इसी बानगी में जब पत्रिका ने कबीरधाम जिले के बैगा लोगों के दैनिक जीवन की पड़ताल की यह पता चला कि आज भी बैगा आदिवासी अपनी परंपराओं को दैनिक जीवन का हिस्सा बनाए हुए है। गर्मी के दिनों में इनके पास ठंडे पानी के लिए मिट्टी का घड़ा तो होताहै, लेकिन कुछ बैगा परिवार आज भी ठंडे पानी के लिए चाकीतुमा(लौकी) का इस्तेमाल करते है। इसे वे अपने साथ जंगल ले जाते है और जब मजदूरी करने जाते है तो यह इनके साथ ही होती है।
गांधी ग्राम विकास समिति के चंद्रकांत साल 2006 से बैगाों के लिए कार्य कर रहे है। वे उन्हें खेती किसानी के नए तरीके बताते है साथ वे उन्हें बीज बचाने के तरीकों की भी जानकारी देते है। किचन गार्डन बनाने के साथ ही समुदाय की मदद कर उन्हें सरकारी योजनाओं का भी लाभ दिलाने का कार्य करते है। कबीरधाम जिले के तरेगांव मे रहने वाले चंद्रकांत बताते है कि हमारे संगठन के हरिराम बैगा वन अधिकार अधिनियम 2005 के तहत प्राप्त 4 एकड़ वनभूमि में जमीन का बेहतर प्रबंधन करते हुए आजीविका और पोषण के लिए बेहतरीन प्रयास कर रहे हैं। ऐसे ही कई विशेष संरक्षित जनजाति (पीवीजीटी) बैगा परिवारों द्वारा खेती, पोषण वाटिका, मत्स्य पालन से अपनी आजीविका और पोषण को सुनिश्चित कर रहे हैं। हमारे संगठन गांधी ग्राम विकास समिति (ग्रामोदय केंद्र) द्वारा समुदाय के साथ मिलकर कार्य किया जा रहा। इस कार्य में जिला प्रशासन, कृषि विभाग, वन विभाग, आदिम जाति कल्याण विभाग, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण एवं बैगा विकास प्राधिकरण का सहयोग और मार्गदर्शन मिल रहा है। –
लीलादादर गांव में 30 बैगा परिवार रहते है बारिश में यह गांव टापू बन जाता है क्योंकि पहाड़ी के नीचे आने के दोनों तरफ पानी भरा रहता है एक तरफ तो नदी और दूसरी और नाला है। बारिश में यह नदी और नाले पूरे उभान पर होते है इस कारण बारिश में उनका आना-जाना दूभर हो जाता है। गांव की फुलियाबाई कहती है कि हम लोग स्वास्थ्य केंद्र भी हमारे घर से पांच किलोमीटर दूर ही पड़ता है। अबी गर्मी का समय है वो कहती है कि हम तो अपनी परंपरा को आज भी जीवित रखे है लेकिन नई पीढी़ जिनको अब सुविधाएं मिलने लगी है वो इन परंपराओं से दूर हो रहे है। अब हमारे बच्चे लौकी की जगह प्लास्टिक की बॉटल का इस्तेमाल कर रहे है।
ऐसे बनता है लौकी का कोल्ड स्टोरेज गांधी ग्राम विकास समिति (ग्रामोदय केंद्र ) के चंद्रकांत कहते है कि कड़ी चाकीतुमा (लौकी) से ही उस कोल्ड स्टोरेज को बनाया जाता है। मीठी लौकी को खाने के काम लाते है। कड़ी लौकी को मुहाने से काट कर उसमें पानी भरा जाता है और कुछ दिन उसे ऐसे ही छोड़ देते है । कुछ दिनों बाद अंदर का गूदा और बीज सड़कर निकल जाते है और उसे साफ पानी से धो लिया जाता है। और फिर लौकी को सुखा लिया जाता है। इस तरह लौकी का कोल्ड स्टोरेज तैयार हो जाता है
लीलादादर से छोटे पहाडी़ इलाके छिंदपुर में रहने वाले राजेंद्र और सिंगोराबाई पति-पत्नी है वे कहते है कि हम इस लौकी को गर्मी के बाद बीज रखने के लिए काम में लाते है। इस लौकी बनी बॉटल का पानी मीठा रहता है। हम जब भी काम पर जाते है तो इसी लौकी को ले जाते है। 55 साल की चैती बाई कहती है कि हम तो आज भी गर्मी में इसी चाकीतुमा का उपयोग कर रहे है। इसे कहीं भी आसानी से टांग सकते है क्योंकि इसमें लंबे समय तक पानी ठंडा रहते है।
श्रीबाई कहती है कि जब हम जंगल जाते है तो चाकीतुमा को ही अपने साथ ले जाते है। मजदूरी करने जाते है तो इसी को अपने साथ ले जाते है। काम के ठिकाने पर ही इसे रख देते है लंबे समय तक पानी ठंडा बना रहता है। गर्मियों में यही हमारा देसी फ्रिज है।