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रक्षा बंधन 2023 : मुख्यमंत्री बघेल को राखी बांधने जा रहीं कर्मचारियों को पुलिस ने रोका कुछ शहरों में निजी स्पेशल स्कूल संचालित हैं,उनमें सीटें सीमित हैं। सरकारी स्कूलों में स्पेशल बच्चों को सामान्य शिक्षक ही पढ़ा रहे हैं, उन्हें न तो स्पेशल बच्चों को पढ़ाने सिखाने का तरीका पता है न ही उन्हें प्रशिक्षित किया गया है। डीएमएफ से बने एक भवन का उपयोग कई साल से नहीं हो पा रहा था। तब शिक्षा विभाग ने जिले में दिव्यांग स्कूल शुरु करने की योजना बनाई, लेकिन यह योजना अब तक परवान नहीं चढ़ सकी।
उम्र 7-8 की, कक्षा पहली में दाखिले के लिए तीन साल से थे परेशानस्पेशल बच्चों को प्राथमिकी शिक्षा में किस तरह की परेशानी आ रही है इसकी बानगी देखिए। कोरबा के बरपाली में रहने वाले अभय राठिया उम्र साढ़े सात साल की है। जन्म से अभय बोलने और सुनने में असमर्थ है। परिजनों ने सरकारी स्कूल में दाखिला करवाया, लेकिन वहां के शिक्षक पढ़ाने और सिखाने में असमर्थ रहे। शिक्षकों ने ही परिजनों को सलाह दी कि निजी स्पेशल स्कूल में दाखिला करवा दें। जब निजी स्पेशल स्कूल पहुंचे तो वहां सीटें फुल थी। करीब तीन साल से परिजन शिक्षा विभाग, प्रशासन के चक्कर लगा रहे थे। कुछ दिन पहले वह कलेक्टर से जनदर्शन में अपनी समस्या सामने रखी तब जाकर उसे एडमिशन मिला।
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भोजली महोत्सव: धनुष-तीर लेकर जय बूढ़ादेव के जयकारे के साथ निकाली शोभायात्रा सीडब्ल्यूएसएन (चिल्ड्रेन विथ स्पेशल नीड्स) बच्चों के लिए प्रदेश में स्पेशल स्कूल नहीं है, सामान्य स्कूलों में बगैर स्पेशल सुविधाओं के इन बच्चों के दाखिले लिए जा रहे हैं और उन बच्चों को शिक्षा देने का दावा किया जा रहा है, लेकिन सीडब्ल्यूएसएन की गाइडलाइन के पालन के नाम पर स्कूलों में सिर्फ रैंप ही बनाए गए हैं। शरीर के दूसरे अंगों के काम नहीं करने और मानसिक रूप से बीमार बच्चों के लिए इन स्कूलों में किसी तरह की सुविधा नहीं है।
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1096 बच्चे तो स्कूल तक नहीं जा पा रहे चिल्ड्रेन विथ स्पेशल नीड्स श्रेणी के 1096 बच्चे ऐसे हैं जो नियमित तौर पर स्कूल तक नहीं जा पा रहे हैं। दरअसल आने-जाने के साथ उनको स्कूल में वो सुविधाएं नहीं मिल रही थी। बच्चों की परेशानी को देखते हुए अब विभाग ने गृह आधारित शिक्षा शुरु की है।
मार्मिक पहलू देखिए…स्पेशल बच्चों को कोई लेना नहीं चाह रहा समग्र शिक्षा के तहत सामान्य बच्चों के साथ ही स्पेशल बच्चों को शिक्षित करना है, लेकिन निजी स्कूल अकसर पल्ला झाड़ लेते हैं। सरकारी स्कूल तो दाखिला दें भी देंगे। बच्चों की स्थिति देखते ही कई स्कूलों के ना भरे जवाब से उन परिजनों के आंखू में आंसू भर जाते हैं। बहुत सारे स्पेशल बच्चों में खुबियां भीं होती हैं, लेकिन उन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है।
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स्पेशल बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षकों को ट्रेनिंग दी जा रही है, बच्चो को उनकी जरुरत के हिसाब से सामग्री भी उपलब्ध कराई जा रही है।
– इफ्फत आरा, संचालक, समग्र शिक्षा छत्तीसगढ़