजरात के संस्थापक दीपक गडिया इस प्रोजेक्ट में बतौर एक्सपर्ट विवि की मदद कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि दुनिया में पहली बार सौर ऊर्जा के जरिए कचरे से बायोफ्यूल बनाने की तकनीकी इजाद की गई है। जो कोटा विश्वविद्यालय ही नहीं देश के लिए बड़ी भी उपलब्धि है। सैद्धांतिक सफलता हासिल करने के बाद प्रायोगिक सफलता मिलते ही प्लास्टिक की मुसीबत से आसानी से छुटकारा मिल सकेगा। साथ ही पेट्रोल और डीजल पर निर्भरता भी कम हो जाएगी