दोनों जजों ने उन्हें अगले आदेश तक बीरभूम जिले के लाभपुर, बोलपुर और शांतिनिकेतन पुलिस थाना क्षेत्रों में प्रवेश नहीं करने का निर्देश दिया। उक्त खण्डपीठ ने रॉय को एक महीने के भीतर नियमित जमानत लेने के लिए ट्रायल कोर्ट के समक्ष आत्मसमर्पण करने को कहा और 50,000 रुपए की दो जमानत पत्र भी प्रस्तुत करने को कहा।
इससे पहले मामले की सुनवाई के दौरान मुकुल राय के वकील संदीपन दासगुप्ता ने उक्त खण्डपीठ के समक्ष अपना पक्ष रखते हुए दावा किया कि रॉय पर लगाए गए आरोप राजनीति से प्रेरित हैं। इस मामले की प्राथमिकी में रॉय का नाम नहीं था और 2014 में दायर आरोपपत्र में भाजपा नेता रॉय का नाम भी सामने नहीं आया था। इस तिहरे हत्याकांड के एफआईआर में तत्कालीन माकपा नेता मनिरुल इस्लाम और उनके दो भाई सहित कुल मिलाकर 25 आरोपियों के नाम थे।
हालाँकि, 2014 में दायर किए गए आरोपपत्र से तीन नाम हटा दिए गए थे। वर्ष 2010 में मनिरुल वाम मोर्चा के स्थानीय नेता थे। बाद में वह तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए और बीरभूम जिले के लाभपुर निर्वाचन क्षेत्र से पार्टी के विधायक चुने गए थे। उन्होंने 2019 में भाजपा का दामन थाम लिया। नवंबर 2017 में भाजपा में शामिल होने से पहले मुकुल रॉय तृणमूल कांग्रेस के कद्दावर नेता और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के दाहिने हाथ थे।
भाजपा में शामिल होने के बाद पुलिस ने दिसंबर 2019 में बीरभूम में ट्रायल कोर्ट के समक्ष पूरक आरोप पत्र दाखिल कर मुकुल रॉय को इस मामले का आरोपी करार देते हुए गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया। इसके बाद रॉय ने 6 जनवरी को उच्च न्यायालय से अग्रिम जमानत मांगी थी। तब उच्च न्यायालय ने रॉय को गिरफ्तारी से सुरक्षा दी थी। उच्च न्यायालय ने सितंबर 2019 में मृतक के परिजनों की ओर से दायर याचिका के संबंध में तीन माकपा कार्यकर्ताओं की हत्या के मामले की जांच करने का निर्देश दिया था।