1994 में यहां पहली बार चुनाव हुए। तब सामान्य महिला के लिए महापौर पद का आरक्षण था। पार्षदों द्वारा महापौर और उप-महापौर चुने जाना था। तब 45 वार्ड ही थे। भाजपा-कांग्रेस के बीच यहां तत्कालीन मंत्री तनवंतसिंह कीर की निष्ठावान कांग्रेस के प्रत्याशियों के बीच टक्कर थी। गजब ये हुआ था कि निष्ठावान कांग्रेस व भाजपा मिल गई। एक को महापौर व दूसरे को उप-महापौर पद की लालसा थी। फिर हुआ ये कि निष्ठावान की अणिमा उबेजा तो महापौर बन गई लेकिन भाजपा के राजेश डोंगरे की बजाय रमजान भारती उप महापौर बन गए। ढाई साल बाद फिर परिस्थितयां बदली और निष्ठावान कांग्रेस तथा कांग्रेस एक हो गए। ये पूरा कार्यकाल ही खूब चर्चाओं में रहा।
अणिमा उबेजा- 1995 से 2000 तक
ताराचंद अग्रवाल- 2000 से 2005 तक
वीरसिंह हिंडौन- 2005 से 2010 तक
भावना शाह- 2010 से 2015 तक अब बदलेंगे चुनावी समीकरण, परिसीमन हुआ तो फिर वार्ड आरक्षण
राज्य सरकार के फैसले के बाद शहर में निगम चुनाव के समीकरण बदलेंगे। महापौर के प्रत्यक्ष चुनाव होने से पार्टी वरिष्ठ नेता को ही मैदान में उतारती थी। दूसरी-तीसरी लाइन ने नेता पार्षद चुनाव लड़ते थे, पर अब बड़े नेताओं को भी जोर-आजमाइश करना होगी। उधर, शहर के वार्डों का आरक्षण हो चुका है। लेकिन अब अगर परिसीमन की प्रक्रिया होती है फिर से वार्ड आरक्षण होगा, इस स्थिति में भी बहुत जगह बदलाव देखने को मिलेंगे।
महापौर को जब पार्षद चुनेंगे तो वहां अतिरिक्त दबाव होगा। उन्हें संतुष्ट करना मुश्किल होगा। जबकि जनता की भागीदारी खत्म हो जाएगी। महापौर भी जनता से ज्यादा पार्षदों के प्रति खुद को जवाबदेह मानेगा। विकास में बाधाएं आएंगी।
सुभाष कोठारी, महापौर
लगातार अविश्वास प्रस्ताव को देखते हुए दिग्विजयसिंह शासनकाल में ही बदलाव किया था। मुख्यमंत्री कमलनाथ से हम सभी नेता प्रतिपक्षों ने मांग की थी कि पार्षद ही महापौर चुने। धु्रवीकरण नहीं होगा तो कांग्रेस को लाभ मिलेगा। ये अच्छा निर्णय है।
अहमद पटेल, नेता प्रतिपक्ष, ननि