छठ पूजा: चार दिनों के विशेष अनुष्ठान
छठ पूजा चार दिनों तक चलने वाला पर्व है। इसमें हर दिन का अपना विशेष महत्व होता है।
पहला दिन: नहाय खाय (5 नवंबर, मंगलवार)
इस दिन व्रती नदी या तालाब में स्नान करके शरीर और आत्मा की शुद्धि करतीं हैं। स्नान के बाद भोजन करके वे अपने व्रत की शुरुआत करती हैं। शुद्धि का प्रतीक यह दिन व्रतियों को शारीरिक और आत्मिक रूप से इस कठिन उपवास के लिए तैयार करता है।
दूसरा दिन: खरना (6 नवंबर, बुधवार)
इस दिन व्रती सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक बिना पानी के व्रत रखती हैं। सूर्यास्त के बाद विशेष प्रसाद ग्रहण किया जाता है, जिसमें चावल और गुड़ की खीर और रोटी शामिल होती है। इस दिन का व्रत सूर्य देव के प्रति समर्पण का प्रतीक है। बिना पानी के व्रत रखना समर्पण और त्याग का संदेश देता है।
तीसरा दिन: डूबते सूर्य को अघ्र्य (7 नवंबर, गुरुवार)
इस दिन छठ पूजा का मुख्य दिन होता है। व्रती शाम को नदी या तालाब किनारे जाकर डूबते हुए सूर्य को अघ्र्य देती हैं, जो इस पूजा का एक विशेष अनुष्ठान है। डूबते हुए सूर्य को अघ्र्य देना जीवन के संघर्षों कठिनाइयों और उपहारों के लिए आभार प्रकट करता है।
चौथा दिन: उगते सूर्य को अघ्र्य (8 नवंबर, शुक्रवार)
यह अंतिम दिन होता है, जब व्रती उगते सूर्य को अघ्र्य देती हैं। इस दिन की पूजा नई शुरुआत और आशा का प्रतीक है। उगते सूर्य को अघ्र्य देकर नए सवेरे और नई उम्मीदों का स्वागत किया जाता है। उपवास समाप्त किया जाता है। इसके बाद पारण किया जाता है।