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खंडवा

निकाय में अब कांग्रेस को नजर आ रही कुर्सी, यहां अब तक भाजपा का ही रहा है दबदबा

महापौर बनने से पहले जीतना होगी वार्डों की जंग…पहली परिषद में नजर आया था राजनीति का रोमांच, महापौर व उप-महापौर के चयन मेंऐनवक्त पर बदले थे समीकरण। अब जनता की बजाय पार्षदों द्वारा महापौर चुने जाने के बीच कई संभावनाओं व आशंकाओं पर हो रहा है मंथन।

खंडवाSep 28, 2019 / 12:35 pm

अमित जायसवाल

Nagar Nikay Chunav

Nagar Nikay Chunav

खंडवा. नगरीय निकायों में में अब महापौर या अध्यक्ष को जनता नहीं बल्कि पार्षद चुनेंगे। यानी कि जनता को वोटिंग के माध्यम से महापौर चुनने का जो हक था, वो अब नहीं होगा। ऐसे में पार्षदों द्वारा महापौर चुने जाने के बीच कई संभावनाओं व आशंकाओं पर मंथन हो रहा है।
नगर निगम में अब कांग्रेस को वो कुर्सी नजर आ रही है, जिस पर भाजपा का ही दबदबा रहा है। अब तक के 5 में से 4 महापौर तो सीधे तौर पर भाजपा के ही रहे हैं, जबकि सबसे पहली परिषद में राजनीति के रोमांच के बीच अणिमा उबेजा जब महापौर बनीं थी, तब भी वे कांग्रेस की न होकर निष्ठावान कांग्रेस समर्थित थी। यानी कि 1994 से लेकर अब तक सीधे तौर पर कांग्रेस को ‘शहर के प्रथम नागरिकÓ की कुर्सी हाथ नहीं लग पाई है। लेकिन कैबिनेट बैठक में प्रस्तावित अध्यादेश को राज्यपाल को भेजने की मंजूरी के साथ ही ये स्पष्ट कर दिया गया है कि अब पार्षदों में से ही महापौर या अध्यक्ष का चुनाव होगा। अब तक महापौर का चुनाव भी सीधे जनता वोटिंग के जरिए करती थी।
रोमांचक रहा था पहला चुनाव, चरम पर था राजनीतिक द्वंद
1994 में यहां पहली बार चुनाव हुए। तब सामान्य महिला के लिए महापौर पद का आरक्षण था। पार्षदों द्वारा महापौर और उप-महापौर चुने जाना था। तब 45 वार्ड ही थे। भाजपा-कांग्रेस के बीच यहां तत्कालीन मंत्री तनवंतसिंह कीर की निष्ठावान कांग्रेस के प्रत्याशियों के बीच टक्कर थी। गजब ये हुआ था कि निष्ठावान कांग्रेस व भाजपा मिल गई। एक को महापौर व दूसरे को उप-महापौर पद की लालसा थी। फिर हुआ ये कि निष्ठावान की अणिमा उबेजा तो महापौर बन गई लेकिन भाजपा के राजेश डोंगरे की बजाय रमजान भारती उप महापौर बन गए। ढाई साल बाद फिर परिस्थितयां बदली और निष्ठावान कांग्रेस तथा कांग्रेस एक हो गए। ये पूरा कार्यकाल ही खूब चर्चाओं में रहा।
अब तक ये रहे महापौर
अणिमा उबेजा- 1995 से 2000 तक
ताराचंद अग्रवाल- 2000 से 2005 तक
वीरसिंह हिंडौन- 2005 से 2010 तक
भावना शाह- 2010 से 2015 तक

अब बदलेंगे चुनावी समीकरण, परिसीमन हुआ तो फिर वार्ड आरक्षण
राज्य सरकार के फैसले के बाद शहर में निगम चुनाव के समीकरण बदलेंगे। महापौर के प्रत्यक्ष चुनाव होने से पार्टी वरिष्ठ नेता को ही मैदान में उतारती थी। दूसरी-तीसरी लाइन ने नेता पार्षद चुनाव लड़ते थे, पर अब बड़े नेताओं को भी जोर-आजमाइश करना होगी। उधर, शहर के वार्डों का आरक्षण हो चुका है। लेकिन अब अगर परिसीमन की प्रक्रिया होती है फिर से वार्ड आरक्षण होगा, इस स्थिति में भी बहुत जगह बदलाव देखने को मिलेंगे।
– जनता द्वारा सीधा चुना जाना ही सही
महापौर को जब पार्षद चुनेंगे तो वहां अतिरिक्त दबाव होगा। उन्हें संतुष्ट करना मुश्किल होगा। जबकि जनता की भागीदारी खत्म हो जाएगी। महापौर भी जनता से ज्यादा पार्षदों के प्रति खुद को जवाबदेह मानेगा। विकास में बाधाएं आएंगी।
सुभाष कोठारी, महापौर
– हम तो शुरू से ही कर रहे थे मांग
लगातार अविश्वास प्रस्ताव को देखते हुए दिग्विजयसिंह शासनकाल में ही बदलाव किया था। मुख्यमंत्री कमलनाथ से हम सभी नेता प्रतिपक्षों ने मांग की थी कि पार्षद ही महापौर चुने। धु्रवीकरण नहीं होगा तो कांग्रेस को लाभ मिलेगा। ये अच्छा निर्णय है।
अहमद पटेल, नेता प्रतिपक्ष, ननि

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